kheere ki kheti: रबी सीजन अब अपने अंतिम प्रड़ाव पर है. अगला सीजन जायद फसलों का है, जिसमें कई तरह की फसलें उगाई जाती हैं. अगर आप भी जायद सीजन में अच्छी कमाई करना चाहते हैं तो खीरे की खेती कर सकते हैं. जिसकी बुवाई अब शुरू की जा सकती है. खीरे को जायद का हीरा भी कहा जाता है और यह इस सीजन की एक महत्वपूर्ण फसल है, जिसकी खेती सिर्फ इसी सीजन में की जाती है.
सामान्यतः सलाद में उपयोग किए जाने वाले खीरों में एक जैविक कणामुद्रा नामक एंजाइम होता है, जो प्रोटीन को पचाने में सहायता करता है. इसके साथ ही, खीरा पानी का एक अच्छा स्रोत है, जिसमें लगभग 96 प्रतिशत पानी होता है. इसलिए, खीरा गर्मियों में एक महत्वपूर्ण शाकाहारी फसल है. खीरा विटामिन ए, बी-1, बी-6, विटामिन-सी, विटामिन-डी के साथ-साथ पोटैशियम, फॉस्फोरस, और लोहा का एक उत्तम स्रोत है. नियमित खीरे के रस का सेवन से हमारे शरीर को बाहर और अंदर से मजबूती मिलती है. खीरे के कई सारे फायदें हैं और गर्मियों में इसकी डिमांड भी खूब रहती है. इसी वजह से इसकी खपत भी बढ़ जाती है. आइए आपको इसके खेती के बारे में विस्तार से बताते हैं.
खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी
वैसे तो खीरे की खेती हर जगह की जा सकती है. इसके लिए हर तरह की मिट्टी कारगर होती है. हालांकि, इसकी सफलतापूर्वक खेती के लिए बलुई दोमट तथा मटासी मृदा उत्तम मानी जाती है.
उन्नत किस्में
अगर किसान अच्छी किस्मों की खेती करें तो वे अपना मुनाफा और बढ़ा सकते हैं. इसके लिए उन्हें खीरे की उन्नत किस्मों की जानकारी होनी आवश्यक है. खीरे की उन्नत किस्मों में पूसा संयोग, पाइनसेट, खीरा-90, टेस्टी, मालव-243, गरिमा सुपर, ग्रीन लॉंग, सदोना, एन.सी.एच.-2, रागिनी, संगिनी, मंदाकिनी, मनाली, य.एस.-6125, यू.एस.-6125, यू.एस.-249 शामिल हैं.
बीज बोने का सही समय
बीज बोने का समय विशेष स्थान और जलवायु पर निर्भर करता है. शीत रूपी फसल के लिए, बीज बोने का समय फरवरी के मध्य से मार्च के पहले सप्ताह तक होना चाहिए. एक हेक्टेयर खेत के लिए 2.5 से 3.0 किग्रा बीज की आवश्यकता होती है. बीज को उपचारित करने के लिए बीज को चौड़े मुंह वाले मटके में डालें और 2.5 ग्राम थाइरम दवा प्रति किलोग्राम बीज के मूल्य से मिलाएं. दवा को बीज के अच्छे से मिश्रित करने के लिए मटका में दवा और बीज डालें और दोनों हाथों से कई बार ऊपर-नीचे करें ताकि दवा बीज के सभी ओर आच्छादित हो सके.
बुवाई की विधि
खेत में बुवाई के लिए एक प्रमुख तकनीक है कि हम विश्वसनीय रूप से तैयार किए गए थालों को खेत में रख दें. थाले के चारों तरफ 2-4 बीज बोएं और बोने की गहराई 2-3 सेंटीमीटर रखें. ककड़ी की बुवाई नाली में भी की जाती है. यह फसल बोने के लिए, 60 सेंटीमीटर चौड़ी नालियों का निर्माण किया जाता है, जिन पर ककड़ी के बीज बोने जाते हैं. नालियों के बीच की दूरी 2.5 मीटर रखें. इसके साथ ही, एक नक्काशी से दूसरी नक्काशी के नीचे 60 सेंटीमीटर का अंतर दें. चरणगत ऋतु के लिए, बीज बोने से पहले, 12-8 घंटे तक पानी में भिगोकर रखें, जिससे बीज का अंकुरण बेहतर होता है. बीज बोने के लिए, एक पौधे के बीच की दूरी 1.0 मीटर रखें और एक पौधे से दूसरे पौधे की दूरी 50 सेंटीमीटर रखें. ककड़ी के पौधों से अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए इस फसल को सहारा देना आवश्यक है.
खाद और उर्वरक प्रबंधन
खीरे की एक हेक्टेयर खेत में खेती करने के लिये 30 टन गोबर खाद का उपयोग करें. इसके अतिरिक्त प्रति हेक्टेयर 100 किलोग्राम यूरिया, 125 किग्रा. एन.पी.के, 30 किग्रा. म्यूरेट ऑफ पोटाश का उपयोग करें. फसल में फल लगने प्रारंभ हो जाये तो फसल पर एक या दो तुड़ाई के बाद एक प्रतिशत यूरिया के घोल का पौधों पर छिड़काव करने से पौधों की बढ़वार व फलत अधिक व लम्बे समय तक प्राप्त होती है. खीरे के पौधे से अधिक फल प्राप्त करने के लिये वृद्धि नियामक हार्मोन के प्रयोग से मादा फूलों की संख्या बढ़ाई जा सकती है. जिसके लिये इथरेल 250 पी.पी.एम सान्द्रता वाले मिश्रण का घोल बनाकर, जब पौधों में दो पत्तियां वाले पौधे हो जाये तब छिड़काना चाहिए, जिससे खीरे के पौधों में मादा पुष्पों की संख्या में वृद्धि हो जाती है. तथा अधिक फल लगने के कारण उपज बढ़ जाती है.
सींचाई
खीरे की खेती में सींचाई काफी महत्वपूर्ण है. ऐसे सींचाई पर विषेश ध्यान दें. फसल में फूल आने के बाद हर पांच दिन के अन्तर पर सिंचाई करें. वहीं, जिन क्षेत्रों में सिंचाई के लिए पानी की कमी है, वहां ड्रिप इरिगेशन का इस्तेमाल किया जा सकता है. इससे खेत में पर्याप्त नमी बनी रहती है, साथ ही सिंचाई जल की आवश्यकता भी कम होती है.
कटाई और पैदावार
खीरे की फसल की अवधि 45 से 75 दिनों होती है, जिससे प्रति हेक्टेयर लगभग 100 से 150 क्विंटल उत्पादन होता है. खीरे की अप्रिय फसल को ग्लास हाउस में उगाकर अच्छी कमाई हासिल की जा सकती है. यह एक ऐसी फसल है, जिससे छोटे किसान भी लाखों की कमाई कर सकते हैं.
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