कम लागत में अधिक मुनाफा कमाने की चाह में किसानों ने सीजनल सब्जियों की खेती की तरफ तेजी से रुख किया है. कसूरी मेथी भी कुछ इसी तरह की फसल है, जो बेहद कम वक्त में किसान को ठीक-ठाक मुनाफा दे जाती है. कसूरी मेथी की खेती भी ठंड के मौसम में की जाती है. कसूरी मेथी, मेथी के बीज यानी दानों से लेकर पत्तियां और साग तक बाजार में हाथों हाथ बिक जाता है. अगर आप कसूरी मेथी की फसल से बढ़िया पैदावार हासिल करना चाहते हैं तो ये लेख आपके काम का है.
उपयुक्त मिट्टी एवं जलवायु-
दोमट तथा बलुई दोमट मिट्टी जिसमें कार्बनिक पदार्थ प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हों कसूरी मेथी की खेती के लिए उत्तम होती है. इसके अलावा दोमट मटियार मिट्टी में भी इसकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है. इसके लिए मिट्टी का पीएच मान 6 से 7 के बीच होना चाहिए. यह क्षारीयता को अन्य फसलों की तुलना में अधिक सहन कर सकती है. कसूरी मेथी के पौधे पाले यानी अधिक ठंड के प्रति सहनशील होते हैं.
खेत की तैयारी-
हल्की मिट्टी में कम व भारी मिट्टी में अधिक जुताई करके खेत को तैयार करें. मिट्टी पलटने वाले हल से एक जुताई करके, एक या दो जुताई देशी हल या हैरो चलाकर मिट्टी को भुरभूरी बना लें और शीघ्र पाटा लगा देना चाहिए, जिससे नमी का ह्रास न हो. जुताई के बाद खेत में पाटा अवश्य लगाएं. आखिरी जुताई के समय प्रति एकड़ खेत में 6 से 8 टन गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद मिलाएं. सभी कतारों के बीच 20 से 25 सेंटीमीटर की दूरी रखें. बेहतर पैदावार के लिए कतार में बुवाई करें. पौधों से पौधों के बीच 5 से 8 सेंटीमीटर की दूरी होनी चाहिए. बीज की बुवाई करीब 2 सेंटीमीटर की गहराई में करें.
मेथी की उन्नत किस्में-
उन्नत किस्मों में हिसार सोनाली, हिसार सुवर्णा, हिसार माध्वी, हिसार मुक्ता, ए एफ जी 1, ए एफ जी 2, ए एफ जी 3, आर एम टी 1, आर एम टी 143, आर एम टी 303, राजेन्द्र क्रांति, पूसा अर्ली बंचिंग, लाम सेलेक्शन 1, को 1, एच एम 103, आर एम टी 305, पूसा कसूरी शामिल हैं.
बीज दर-
छिटकवां विधि से कसूरी मेथी की बीज दर 100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर और कतार विधि से 30 से 35 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर होती है.
पैदावार-
कसूरी मेथी की पैदावार कटाई पर निर्भर करती है. यदि फसल की 5 बार कटाई की जाए, तो प्रति एकड़ भूमि से 36 से 44 क्विंटल हरी पत्तियां और 1.6 से 2.4 क्विंटल सूखी पत्तियां मिल जाती हैं.
सिंचाई-
मेथी को कम पानी की जरूरत होती है लेकिन बीज अंकुरण के दौरान नमी जरूरी है. इसलिए खेत में नमी बनाए रखने के लिए समय-समय पर सिंचाई करते रहना चाहिए. बुवाई के तुरंत बाद पहली सिंचाई करें। इसके बाद हर 10 से 15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें. फसल की कटाई के बाद भी हल्की सिंचाई करें.
बुवाई का समय-
बुवाई के लिए सितंबर माह उपयुक्त है. मैदानी इलाकों में सितंबर से लेकर मार्च और पहाड़ी इलाकों में जुलाई से लेकर अगस्त तक का समय सबसे बढ़िया माना जाता है.
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कटाई-
बुवाई के करीब 1 महीने बाद फसल की पहली कटाई की जा सकती है. हर 10 से 15 दिनों के अंतराल पर 4 से 6 बार तक फसल की कटाई की जा सकती है. फसल की कटाई के बाद इसके पौधों को धूप में अच्छे से सूखा लेना चाहिए. सूखी हुई फसल से मशीन की सहायता से दानों को निकाल लें.
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