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मेथी की खेती करने का वैज्ञानिक तरीका

मेथी एक पत्तेदार वाली फसल है. जिसकी खेती देशभर में की जाती है. इसकी गिनती मसालेदार फसलों में होती है, साथ ही इसका उपयोग दवाओं को बनाने में भी किया जाता है. मेथी काफी फायदेमंद होती है, इसलिए साल भर इसकी मांग रहती है. मेथी में प्रोटीन, सूक्ष्म तत्त्व विटामिन समेत विटामिन भी होता है. इसकी मांग आयुर्वेद में भी खूब की जाती है. खासतौर मेथी के बीज सब्जी और अचार बनाने में इस्तेमाल किए जाते हैं. अगर किसान मेथी की खेती वैज्ञानिक तकनीक से करें, तो इसकी फसल से अच्छी उपज हो सकती है. मेथी की अच्छी उपज के लिए ठंडी जलवायु की आवश्यकता पड़ती है. इस फसल में कुछ हद तक पाला सहन करने की कूवत होती है. तो वहीं वातावरण में ज्यादा नमी होने या फिर बादलों के घिरे रहने से सफेद चूर्णी, चैंपा जैसे रोगों का खतरा रहता है. कई बीमारियों में मेथी खाने की सलाह दी जाती है. आइए आपको बताते है कि कैसे मेथी की खेती वैज्ञानिक तरीके से करें और ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाए.

सिप्पू कुमार
Methi
Methi

मेथी एक पत्तेदार वाली फसल है, जिसकी खेती देशभर में की जाती है. इसकी गिनती मसालेदार फसलों में होती है, साथ ही इसका उपयोग दवाओं को बनाने में भी किया जाता है. मेथी काफी फायदेमंद होती है, इसलिए साल भर इसकी मांग रहती है. मेथी में प्रोटीन, सूक्ष्म तत्त्व विटामिन समेत विटामिन भी होता है. 

इसकी मांग आयुर्वेद में भी खूब की जाती है. खासतौर मेथी के बीज सब्जी और अचार बनाने में इस्तेमाल किए जाते हैं. अगर किसान मेथी की खेती वैज्ञानिक तकनीक से करें, तो इसकी फसल से अच्छी उपज हो सकती है. मेथी की अच्छी उपज के लिए ठंडी जलवायु की आवश्यकता पड़ती है. इस फसल में कुछ हद तक पाला सहन करने की कूवत होती है. तो वहीं वातावरण में ज्यादा नमी होने या फिर बादलों के घिरे रहने से सफेद चूर्णी, चैंपा जैसे रोगों का खतरा रहता है. कई बीमारियों में मेथी खाने की सलाह दी जाती है. आइए आपको बताते है कि कैसे मेथी की खेती वैज्ञानिक तरीके से करें और ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाए.

उपयुक्त मिट्टी और जलवायु (Suitable soil and climate)

मेथी की अच्छी उपज के लिए कम तापमान और औसत बारिश वाले इलाके सही रहते हैं. यह पाले को दूसरी फसलों के मुकाबले ज्यादा बर्दाश्त कर लेती है, इसलिए पंजाब, राजस्थान, दिल्ली समेत तमाम उत्तरी राज्यों में इस की खेती की जाती है. इसी के साथ दक्षिण भारत में भी इसे सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है,  लेकिन इसकी खेती न ज्यादा बारिश वाले इलाकों में नहीं की जा सकती.

उपयुक्त भूमि (Suitable land)

खास बात है कि मेथी की खेती सभी तरह की मिट्टियों में की जा सकती है, लेकिन दोमट और बालू वाली मिट्टी इसके लिए ज्यादा उपयुक्त होती है. इसमें कार्बनिक पदार्थ पाया जाता है. इसकी पैदावार वहां ज्यादा होती है. जहां पीएच मान 6-7 के बीच होता है. जहां पानी के निकास के बेहतर इंतजाम होते हैं.

भूमि करें तैयार (Land ready)

सबसे पहले खेत को अच्छी तरह तैयार करने के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें. इसके 2-3 जुताईयाँ देशी हल या फिर हैरो से करें. अब मिट्टी को बारीक और एकसार करना चाहिए. बता दें कि बुवाई के समय खेत में नमी होनी चाहिए,  ताकि सही अंकुरण हो सके. ध्यान रखें, अगर खेती में दीमक की समस्या है, तो पाटा लगाने से पहले खेत में क्विनालफास (1.5 फीसदी) या मिथाइल पैराथियान (2 फीसदी चूर्ण) 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से मिला देना चाहिए.

खाद (Compost)

मेथी अपने आप में एक खाद वाली फसल है,  इसलिए इसमें ज्यादा खाद और उर्वरक का प्रयोग नहीं करना पड़ता है. बता दें कि लेग्यूमिनेसी यानी दलहनी कुल की होने के कारण यह वायुमंडल से नाइट्रोजन इकट्ठा कर लेती है. लेकिन पत्तियां और बीज ज्यादा तादाद में हासिल करने के लिए खाद औऱ उर्वरक कुछ तादाद में देने चाहिए.

  • खेत में 150 क्विंटल गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर की दर से डालें.

  • बुवाई के वक्त 20 किलोग्राम फास्फोरस और 40 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से डालें.

  • मेथी की पैदावार मैगनीज और जिंक देने से बढ़ती है, इसलिए कृषि वैज्ञानिकों से राय लेकर इनका इस्तेमाल भी करें.

  • बुवाई के बाद 20 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर की दर से देने पर पैदावार ज्यादा मिलती है.

सिंचाई (Irrigation)

मेथी की खेती करते वक्त करीब 4  बार सिंचाई करना अच्छा रहता है. अगर खेती भाजी के लिए की जा रही है, तो हर कटाई के बाद सिंचाई करनी चाहिए. लेकिन बीज के लिए फसल ली जा रही है, तो बोआई के 1  महीने बाद और फूल बनते समय सिंचाई जरूर करनी चाहिए. फलियां भरते वक्त भी 1 सिंचाई करने से बीजों की तादाद बढ़ती है.

खरपतवारों की रोकथाम (Weed prevention)

मेथी की फसल शुरुआत में धीमी गति से बढ़ती है, इसलिए इस वक्त खेत से खतरपतवार निकाल देने चाहिए, वरना वे मेथी के पौधों से ज्यादा बढ़ कर पैदावार घटा देते हैं, लेकिन 1 महीने के बाद फसल तेजी से बढ़ती है. तब खरपतवार ज्यादा नहीं फैल पाते है. तो वहीं बोआई से पहले फ्लूक्लोरेलीन नाम की दवा 1 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में मिला दें, तो खरपतवार ज्यादा नहीं होते है.

कटाई और पैदावार (Harvesting and production)

पत्ती यानी भाजी वाली फसल की पहली कटाई बुवाई के 3 हफ्ते बाद की जाती है. इस वक्त पौधों की ऊंचाई करीब 25-30 सेंटीमीटर तक हो जाती है. आपको बता दें कि हमारे देश में मेथी की कटाई अलग-अलग तरीके से की जाती है. तो वहीं कभी-कभी पूरा पौधा ही जड़ सहित उखाड़ कर गुच्छे बनाकर बेचा जाता है, या फिर डालियों को काट कर बेचा जाता है. इसके अलावा कसूरी मेथी की कटाई देर से की जाती है. ध्यान रहे कि अगर मेथी की कटाई ज्यादा की जाएगी, तो उसका बीज कम मिलता है, इसलिए मेथी की कटाई तभी करनी चाहिए, जब बाजार में भाव अच्छे मिलते हो.

जानकारी के लिए बता दें कि अगर 1 बार कटाई के बाद बीज लिया जाए, तो औसत पैदावार करीब 6-8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर मिलती है और 4-5 कटाइयां की जाएं तो यही पैदावार घट कर करीब 1 क्विंटल प्रति हेक्टेयर रह जाती है. भाजी या फिर हरी पत्तियों की पैदावार करीब 70-80 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक मिलती है. तो वहीं नवंबर और मार्च,अप्रैल में भाजी महंगी बिकती है, इसलिए जल्द या देर से ली जाने वाली किस्में बोई जानी चाहिए. आपको बता दें कि मेथी की पत्तियों को सुखाकर गर्मियों में बेचा जाता है जिसके 100 रुपए प्रति किलोग्राम तक दाम मिल जाते हैं. 

अगर वैज्ञानिक तरीके से मेथी की खेती की जाए, तो 1 हेक्टेयर से करीब 50000 रुपए तक कमाया जा सकता है. बता दें कि भारत में राजस्थान और गुजरात मेथी पैदा करने वाले दो खास राज्य हैं. राजस्थान में लगभग 80 प्रतिशत ज्यादा मेथी का उत्पादन किया जाता है.

English Summary: Scientific way of cultivating fenugreek seeds Published on: 27 November 2019, 12:00 PM IST

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