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पादप के उचित वृद्धि तथा विकास के लिये आवश्यक 17 अनिवार्य तत्वों में से गंधक एक महत्वपूर्ण तत्व है. फसलों की पैदावार बढ़ाने में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस तथा पोटाश जैसे आवश्यक तत्वों के रूप में की गई है. तिलहन फसलों में तेल निर्माण के लिये आवश्यक होने के कारण इन फसलों के लिये यह अद्वितीय तत्व माना गया है. सल्फर के उपयोग पर विशेष ध्यान न दिये जाने के कारण तिलहन उत्पादन वाले क्षेत्रों में लगभग 41 प्रतिषत मृदाओं में गंधक की कमी देखी गई है. अतः गंधक की कमी कम करके अच्छा उत्पादन लिया जा सकता है.
सल्फर की कमी मुख्यतः निम्न कारणों से भूमि के अन्दर हो जाती है जिसकी तरफ कृषकों का ध्यान नहीं जाता.
1. फसलों के द्वारा गंधक का भारी दोहन.
2. गंधक मुक्त खाद का उपयोग.
3. अधिक उत्पादन के उद्देश्य से उगाने वाली फसलों को हल्की भूमि पर उगाने में गंधक-मुक्त खाद की ओर झुकाव.
4. गंधक दोहन तथा गंधक की भूमि में आपूर्ति के अन्तर का बढ़ना.
5. उर्वरक तथा जैविक खाद का कम उपयोग.
6. मुख्य तत्व नत्रजन, फॉस्फोरस तथा पोटेशियम वाली खाद को अधिक महत्व.
7. कूल गंधक की कमी, मोटे गंठन, कुल जैविक खाद की कमी तथा गंधक का निक्षालन तथा अपरदन.
8. नहरी जल से सिंचाई जिसमें गंधक की कमी पाई जाती है.
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गंधक की कमी के पौधों में लक्षण :
गंधक की कमी के लक्षण सर्वप्रथम नई पत्तियों पर दिखाई देते हैं. पत्तियाँ पीली हरे रंग की, तने पतले तथा कमजोर जड़े कड़ी हो जाती है. जिससे पौधों की वृद्धि रूक जाती है बाद में अधिक कमी की दशा में पूरा पौधा पीला पड़ जाता है. गंधक की कमी से चाय के पौधों में नई पत्तियॉं पीले रंग की हो जाती है.
सरसों : गंधक की कमी से पत्तियॉं सीधी खड़ी हुई तथा अन्दर की ओर मुड़ी हुई दिखाई देती है. प्रारम्भ में नई पत्तियों की निचली सतह पर लाल रंग बनता है, बाद में ऊपरी सतह पर भी आ जाता है.
सोयाबीन : शुरूआत में नई पत्तियॉं हल्की पीली हो जाती है परन्तु पुरानी पत्तियॉं सामान्य रहती है. कुछ समय बाद पत्तियॉं एवं पर्व छोटे आकार के हो जाते हैं एवं सम्पूर्ण पौधा पीला पड़ जाता है.
मूंगफली : नई पत्तियों का फलक छोटा पीला एवं सीधा खड़ा हो जाता है. पत्तियों का त्रिफलक ’’वी’’ आकार का हो जाता है. पौधे छोटे रह जाते हैं एवं मूंगफली कम बनती है जिससे नत्रजन स्थिरीकरण भी कम हो पाता है.
सूरजमुखी : शुरूआत में पुरानी पत्तियॉं सामान्य रहती है परन्तु कुछ ही समय बाद सम्पूर्ण पौधा पीला हो जाता है. सर्वप्रथम पौधे का शीर्ष भाग प्रभावित होता है, नई पत्तियॉं झुर्रीदार हो जाती है जिनका रंग हल्का पीला हो जाता है.
गंधक का पादप कार्यिकीय एवं जैव रसायनिक महत्व : गंधक कुछ महत्वपूर्ण एमिनों अम्लों जैसे-सिस्टिन तथा मिथिओनिन का आवष्यक घटक है. हरितलवक निर्माण मे इसका महत्वपूर्ण योगदान है. तेल के जैव उत्पादन, दलहनी फसलों में ग्रंथिका निर्माण तथा जैविक नत्रजन स्थिरीकरण और तिलहनी फसलों में सुडौल दानों के निर्माण में गंधक सहायक है. गंधक सल्फैडरिल प्रोटीन-एस.एच. समूह बनाने में सहायक है जो पादप को गर्मी तथा सर्दी प्रतिरोधक बनाने में सहायता करता है. तिलहन फसलों में विषेषतः सरसों में यह आइसोसाइनेट तथा सल्फोऑक्साइड के निर्माण में मदद करता है जिससे उत्पाद में विषेष गंध आती है. गंधक कार्बोहाइड्रेट उपापचय को नियंत्रित करता है तथा तिलहन की बाजार कीमत को बढ़ाता है.
गंधक के स्त्रोत : गंधक की कमी को दूर करने के लिये गंधक खाद का चयन विभिन्न फसलों, उनकी किस्मों तथा आसान उपलब्धि पर निर्भर करता है. पादप के लिये अनिवार्य तत्व के रूप में गंधक के स्त्रातों का विवरण सारणी में प्रस्तुत किया गया है.
सारणी - गंधक के मुख्य खाद तथा उनकी तत्व सांद्रता :
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इन सभी में जिप्सम सबसे सस्ता एवं आसानी से उपलब्ध होने वाला उर्वरक है.
गंधक प्रयोग का समय : सामान्यतया अधिकांश फसलों में गंधक का प्रयोग 20 से 25 किलोग्राम प्रति हेक्टर की दर से किया जाता है. यदि मृदा अम्लीय है तो अमोनियम सल्फेट तथा पोटेशियम सल्फेट का प्रयोग उपयुक्त रहता है. इसके विपरीत क्षारीय मृदा में जिप्सम या सिंगल सुपर फॉस्फेट का प्रयोग करना चाहिए. जिन स्थानों में तात्विक गंधक या पाइराइट काम में लाया जावे वहॉं के लिये पौधों के रोपण से 2 से 4 सप्ताह पूर्व ही खेत में डाल देना चाहिए. इतने समय में जब तक पौधे बड़े होंगे तब तक गंधक मिट्टी में घुल-मिलकर पौधों द्वारा अवशोषित करने योग्य हो जायेगा. इसकी कमी को दूर करने के लिये अमोनियम सल्फेट का घोल डालना चाहिए. मूंगफली की अच्छी पैदावार लेने के लिये सिंगल सुपर फॉस्फेट तथा जिप्सम का प्रयोग कई भागों में करना चाहिए जिससे गंधक व चूना भरपूर मिल सके. फसलों की अच्छी पैदावार के लिये उर्वरक की संतुलित मात्रा सही समय पर ही डालनी चाहिए.
लेखक :
योगेश कुमार साहू, महेन्द्र सिंह जदौन, आई.एस.तोमर, रविन्द्र सिकरवार
कृषि विज्ञान केन्द्र, झाबुआ
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