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एमपी, निमाड़ के लोग भी चख सकेंगे 'थाई अमरूद'

मध्य प्रदेश के निमाड़ में किसानों ने पारंपरिक खेती करने की बजाय कृषि क्षेत्र में कुछ और नया करने की ठानी है। इसीलिए बड़वाह के भुवनेश्वर सेंगर और दूसरे किसानों ने थाईलैंड की हाइब्रिड नस्ल के अमरूद को अपने खेत में लगाने पर विचार किया है।

मध्य प्रदेश के निमाड़ में किसानों ने पारंपरिक खेती करने की बजाय कृषि क्षेत्र में कुछ और नया करने की ठानी है। इसीलिए बड़वाह के भुवनेश्वर सेंगर और दूसरे किसानों ने थाईलैंड की हाइब्रिड नस्ल के अमरूद को अपने खेत में लगाने पर विचार किया है। उन्होंने इसके लिए सबसे पहले इस खेती के बारे में इंटरनेट पर जानकारी को जुटाया और उसके बाद फिर इस संबंध में रिसर्च की है। बाद में उन्होंने अपने गृहनगर बड़वाह के पास छोटी माचलपुर स्थित अपने खेत में थाई अमरूद की खेती का कार्य करने की शुरूआत की है। इस खेती को करने से क्षेत्र के किसानों को नई तकनीक के बारे में काफी नया सिखने को भी मिल रहा है।

लोग चख सकेंगे थाईलैंड के अमरूद का स्वाद

किसानों का निमाड़ में थाई अमरूद की खेती करने का प्रयास कारगार साबित हुआ है। अमरूदों की पहली खेप भी निकल चुकी है। सेंगर का कहना है कि उनके लिए इस खेती को करना बेहद ही मुश्किल और कठिन कार्य था। रायपुर से वीएसआर कंपनी के थाई अमरूद की प्रजाति हाइब्रिड बीज को मांगवाकर उसे अपने खेत में लगवाया है। इसकी खेती के लिए लगातार दो साल तक मेहनत की है जिसके बाद यह अमरूद बिकने के लिए तैयार है। खेत से निकले इस हाइब्रिड अमरूद का वजन 800 ग्राम से लेकर डेढ़ किलो तक का है जो कि आमतौर पर यहां के खेतों में देखने को नहीं मिलता है। उन्होंने कहा कि यह नया अमरूद स्वाद में भी काफी मीठा होता है जिसकी दिल्ली में काफी डिमांड होती है। इसे आजादपुर मंडी में बेचा जाएगा। निमाड़ क्षेत्र में यह हाइब्रिड अमरूद लोगों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है। आसपास के किसानों के अलावा फलों के उत्पादन में रूचि रखने वाले किसान भी इस थाई अमरूद की खेती को देखने आ रहे है। ये खेती किसानों को उन्नत किस्म के बीजों, तकनीकों, किस्मों को खेती में प्रयोग करने के लिए प्रेरित करेगी।

देसी अमरूद से बेहतर है हाइब्रिड किस्म

कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह के अमरूद की खेती यहां के क्षेत्र के लिए काफी नई है। शुरूआत में इस अमरूद की प्रजाति को खेतों में लगाने में काफी समस्या का सामना करना पड़ा। इसके लिए इंटरनेट से पूरी जानकारी ली गई। दो लोगों को इसकी ट्रेनिंग के लिए रतलाम भी भेजा गया। इस खेती में पौधे की कांट-छांट और देखभाल का तरीका भी काफी अलग होता है। जब यह बड़े होते हैं और इसके पौधे में फल आते है तो कीटों से बचाने के लिए उसे फोम नेट, पॉलिथिन व पेपर की थ्री लेयर से कवर किया गया है। इसकी क्वालिटी काफी बेहतर होती है, साथ ही न्यूट्रीएंट मैंनेजमेंट के कारण इसका स्वाद भी काफी बेहतर क्वालिटी का होता है।

किशन अग्रवाल, कृषि जागरण

English Summary: People of MP, Nimar will also be able to taste 'Thai guava' Published on: 17 December 2018, 03:16 PM IST

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