धनिया एक बहु उपयोगी मसाले वाली लाभकारी फसल है. धनिया के बीज एवं पत्तियाँ भोजन को सुगंधित एवं स्वादिष्ट बनाने के काम आते हैं. धनिया के बीज में बहुत अधिक औषधीय गुण पाये जाते हैं. धनिया का लौंगिया रोग प्रोटोमाइसीजमैक्रोस्पोरस नामक फंगस से होता है. यह धनिया का बहुत ही हानिकारक रोग है.
बीज का आकार लोंग की तरह तथा सामान्य से कई गुना बड़ा हो जाता है. इसलिए इसे लोंगिया रोग कहते हैं. इस रोग के लक्षण पौधे के सभी भागों जैसे-पत्ती, तना, फूल तथा बीज पर पाये जाते हैं. संक्रमित भाग सूजकर छाले के समान हो जाता है तथा तने टेढे-मेढे हो जाते हैं. रोग की अधिक आक्रामक अवस्था में 15-25 प्रतिशत तक का नुकसान हो जाता है.
रोग के फैलाव के लिए अनुकूल स्थति लगातार बादल छाए रहना एवं वातावरण में अधिक नमी होना है. जब जमीन में नमी की मात्रा अधिक और रात के तापमान में कमी और सुबह की ओस सहित दिन के तापमान में वृद्धि होने लगती है तब क्लेमाइडोस्पोर बीजाणु जमाव शुरू करते हैं और धीरे-धीरे पूरे तने, पत्तियों तथा फलों पर फैल जाते हैं. यह बीमारी देरी से बोयी गई फसलों पर अधिक दिखाई देती है.
कैसे करें लोंगिया रोग की पहचान (How to identify Stem Gall disease)
इस रोग के लक्षण पौधे के उपरी भाग पत्ती, तना, फूल तथा फल पर पाये जाते हैं. फूल लगने के पहले ही रोग-जनक फंगस नरम एवं मुलायम शाखाओं पर आक्रमण कर उनका शीर्ष भाग मोड देते है और संक्रमित भाग सूज जाता है. इसके साथ ही जमीन के निकट तने पर छोटी-छोटी पिटिकाएं दिखने लगती हैं. ये पिटिकाएँ उभरी हुई, भूरी अर्ध-वृत्ताकार से हंसियाकार, लम्बी तथा रूखी हो जाती हैं और धीरे-धीरे बढ़कर अनेक पिटिकाओं के मिल जाने से एक लम्बी धारी-सी बन जाती है. बाद में ये पिटिकाएँ तने के ऊपरी भाग पर भी बनती है. अधिक संक्रमित पौधों के तनों की सतह पिटिकाओं से पूरी तरह ढक जाती है.
संक्रमित पौधों के तने पिटिकाएँ बनने के कारण विशेष रूप से लम्बे हो जाते हैं. नीचे वाली संक्रमित पत्तियाँ भूमि पर गिरकर धीरे-धीरे जमीन में मिल जाती हैं. इस तरह के तीव्र संक्रमण के कारण बीज की वृद्धि रूक जाती है. संक्रमित बीज सामान्य बीज से कई गुना बड़े हो जाते है जो बीज तथा मसाले के लिए ठीक नहीं होते. रह जाते. एक गुच्छे के सभी या केवल एक या अधिक बीज संक्रमित हो सकते हैं.
लोंगिया रोग का प्रबंधन कैसे करें? (How to manage Stem Gall disease)
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रोग ग्रस्त फसल अवशेष को जलाकर नष्ट करें.
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पिटिका युक्त बीज की बुवाई नहीं करें बल्कि रोग रहित फसल से प्राप्त बीज को ही बुवाई के काम में लें.
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कार्बेंडाजिम 2 ग्राम/किग्रा. बीज दर से उपचारित कर बुवाई करें.
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दो से तीन वर्ष का फसल चक्र अपनायें.
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ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करें एवं उचित फसल चक्र अपनाएँ.
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धनिया की बुवाई 30 अक्टूबर से 15 नवम्बर के मध्य करना सही पाया गया जिससे कम से कम लौंगिया रोग का प्रकोप एवं अधिक दाना उपज प्राप्त होती है.
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धनिया फसल में लौंगिया रोग हेतु हैक्साकोनाजोल 5 ई.सी. या प्रोपीकोनाजोल 25 ई.सी का 2 मिली./ किग्रा बीज की दर से बीजोपचार करें एवं खड़ी फसल में लक्षण दिखाई देने पर हैक्साकोनाजोल 5 ई.सी. या प्रोपीकोनाजोल 25 ई.सी का 400 मिली प्रति 200 लीटर पानी में मिलाकर एक एकड़ क्षेत्र में छिड़काव कर दें.
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रोग से बचाव के लिए बुवाई के 45, 60 तथा 75 दिन बाद छिड़काव करने पर प्रभावी नियंत्रण होता है.
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