देश के कई राज्यों के किसानों के लिए प्याज प्रमुख फसल है. इसमें कई औषधीय गुण समेत प्रोटीन और कुछ विटामिन भी पाएं जाते हैं. इसका उपयोग सब्जी का मसाला, सलाद, सूप और अचार में किया जाता है. इसकी खेती महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, ओडिशा, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और बिहार में प्रमुख रूप से की जाती है. प्याज की फसल से अधिक उपज लेने के लिए उन्नत किस्म और विधि का इस्तेमाल करना चाहिए. आइए आज किसान भाईयों को प्याज की उन्नत खेती और किस्मों की जानकारी देते हैं.
उपयुक्त जलवायु
मुख्य तौर पर प्याज सर्दियों के मौसम की फसल है. रबी सीजन में बुवाई नवंबर-दिसम्बर में की जाती है. कंद बनने से पहले प्याज के लिए 210 सेंटीग्रेड तामक्रम उपयुक्त माना जाता है, जबकि इससे पहले 150 से 250 सेंटीग्रेड का तामपान उपयुक्त होता है.
उपयुक्त मिट्टी
प्याज की खेती कई तरह की मिट्टी में की जा सकती है. इसके साथ ही कार्बन युक्त और दोमट बुलई मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है. ध्यान रहे कि खेत में जलभराव न होता हो.
खेत की तैयारी
प्याज की अच्छी पैदावार के लिए खेत की 4 से 5 बार अच्छी जुताई करनी चाहिए. हर जुताई के बाद पाटा लागाकर मिट्टी को भूरभूरी बना लेना चाहिए.
प्याज की उन्नत किस्में
भीमा लाला- प्याज की इस किस्म की बुवाई महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में की जाती है. इसकी बुवाई से लगभग 30 से 32 टन प्रति हेक्टेयर तक पैदावार मिल जाती है. रबी सीजन के प्याज को 3 महीने तक भंडारण किया जा सकता है. यानी ये जल्दी सड़ता नहीं है.
भीमा श्वेता- अक्सर लोग लाल प्याज की खाते रहे हैं, लेकिन देश के कई इलाकों में सफेद रंग के प्याज की भी खेती की जाती है. इस किस्म की खेती फिलहाल रबी सीजन में की जाती है. इस किस्म को महाराष्ट्र, गुजरात, छत्तीसगढ़, ओडिशा, राजस्थान, तमिलनाडु और कर्नाटक के किसान उगाते हैं. यह लगभग 110 से 120 दिन में तैयार हो जाती है, जिससे लगभग 26 से 30 टन तक पैदावार प्राप्त हो जाती है. इसे भी 3 महीने तक भंडारित किया जा सकता है.
बुवाई का समय
रबी प्याज के लिए मध्य अक्टूबर से नवंबर में बुवाई की जाती है.
बीज की मात्रा
रबी में प्रति हेक्टर बुवाई के लिए 8 से 10 किलो बीज की आवश्यकता होती है.
खाद व उर्वरक
प्याज के अधिक उत्पादन के लिए सड़ी हुई गोबर की खाद को 20 से 30 दिन बुवाई से पहले मिट्टी में मिला देना चाहिए. खेत की आखिरी जुताई के समय फासफोरस और पोटाश की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन का तीसरा भाग देना चाहिए.
सिंचाई प्रबंधन
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बुवाई के बाद हल्की सिंचाई करना चाहिए
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सर्दियों में सिंचाई लगभग 8 से 10 दिन के अंतर पर करनी चाहिए.
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जिस समय कंद बढ़ रहे हों, उस समय सिंचाई जल्दी करते हैं.
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फसल की अच्छी पैदावार के लिए सिंचाई ड्रिप से भी करनी चाहिए.
खरपतवार नियंत्रण
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प्याज के पौधे की जड़े अपेक्षाकृत कम गहराई तक जाती है, इसलिए अधिक गहराई तक गुडाई नहीं करनी चाहिए.
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अच्छी फसल के लिए 3 से 4 बार खरपतवार निकल देना चाहिए.
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खरपतवारनाशी का भी प्रयोग कर सकते हैं.
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पेंडीमेथिलीन 3.5 लीटर प्रति हेक्टर बुवाई के 3 दिन बाद तक 800 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़क सकते हैं.
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खरपतवार नाशक दबा डालने के बाद भी 40 से 45 दिनों के बाद एक निराई-गुड़ाई करना चाहिए.
खुदाई और प्याज को सुखाना
जब रबी सीजन में प्याज की फसल पक जाती है, तो पत्तियां सुखकर गिरने लगती हैं. ऐसे में सिंचाई बंद कर देनी चाहिए. इसके साथ ही 15 दिन बाद खुदाई कर लेना चाहिए. फसल की अधिक सिंचाई करने पर कंदों की भण्डारण क्षमता कम हो जाती है. इसके अलावा प्याज के कंदों को भंडारण में रखने से पहले सुखाने के लिए छाया में जमीन पर फैला दें. इस दौरान कंदों को सीधी धूप और वर्षा से बचाना चाहिए.
पैदावार
अगर रबी सीजन में उपयुक्त तकनीक से प्याज की खेती की जाए, तो प्रति हेक्टर लगभग 350 से 450 क्विंटल प्याज के कंदों की पैदावार हो जाती है.
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