हमारे देश में सूरजमुखी बेहद कारगर तिलहन फसल मानी जाती है. यह भारत में 1969-70 में हुई खाद्य तेल की कमी के बाद उगाई जाने लगी है. सूरजमुखी का तिलहनी फसलों में खास स्थान है. हमारे देश में मूंगफली, सरसों, तोरिया व सोयाबीन के बाद यह भी एक खास तिलहनी फसल है. सूरजमुखी की औसत उपज 15-20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है, जो कि बहुत कम है. उपज कम होने के खास कारणों में अच्छी किस्मों के कम इस्तेमाल व खाद के असामान्य इस्तेमाल के साथ फसल को कीटों व बीमारियों द्वारा नुकसान पहुंचाना भी शामिल है. सूरजमुखी की फसल 80-120 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है
उपयुक्त किस्में:
कृषि जलवायु क्षेत्र:- 30 इंच से कम वर्षा वाले क्षेत्रों में
क्र. |
किस्म |
उपज |
अवधि |
विशेष गुण |
1. |
मार्डन |
6-8 क्वि./हे. |
80-90 दिन |
पौधे की ऊंचाई लगभग 90-100 से.मी. तक होती है बहु फसली क्षेत्रों के लिये उपयुक्त । तेल की मात्रा 38-40 प्रतिशत होती है । |
2. |
बी.एस.एच.-1 |
10-15 क्वि./हे. |
90-95 दिन |
तेल की मात्रा 41 प्रतिशत होती है किट्ट से प्रतिरोधक। पौधे की ऊंचाई 130-150 से.मी. रहती है। |
3. |
एम.एस.एच. - |
17 15-18 क्वि./हे. |
90-100 दिन |
तेल की मात्रा 42-44 प्रतिशत होती है । पौधे की ऊंचाई 170-200 से.मी. होती है। |
4. |
एम.एस.एफ.एस. -8 |
15-18 क्वि./हे. |
90-100 दिन |
तेल की मात्रा 42-44 प्रतिशत होती है । पौधे की ऊंचाई 170-200 से.मी. होती है। |
5. |
एस.एच.एफ.एच.-1 |
15-20 क्वि./हे. |
90-95 दिन |
सतपुड़ा मालवा एवं निमार के लिए उपयुक्त है। तेल की मात्रा 40-42 प्रतिशत होती है । पौधे की ऊंचाई 120-150 से.मी. होती है। |
6. |
एम.एस.एफ.एच.-4 |
20-30 क्वि./हे. |
90-95 दिन |
तेल की मात्रा 42-44 प्रतिशत होती है । पौधे की ऊंचाई 120-150 से.मी. होती है।रबी एवं जायद के लिए उपयुक्त हैं। |
7. |
ज्वालामुखी |
30-35 क्वि./हे. |
85-90 दिन |
तेल की मात्रा 42-44 प्रतिशत होती है । पौधे की ऊंचाई 160-170 से.मी. होती है। |
8. |
ई.सी. 68415 |
8-10 क्वि./हे. |
110-115 दिन |
पौधे की ऊंचाई लगभग 180-200 से.मी. तक होती है पिछैती बुवाई के लिये उपयुक्त तेल की मात्रा 42-46 प्रतिशत होती है । |
9. |
सूर्या |
8-10 क्वि./हे. |
90-100 दिन |
पौधे की ऊंचाई लगभग 130-135 से.मी. तक होती है। पिछैती बुवाई के लिये उपयुक्त । तेल की मात्रा 38-40 प्रतिशत होती है । |
मिट्टी व जलवायु :
पानी के अच्छे निकास वाली सभी तरह की मिट्टियों में इस की खेती की जा सकती है. लेकिन दोमट व बलुई दोमट मिट्टी जिस का पीएच मान 6.5-8.5 हो, इस के लिए बेहतर होती है. 26 से 30 डिगरी सेंटीग्रेड तापमान में सूरजमुखी की अच्छी फसल ली जा सकती है.
खेत की तैयारी :
खेत की पहले हलकी फिर गहरी जुताई कर के मिट्टी को भुरभुरी और बराबर कर लेना चाहिए. आखिरी जुताई से पहले एफवाईएम की सही मात्रा डाल दें. रीज प्लाऊ की मदद से बोआई के लिए तय दूरी पर मेंड़ें बना लें.
बुवाई प्रबंधन -
(क) बोनी का उपयुक्त समय:-
सिंचित क्षेत्रों से खरीफ फसल की कटाई के बाद अक्टूबर माह के मध्य से नवम्बर माह के अंत तक बोनी करना चाहिए। अक्टूबर माह की बोनी में अंकुर.ा जल्दी और अच्छा होता है। देर से बोनी करने में अंकुरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। असिंचित क्षेत्रों (वर्षा निर्भर खेती) में सूरजमुखी की बोनी वर्षा समाप्त होते ही सितंबर माह के प्रथ्म सप्ताह से आखरी सप्ताह तक कर देना चाहिए। ग्रीष्म (जा़यद) फसल की बोनी का समय जनवरी माह के तीसरे सप्ताह से फरवरी माह के अंत तक उपयुक्त होता है। इसी समय के बीच में बोनी करना चाहिए। बोनी का समय इस तरह से निश्चित करना चाहिए ताकि फसल वर्षा प्रारंभ होने पूर्व काटकर गहाई की जा सके। उन्नत किस्मों के बीज की मात्रा - 10 किग्रा/हे. संकर किस्मों के बीज की मात्रा - 6 से 7 किग्रा/हे.
(ख) कतार से कतार एवं पौधे से पौधे की दूरी –
पिछेती खरीफ एवं जा़यद की फसल के लिए कतार से कतार की देरी 45 सेमी एवं रबी फसल के लिए 60 सेमी होनी चाहिए। पौधे से पौधे की दूरी 25 से 30 सेमी रखना चाहिए।
(ग) बोने की गहराई – 4 से 6 सेमी
(घ) बुवाई का तरीका –बोनी कतारों में सीडड्रिल की सहायता से अथवा तिफन/दुफन से सरता लगाकर करें।
बीजोपचार - (क) बीजोपचार का लाभ - बीजों की अंकुरण क्षमता बढ़ जाती है एवं फंफूंदजन्य बीमारियों से सुरक्षा होती है।
(ख) फंफूंदनाशक दवा का नाम एवं मात्रा - बीज जनित रोगों की रोकथाम के लिए 2 ग्राम थायरम एवं 1 ग्राम कार्बनडाजिम 50ः ूच के मिश्रण को प्रति किलो ग्राम बीज की दर से अथवा 3 ग्राम थायरम/किग्रा बीज की दर से उपचारित करना चाहिए। डाउनी मिल्डयू बीमारी के नियंत्रण के लिए रेडोमिल 6 ग्राम/किग्रा बीज की दर से बीज उपचारित करें।
(ग) दवा उपयोग करने का तरीका - बीजों को पहले चिपचिपे पदार्थ से भिगोकर दवा मिला दें फिर छाया में सुखाएं और 2 घंटे बाद बोनी करें।
जैव उर्वरक का उपयोग -
(क) जैव उर्वरकों के उपयोग से लाभ - ये पौधों को पोषक तत्व उपलब्ध कराने का कार्य करते हैं।
(ख) जैव उर्वरकों के नाम एवं अनुषंसित मात्रा - एजोटोबेक्टर जैव उर्वरक का एक पैकेट एक हेक्टेयर बीज के उपचार हेतु प्रयोग करें। पी. एस. बी. जैव उर्वरक के 15 पैकेट को 50 किग्रा गोबर या कम्पोस्ट खाद में मिलाकर दें।
(ग) जैव उर्वरकों के उपयोग की विधि - जैव उर्वरकों के नाम एवं अनुशंसित मात्रा के अनुसार आखिरी बखरनी के समय प्रति हेक्टेयर खेत में डालें। इस समय खेत में नमी होना चाहिए।
पोषक तत्व प्रबंधन -
(क) कम्पोस्ट की मात्रा एवं उपयोग - सूर्यमुखी के अच्छे उत्पादन के लिए कम्पोस्ट खाद 5 से 10 टन/हे. की दर से बोनी के पूर्व खेत में डालें।
(ख) मिट्टी परीक्षण के लाभ - पोषक तत्वों का पूर्वानुमान कर संतुलित खाद दी जा सकती है।
(ग) संतुलित उर्वरकों की मात्रा देने का समय एवं तारीख - बोनी के समय 30-40 किग्रा नत्रजन, 60 किग्रा स्फुर एवं 30 किग्रा पोटाश की मात्रा प्रति हेक्टेयर खेत में डालें। खड़ी फसलों में नत्रजन की 20 - 30 किग्रा/हे मात्रा बोनी के लगभग एक माह बाद प्रथम सिंचाई के बाद पौधे के कतारों के बाजू में दें।
(घ) संतुलित उर्वरकों के उपयोग में सावधनियां:- समय पर संतुलित खाद उचित विधि से दें एवं अधिक खाद का प्रयोग न करें।
(ङ) सूक्ष्म तत्वों की उपयोगिता, मात्रा एवं प्रयोग का तरीका- आवश्यकतानुसार।
नींदा प्रबंधन -
(क) खरपतवार प्रबंधन की विभिन्न विधियां -
1. गर्मी में सुबह हल्की सिंचाई करके खेत को पॉलीथीन से ढक दें जिससे उष्मा के कारण खरपतवार नष्ट हो जाते है।
2. बोनी के पूर्व वर्षा होने पर जो नींदा अंकुरित हो गए हैं उन्हें हल्का बखर चलाकर नष्ट करें।
3. प्रमाणित बीजों का उपयोग करें।
4. समय पर बोनी करें।
5. पौधों की प्रति इकाई संख्या पर्याप्त होनी चाहिए।
6. बोनी कतारों में करें।
7. उर्वरकों का उपयोग बीज के नीचे करें।
8. खेत में हो चलाकर कतारों के बीच से नींदा आसानी से निकाले जा सकते है।
9. कुल्पी या हाथ से भी नींदा आसानी से हटाए जा सकते है।
10. हँसिये से भी नींदा हटाए जा सकते है।
11. सूखी घास, भूसा, पैंरा इत्यादि कतारों में डालकर नींदा नियंत्रित की जा सकती है।
12. खरपतवारनाशी चक्र अपनाये।
13. खाद और फसल चक्र अपनाये।
(ख) रासायनिक नींदानाशक -
बुआई के पूर्व
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कीट प्रबंधन –
क्र. |
कीट का नाम |
लक्षण |
नियंत्रण हेतु अनुशंशित दवा |
दवा की व्यापारिक मात्रा/हे. |
1. |
कटुआ सुण्डी |
अंकुरण के पश्चात व बाद तक भी पौधों को जमीन की सतह के पास से कट कर नष्ट कर देती हैं। |
मिथाइल पैराथियान |
2 प्रतिशत चूर्ण 25 किग्रा. प्रति हेक्टेअर की दर से भुरकाव करें। |
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2. |
पत्ते कुतरने वाली लट |
दो तीन प्रकार की पत्ते कुतरने वाली लटों (तम्बाकू केटर पिलर , बिहार हेयरी केटर पिलर, ग्रीन केटर पिलर) का प्रकोप देखा गया है। |
डायमिथोएट 30 ई.सी. |
875 मि.ली. का प्रति हेक्टेअर |
3. |
तना फली छेदक |
इस की सुंडियां कोमल पत्तों को काटकर व फूलों में छेड़ करके खा जाती हैं। |
मोनोक्रोटोफास 36 डब्लू.एस.सी |
एक लीटर प्रति हेक्टेअर |
कटाई व मड़ाई -
सूरजमुखी के बीजों में नमी मात्रा 20 प्रतिशत अथवा मुंडको का पिछला भाग पीला भूरा रंग का हो जाये तब मुंडको की कटाई करनी चाहिए। काटने के पशचात मुंडको को छाया में सूखा ले। इसके बाद डंडे अथवा थ्रेशर के द्वारा इसकी मड़ाई की जा सकती है। बीजो को भंडार करते समय नमी की मात्रा 10 प्रतीशत से कम रहनी आवश्यक है।
उपज एवं भंडारण क्षमता –
उपज
कृषि कि उन्नत तकनीकों को अपना कर सुरज्मुखि कि खेति की जाएँ तो असिंचित क्षेत्रों में इसकी पैदावर 12-15 क्विंटल तथा सिंचित क्षेत्रों में 20-25क्विंटल प्रति हैक्टर प्रताप होती है।
सिंचाई :
बोआई के तुरंत बाद पहली सिंचाई करें फिर 7-8 दिनों के अंतर पर करें. ध्यान रखें कि बोआई के दिन, कलिका बनने के समय (30 से 35 दिन), फूल खिलने के समय (40 से 55 दिन) व दाना भरने के समय (65 से 70 दिन) नमी अधिक न हो.
रोग प्रबंधन –
(ख) भंडारण क्षमता –
1.जरूरत के समय तेल निकालने के लिए बीजों का भंडारण आवश्यक है।
2.अधिक समय के लिए सूरजमुखी का भंडारण नहीं किया जा सकता है।
3.ज्यादा समय तक भंडारण करने से तेल की मात्रा कम होती है और इसका विक्रयमुल्य कम हो जाता है
4.भंडारण पूसा बिन या हवा रहित पात्रों में किया जा सकता है।
अधिक उपज प्राप्त करने हेतु प्रमुख बिंदु –
(क) मिट्टी परीक्षण एवं पोषक प्रबंधन करवाएं।
(ख) बीज उपचार करें।
(ग) समय पर एवं सही विधि से खाद आदि का प्रयोग करें।
(घ) बीज, कीटनाशक, दवाओं आदि की अनुशाषित किस्मों का उचित मात्रा में ही प्रयोग करें।
(ड़) अधिक उत्पादन देने वाली संकर किस्मों का प्रयोग करें।
आर्थिक आय व्यय की गणना -
फसल का नाम |
सूरजमुखी |
|
फसल प्रक्रियाएं |
कार्य |
लागत (रू.) |
भूमि की तैयारी |
श्रमिक |
600 |
ट्रेक्टर |
1500 |
|
बैल |
500 |
|
खाद |
खाद |
4000 |
जैव उर्वरक |
पी.एस.बी. |
200 |
एजोटोबेक्टर |
200 |
|
उर्वरक |
यूरिया |
2400 |
डी. ए. पी. |
4800 |
|
बीज |
बीज |
4000 |
बुवाई |
मजदूरी |
600 |
ट्रेक्टर |
1200 |
|
गैप फिलिंग |
1000 |
|
अंतराशस्य क्रियाएं |
मजदूरी |
1500 |
बैल |
1500 |
|
उर्वरक अनुप्रयोग |
मजदूरी |
1500 |
निंदाई गुड़ाई |
- |
3000 |
सिंचाई |
सिंचाई मजदूरी |
2000 |
सिंचाई लागत |
2000 |
|
कीटनाशक |
कार्बेन्डाजिम |
800 |
क्लोरोपाइरीफाॅस |
600 |
|
इमिडा क्लोप्रिड |
1000 |
|
कटाई |
मजदूरी |
5000 |
कुल लागत(रू./क्विं) |
39900 |
|
कुल लागत पर 12 प्रतिशत आकस्मिक व्यय |
4788 |
|
कुल लागत पर 10 प्रतिशत रखवाली कीमत |
3990 |
|
कृषि कार्य की कुल लागत (रू.) |
48678 |
|
उपज(क्विं/हे.) |
25 |
|
बाजार भाव(रू./क्विं) |
4000 |
|
उत्पाद की कुल कीमत (रू.) |
100000 |
|
प्रति हे. कुल बचत (रू.) |
51322 |
|
बी. सी. अनुपात |
2.05 |
लेखक : सचि गुप्ता, अविनाश पटेल एवं निशाकान्त मौर्य
शोध छात्र, उद्यान विज्ञान विभाग
शोध छात्र, सस्य. विज्ञान विभाग
सब्जी विज्ञान विभाग
नरेन्द्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय,
कुमारगंज, अयोध्या(उत्तर प्रदेश)- 224229
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