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आधुनिक तरीके से राजमा की खेती करने का तरीका और उन्नत किस्मों की जानकारी

अक्टूबर- नवंबर माह राजमा की खेती हेतु उपयुक्त होता है. इसलिए इसकी खेती रबी ऋतु में की जाती है. ऐसे में अभी इसके लिए उपयुक्त समय है. यह मैदानी क्षेत्रों में अधिक उगाया जाता है. राजमा की अच्छी पैदावार हेतु 10 से 27 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान की जरूरत होती है. राजमा हल्की दोमट मिट्टी से लेकर भारी चिकनी मिट्टी तक में उगाया जा सकता है. राजमा उन्नतशील प्रजातियां जैसे कि पीडीआर 14, मालवीय 137, बीएल 63, अम्बर, आईआईपीआर 96-4, उत्कर्ष, आईआईपीआर 98-5, एचपीआर 35, बी, एल 63 एवं अरुण आदि है.

मनीशा शर्मा

अक्टूबर- नवंबर माह राजमा की खेती हेतु उपयुक्त होता है. इसलिए इसकी खेती रबी ऋतु में की जाती है. ऐसे में अभी इसके लिए उपयुक्त समय है. यह मैदानी क्षेत्रों में अधिक उगाया जाता है. राजमा की अच्छी पैदावार हेतु 10 से 27 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान की जरूरत होती है. राजमा हल्की दोमट मिट्टी से लेकर भारी चिकनी मिट्टी तक में उगाया जा सकता है. राजमा उन्नतशील प्रजातियां जैसे कि पीडीआर 14, मालवीय 137, बीएल 63, अम्बर, आईआईपीआर 96-4, उत्कर्ष, आईआईपीआर 98-5, एचपीआर 35, बी, एल 63 एवं अरुण आदि है.

भूमि

दोमट तथा हल्की दोमट भूमि अधिक उपयुक्त है. पानी के निकास की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए.

भूमि की तैयार

प्रथम जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा 2-3 जुताई देशी हल या कल्टीवेटर से करने पर खेत तैयार हो जाता है. बुवाई के समय भूमि में पर्याप्त नमी अति आवश्यक है.

बीज की मात्रा

120 से 140 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30-40 सेमी० तथा पौधे से पौधा 10 सेमी० . बीज 8-10 सेमी० गहराई में थीरम से बीज उपचार करने के बाद डालना चाहिए ताकि पर्याप्त नमी मिल सके.

बुवाई

अक्टूबर का तृतीय एवं चतुर्थ सप्ताह बुवाई के लिए उपयुक्त है. पूर्वी क्षेत्र में नवम्बर के प्रथम सप्ताह में भी बोया जाता है. इसके बाद बोने से उत्पादन घट जाता है.

उर्वक

राजमा में राइजोबियम ग्रन्थियां न होने के कारण नत्रजन की अधिक मात्रा में आवश्यकता होती है. 120 किग्रा० नत्रजन, 60 किग्रा०फास्फेट एवं 30 किग्रा० पोटाश प्रति हेक्टेयर तत्व के रूप में देना आवश्यक है. 60 किग्रा० नत्रजन तथा फास्फेट एवं पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय तथा बची आधी नत्रजन की मात्रा टाप ड्रेसिंग में देनी चाहिए. 20 किग्रा०/हेक्टर गंधक देने से लाभकारी परिणाम मिले हैं. 2% यूरिया के घोल का छिड़काव 30 दिन तथा 50 दिन पर करने से उपज बढ़ती है.

सिंचाई

राजमा में 2 या 3 सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है. बुवाई के चार सप्ताह बाद प्रथम सिंचाई अवश्य करनी चाहिए. बाद की सिंचाई एक माह के अन्तराल पर करें, सिंचाई हल्के रूप में करना चाहिए ताकि पानी खेत में न ठहरे.

निराई-गुड़ाई

प्रथम सिंचाई के बाद निराई एवं गुड़ाई करनी चाहिए. गुड़ाई के समय थोड़ी मिट्टी पौधे पर चढ़ा देनी चाहिए ताकि फली लगने पर पौधे को सहारा मिल सके. फसल उगने के पहले पेन्डीमेथलीन का छिड़काव (3.3 लीटर/हेक्टर) करके भी खरपतवार नियंत्रण किया जा सकता है.

बीज शोधन

उपयुक्त फफूँदीनाशक पाउडर जैसे कार्बान्डाजिम या थीरम 2 ग्रा./प्रति किग्रा० बीज की दर से बीज शोधन करने से अंकुरण के समय रोगों का प्रकोप रूक जाता है.

रोग नियंत्रण

पत्तियों पर मौजेक देखते ही डाइमेथेयेट 30 प्रतिशत ई.सी. 1 लीटर अथवा इमिडाक्लोप्रिड 17.8 प्रतिशत एस.एल. की 250 मिली० मात्रा को 500-600 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करने से सफेद मक्खियों का नियंत्रण हो जाता है. जिससे यह रोग फैल नहीं पाता. रोगी पौधे को प्रारम्भ में ही निकाल दें ताकि रोग फैल न सके.

फसल कटाई एवं भण्डारण

जब फलियां पक जायें तो फसल काट लेनी चाहिए. अधिक सुखाने पर फलियां चटकने लगती हैं. मड़ाई या कटाई करके दाना निकाल लेते हैं.

English Summary: How to cultivate beans Climate and improved varieties suitable for Rajma cultivation Published on: 26 October 2019, 03:29 PM IST

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