देश के किसानों के द्वारा चीन के बाद सबसे अधिक गेहूं की खेती की जाती है, जिसके चलते वैज्ञानिकों के द्वारा गेहूं की नई किस्मों को समय-समय पर विकसित किया जाता है, ताकि किसान इन किस्मों को अपने खेत में लगाकर बढ़िया मुनाफा प्राप्त कर सकें. इसी क्रम में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान पूसा दिल्ली के द्वारा गेहूं की एचडी-3385 किस्म को तैयार किया गया है, जो बदलते मौसम और बढ़ते हुए तापमान में भी अच्छा उत्पादन देने में सक्षम है. गेहूं की एचडी-3385 किस्म की खासियत यह है कि यह कई रोगों के प्रति रोग प्रतिरोधी है. यह किस्म 123-147 दिन में पककर तैयार हो जाती है और 73.4 क्विंटल/हेक्टेयर तक पैदावार देती है.
गेहूं की इस किस्म की बुवाई लगभग देश के सभी राज्यों में की जा सकती है. इसके अलावा, एचडी-3385 किस्म अगेती किस्मों में से एक है. ऐसे में आइए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं कि यह कैसे किसानों के लिए फायदेमंद है-
गेहूं की एचडी-3385 किस्म ने अन्य सभी किस्मों को पछाड़ दिया
एचडी 3385 एक उच्च उपज देने वाली गेहूं की किस्म है, जो सिंचित क्षेत्रों, समय पर बोई गई परिस्थितियों में बढ़िया पैदावार देती है. गेहूं की यह किस्म उत्तर पश्चिमी और उत्तर पूर्वी मैदानी क्षेत्र के लिए उपयुक्त है. राष्ट्रीय स्तर पर डीबीडब्ल्यू 187, डीबीडब्ल्यू 222, एचडी 2967 और एचडी 3086 जैसे किस्मों से पैदावार के मामले में अव्वल है. गेहूं की एचडी 3385 को एनडब्ल्यूपीजेड में सभी परीक्षणों की श्रेणी में पहला और परीक्षण स्थानों में एनईपीजेड में तीसरा स्थान मिला प्राप्त किया है.
एचडी-3385 किस्म की मुख्य विशेषताएं
एनडब्ल्यूपीजेड में एचडी-3385 किस्म की औसत उपज 62.1 क्विंटल/हेक्टेयर है और संभावित उपज 73.4 क्विंटल/हेक्टेयर है. वहीं, एनईपीजेड में इसकी औसत उपज 63.90 क्विंटल/हेक्टेयर है और संभावित उपज 52.3 क्विंटल/हेक्टेयर तक है. इस किस्म की कुल राष्ट्रीय उपज औसत 58.30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है, जिसमें DBW 187 की तुलना में 5.23 प्रतिशत और DBW 222 की तुलना में 4.39 प्रतिशत अधिक है. गेहूं की एचडी-3385 किस्म एनडब्ल्यूपीजेड के तहत 147 दिनों में और एनईपीजेड में 123 दिनों में पककर तैयार हो जाती है.
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एचडी-3385 किस्म में नहीं लगते हैं कई रोग
एचडी-3385 किस्म में कई तरह के रोग नहीं लगते हैं. दरअसल, यह किस्म धारीदार रतुआ, पत्ती रतुआ, करनाल बंट, पाउडरी मिल्ड्यू, गेहूं के झुलसा रोग और फ्लैग स्मट रोग के प्रतिरोधी है.
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