उत्तर प्रदेश के बिजनौर में गन्ने की खेती से किसानों का मोहभंग करने के लिए उन्हें बागवानी की ओर प्रेरित किया जा रहा है. अमरूद की खेती इसका एक बेहतर विकल्प साबित हुआ है. दरअसल राज्य के उद्यान विभाग को पहली बार शासन की ओर से 20 हेक्टेयर जमीन में अमरूद बोने का लक्ष्य दिया गया था.
इसके सहारे किसानों को काफी फायदा होगा. दरअसल अमरूद की नई प्रजातियां श्वेता, ललित, हिसार आदि किसानों को मालामाल करने का कार्य करेगी. इस जिले के किसानों ने गन्ना उत्पादन में रिकॉर्ड कायम कर दिया है.
किसान कर रहे बंपर पैदावार (Farmers are producing bumper)
गन्ने के किसानों (Sugarcane Farmers) ने बंपर पैदावार करके काफी मुनाफा कमा लिया है. चीनी के दाम गिर चुके है और किसानों को काफी परेशानी उठानी पड़ सकती है. चीनी मिलों को भी चीनी बेचने के लिए काफी समस्याओं का समाना करना पड़ रहा है. शासन की मंशा यह है कि किसानों को दूसरी फसलों विशेषकर की बागवानी के लिए प्रेरित किया जाए. इसलिए शासन ने किसानों को सबसे पहले यहां पर केले, अमरूद, आदि उगाने के लिए प्रेरित किया है.
प्रति हेक्टेयर लगते हैं 1667 पौधे (It takes 1667 plants per hectare)
परंपरागत बागवानी की बात करें तो इसमें एक हेक्टेयर जमीन में कुल 278 पेड़ लगाए जाते थे. इसमें आपस में कुल छह मीटर तक का अंतर होता है. नई प्रजाति में अमरूद की लाइन की दूरी तीन मीटर और आपस में कुल दो मीटर तक भी रखी जाती है. परंपरागत खेती में एक पेड़ पर एक क्विंटल तक अमरूद भी आ जाते है.
सघन पद्धति (Intensive method)
परंपरागत बागवानी में अमरूद के पेड़ की छटाई नहीं होती है. पेड़ के बढ़ने पर इसकी जड़ों से लिया जाने वाला पोषण पूरे ही पेड़ में बंटता है और फल का आकार धीरे-धीरे बहुत घट जाता है. सघन पद्धति में पेड़ की छटाई होती है.
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