गिलोय बहुवर्षीय लता है तथा गिलोय को आयुर्वेद में अमृता, गुडुची, चनांगी, आदि कई नामों से जाना जाता है. नीम पर चढ़ी गिलोय को ज्यादा पसंद किया जाता है, क्योंकि इससे गिलोय में नीम के गुण आ जाते है. अगर इसकी खेती व्यवसायिक रूप से की जाए तो यह अच्छा लाभ दे सकती हैं.
औषधीय महत्व
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गिलोय के पत्तों में प्रोटीन, फास्फोरस, कैल्शियम काफी मात्रा में होते हैं. इसके पत्तों का रस गठिया रोग में भी लाभकारी है.
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तने में मुख्य रासायनिक घटक गिलोनिन, गिलोस्टेरॉल, गिलीनिन, बरबरिन और फुरानोडाइटरपीन पाये जाते हैं. यह रोग प्रतिरोध क्षकता को बढ़ाने में उत्तम है.
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डेंगू, चिकनगुनिया व मलेरिया में भी इसका उपयोग लाभकारी है.
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गिलोय के तने तथा पत्तों का रस रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ाता है तथा बुखार उतारने में लाभकारी है.
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गिलोय एक लिवर टॉनिक है और इसमें मूत्रवर्धक और कामोद्दीपक गुण होते हैं.
मिट्टी व जलवायु:
हल्की मध्यम रेतीली-दोमट मिट्टी और पर्याप्त जल निकास वाली मिट्टी इसकी खेती के लिए उपयुक्त होती है, किन्तु सभी प्रकार की मिट्टी में भी यह लगाई जा सकती है. यह पादप उच्च वर्षा या जलभराव को सहन नहीं कर राकता है. यह पौधा बहुत कठोर होता है और इसे लगभग सभी जलवायु में उगाया जा सकता है, लेकिन यह गर्म जलवायु इसके लिए बेहतर है.
खेत की तैयारी:
खेत को सर्वप्रथम खरपतवार मुक्त किया जाता है. उसके बाद 4 टन गोबर की खाद और नाइट्रोजन की 30 किलो मात्रा प्रति एकड़ डाली जाती है. बेहतर पैदावार के लिए 3 मी. x 3 मी. की दूरी उचित मानी जाती है. पौधे को बढ़ने के लिए आधार की आवश्यकता होती है, इसलिये लकड़ी की खपचियों का सहारा दिया जाता है. पौधों के विकास के शुरुआती चरणों के दौरान रिक्त स्थान को लगातार निराई करके खरपतवार रहित रखना चाहिए. फसल वर्षा आधारित परिस्थितियों में लगाई जाती है, हालांकि कभी-कभी अधिक ठंड और गर्मी के दौरान सिंचाई फसल को प्रतिकूल परिस्थितियों से बचाने में मदद कर सकती है.
बुवाई: गिलोय की खेती कलम द्वारा की जाती है. जून-जुलाई में मातृ पौधों से कटिंग प्राप्त की जा राकती है. पौधे को बीज द्वारा भी उगाया जा सकता है, लेकिन बीज द्वारा पौधे तैयार होने मे कटिंग से लगभग दोगुना समय लगता है. लगभग 6-7 इंच लंबी तथा मोटाई उंगली की मोटाई के बराबर होनी चाहिए. कलम को नर्सरी में मई-जून में या खुले में वर्षा ऋतु प्रारम्भ होने पर लगाते हैं तथा चार से पांच सप्ताह में जड़े निकल आती हैं. गिलोय की कलम लगाने के तुरंत बाद हल्की सिचाई करनी चाहिए. बाद में 15 से 20 दिन के अंतर पर सिचाई करते रहे. जब कलम से लता चल जाए फिर आवश्यकतानुसार सिचाई करनी चाहिए. 30-45 दिन बाद पौधे स्थानांतरण योग्य हो जाते हैं. एक एकड़ भूमि में लगभग 1000 कलम की आवश्यकता होती है.
फसल की परिपक्वता और कटाई
गिलोय की बेल की कटाई भूमि की सतह से एक फुट ऊपर से अप्रैल-मई महीने में करनी चाहिए. इसकी बेल आसानी से सूखती नहीं इसकी पत्तियां नवंबर-दिसंबर में झड़नी शुरू हो जाती है. जब तना 2.5 सेमी से अधिक व्यास का होता है, तब उसे जमीन से कुछ फीट ऊपर से काट दिया जाता है. बचे हुये भाग से पुनः नयी शाखाएं निकल सकती हैं. कटाई के बाद पौधे को छोटे टुकड़ों में काटकर छाया में सुखाया जाता है. जल्दी सुखाने के लिए बेल को छोटे-छोटे टुकड़े करके धूप में सुखाने चाहिए और सुखाकर बोरियों में भंडारण कर लिया जाता है. गिलोय जितनी पुरानी उतना ही इसका ज्यादा महत्व माना जाता है. चार से पांच साल पुरानी बेल को ही काटना चाहिए.
सफाई और सुखाना: गिलोय के पत्तों को पकाने के बाद, उन्हें पानी से धोया जाना चाहिए और यदि आप गिलोय का पाउडर बनाना चाहते हैं तो आप इसे सुखा सकते हैं और इस पाउडर को बाहर निकाल सकते हैं. बार-बार इसका इस्तेमाल कई उद्देश्यों के लिए भी किया जा सकता है.
उपज: 100 से 125 क्विंटल प्रति एकड़ हरी गिलोय का उत्पादन लिया जा सकता है. सूखी बेल की पैदावार लगभग 8 से 10 क्विंटल प्रति एकड़ हो जाती है. मंडी में इसकी कीमत लगभग 12 से 15 रुपये प्रति किलोग्राम मिल जाती है इसके अलावा जिन वृक्षों पर यह चढ़ाई जाती है उनसे भी अतिरिक्त आय होती है.
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