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अमाड़ी की खेती करके कमाएं लाखों रुपये, बड़े शहरों में बढ़ी मांग

मध्य प्रदेश के निमाड़ क्षेत्र की अमाड़ी को देशभर में पहचान मिल रही है. यह निमाड़ियों का परंपरागत व्यंजन है. यहां के किसान बड़ी संख्या में अमाड़ी की खेती करते हैं जिसे धीरे-धीरे देष के अन्य प्रांतों जैसे उत्तर प्रदेश, हरियाणा और गुजरात में बोया जा रहा है.

श्याम दांगी
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मध्य प्रदेश के निमाड़ क्षेत्र की अमाड़ी को देशभर में पहचान मिल रही है. यह निमाड़ियों का परंपरागत व्यंजन है. यहां के किसान बड़ी संख्या में अमाड़ी की खेती करते हैं जिसे धीरे-धीरे देष के अन्य प्रांतों जैसे उत्तर प्रदेश, हरियाणा और गुजरात में बोया जा रहा है.

पौधे का हर भाग उपयोगी

अमाड़ी के पौधे का हर भाग उपयोगी होता है. इसके पौधे के तने, पत्तियों, फूल और बीजों को अलग-अलग उपयोग किया जाता है. इसकी पत्तियों की भाजी काफी स्वादिष्ट बनती है जिसे ज्वार और मक्का की रोटी के साथ खाया जाता है. वहीं इसके तने से रस्सियां बनाई जाती है. इसके अलावा अमाड़ी के फूलों को उपयोग शरबत, जेम, जेली और चटनी में किया जाता है. जबकि इसके बीजों से तेल और आटा बनाया जाता है.

कई तत्वों से भरपूर

यह कई पोषक तत्वों से भरपूर होता है. इसका वैज्ञानिक नाम हिबिस्कस सब्डेरिफा है जो गर्म जलवायु में पैदा होता है. इसकी भाजी तथा फूलों में विटामिन-सी, आयरन और फाइबर जैसे तत्व पाए जाते हैं. इसकी पत्तियों की सब्जी स्वास्थ्यवर्धक और स्वादिष्ट होती है.

500 रूपए किलो भाजी

वैसे तो अमाड़ी निमाड़वासियों को परंपरागत व्यंजन है. लेकिन अब देश के अन्य राज्यों के किसानों ने भी इसकी उपयोगिता को समझा है. राज्य के खरगोन जिले के रणगांव के किसान महेन्द्र पटेल पिछले 15 सालों से अमाड़ी की खेती कर रहे हैं. वे बताते हैं कि इसके कपास और मिर्च की फसल के बीच बोया जाता है. जिससे अतिरिक्त आय होती है. इसके पौधों की पत्तियों की एक दिन पहले तोड़ लिया जाता है फिर कुटकर उसकी नमी निकाल दी जाती है. जिसके बाद इसे 2-3 दिन सुखाते हैं. जिसके 100 ग्राम से लेकर 2 किलो तक के पैकेट बना लिए जाते हैं. जो बाजार में 400-500 रूपए किलो बिकता है. भोपाल, मुंबई समेत देश के कई बड़े शहरों में अमाड़ी की भाजी की मांग रहती है.

कई राज्यों में मांग

इसकी उपयोगिता को देखते हुए निमाड़ क्षेत्र के अलावा अमाड़ी की खेती उत्तर प्रदेश और गुजरात में भी की जा रही है. उत्तर प्रदेश के महोबा जिले के लाडपुर गांव के किसान हरिओम राजपूत इसके औषधीय गुणों से प्रभावित होकर इसकी खेती कर रहे हैं. उन्होंने सवा एकड़ में इसकी भाजी लगाई है. अब वे इसकी तुड़ाई करने की तैयारी कर रहे हैं. वहीं गुजरात के राजूभाई देसाई और हरियाणा के परमिंदर भी अमाड़ी की खेती कर रहे हैं.

90 दिन की फसल

लाल अमाड़ी खरीफ की फसल है जो 90 दिनों में तैयार हो जाती है. खरगोन जिले में 15 हेक्टेयर में अमाड़ी की खेती हो रही है. इसके बीज की देशभर में मांग है. इसकी पत्तियों को सुखाकर भाजी बनाई जाती है जो बाजार में 500 रूपए किलो बिकती है. पुराने जमाने में इसकी रस्सियां बनाई जाती थी लेकिन अब नायलोन की रस्सियों की वजह से  इसकी रस्सी बनाने का चलन खत्म हो गया.  

English Summary: khargone madhya pradesh news amari bhaji of nimar making identity across the country Published on: 02 November 2020, 01:30 PM IST

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