मेथी सर्दियों की हरी सब्जियों में बहुत खास है. इसके बीजों का भी मसाले और आयुर्वेदिक उपायों में इस्तेमाल किया जाता है. यह रबि की फसल है और राजस्थान, गुजरात उत्तर प्रदेश समेत भारत के कई राज्यों में इसकी खेती होती है. दक्षिण भारत में मेथी की खेती बरसात के मौसम में होती है. इसमें मौजूद औषधीय गुणों को जानकर आप हैरान रह जाएंगे, सर्दियों में इसे हर शख्स को मेथी खाना चाहिए. चालिए जानते हैं मेथी की बुवाई और रोगों के बारे में.
मेथी की बुवाई का सही समय
उत्तरी मैदानों भागों में अक्टूबर से नवम्बर महीने में मेथी की बुवाई की जाती है. पहाड़ी इलाकों में इसकी खेती मार्च से मई महीने में होती है. दक्षिण भारत के आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु में यह फसल रबी और खरीफ दोनों ही मौसम में ली जा सकती है.
उपयुक्त मिट्टी
वैसे तो अच्छी जल निकासी वाली किसी भी मिट्टी में मेथी की खेती की जा सकती है, लेकिन दोमट और बलुई दोमट मिट्टी इसकी बुवाई के लिए उचित मानी जाती है.
खेत की तैयारी और बुवाई कैसे करें?
मेथी की बुवाई के लिए खेत की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से अच्छे से करें, उसके बाद 2 से 3 जुताई और करें. जब मिट्टी भुरभुरी हो जाए तो पाटा लगाकर समतल कर दें. बुवाई के वक्त ध्यान रखें कि खेत में थोड़ी नमी रहनी चाहिए, अगर मिट्टी में नमी नहीं होगी तो बीज अंकुरित नहीं होंगे. 20 से 25 किलो प्रति हेक्टेयर के हिसाब से बीज का छिड़काव करें. बुवाई छिड़काव विधि और क्यारियों में की जा सकती है.
बीजों का कैसे करें उपचार?
बुवाई से पहले बीज उपचार करना बहुत जरूरी है. इसके लिए बीज को थाइरम या बाविस्टिन 2.0 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करके बोएं, जिससे फसल में बीज जनित रोग नहीं होंगे. बीजों को सही उपचार देने के बाद राइजोबियम कल्चर द्वारा उपचारित करना उचित रहेगा.
मेथी की उन्नत किस्में
अच्छी पैदावार के लिए उन्नत किस्मों का होने जरूरी रहता है. मेथी की भी कई उन्नत किस्में है, जिनसे ज्यादा लाभ लिया जा सकता है. इन किस्मों में हिसार सुवर्णा, हिसार सोनाली, हिसार मुक्ता, एएफजी 1, 2 और 3 आरएमटी 1 व 143 हैं. राजेन्द्र क्रान्ति को 1 और पूसा कसूरी, पूसा अर्ली बचिंग वगैरह मेथी की खास किस्मे हैं.
सिंचाई प्रबंधन
मेथी की बुवाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करें. अगर मिट्टी में पहले से उचित नमी मौजूद है तो पहली सिंचाई 4 से 6 पत्तियां आने पर कर सकते हैं. सर्दी के मौसम में 15 से 25 दिनों के अंतराल से सिंचाई करें. गर्मियों में 10 से 15 दिन के अंतराल में सिंचाई कर देनी चाहिए.
खाद और उर्वरक
मेथी की बुवाई के लगभग 3 हफ्ते पहले खेत में गोबर की सड़ी खाद डालें. एक हेक्टेयर खेत में 10 से 15 टन सड़ी गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद डालना चाहिए. अगर मिट्टी सामान्य उर्वरता वाली हो तो एक हेक्टेयर जमीन में 25 से 35 किलो नाइट्रोजन, 20 किलो पोटाश, 20-25 किलो फास्फोरस की पूरी मात्रा खेत में बोआई से पहले डालें.
मेथी में होने वाले रोग और रोकथाम
छाछया रोग- ये रोग शुरुआती अवस्था में लगने का डर रहता है. इसमें पत्तियां सफेद पड़ने लगती है. ज्यादा प्रकोप होने पर पूरे पौधे सफेद चूर्ण से ढक जाते हैं.
छाछया रोग से रोकथाम के लिए बुवाई के 60 या 75 दिन बाद नीम आधारित घोल पानी में मिलाकर छिड़कें. जरूरत के हिसाब से 15 दिनों के बाद दोबारा छिड़काव करें. इसके लिए एक लीटर पानी में नीम का 10 मिली तेल मिलाकर छिड़काव कर सकते हैं.
मृदुरोमिल फफूंद- इस रोग में पत्तियां पीली पड़ने लगती है, जिससे पौधों की बढ़त पर असर पड़ता है.
इस रोग की रोकथाम के लिए फाइटोलान, नीली कॉपर या डाईफोलटान जैसी फफूंदनाशी का उपयोग करें, इसके लिए 0.2 फीसदी सांद्रता वाले 400 से 500 लीटर घोल का प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करें.
जड़ गलन- ये रोग मिट्टी से होने वाला रोग है जिसमें पत्तियां पीली पड़कर सूख जाती हैं. इतना ही नहीं, अगर इसका समाधान ना किया जाए तो पूरा पौधा ही सूखकर नष्ट हो जाता है. इससे रोकथाम के लिए बुवाई से पहले बीजों का सही से उपचारण करना जरूरी होता है.
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