भारत में कई सब्ज़ियों की खेती होती है, जिसमें सेम की खेती का एक अलग स्थान है. वैसे मौजूदा समय में सेम की खेती विभिन्न राज्यों जैसे- उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र व तमिलनाडु में बड़े स्तर पर हो रही है. मगर आज भी कई किसान भाई ऐसे हैं, जिन्हें सेम की खेती की अधिक जानकारी नहीं है. ऐसे में आज हम किसान भाईयों के लिए सेम की खेती से जुड़ी अधिक जानकारी के लेकर आए हैं.
सेम की फलियों का उपयोग (Use of bean beans)
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि आज के समय में लोग सेम की फलियों की सब्ज़ी बनाकर बहुत चाव से खाते हैं. इसके साथ ही साथ ही हरी फलियों से अचार भी बनाया जाता है. इसके अलावा पशु चारे के लिए प्रयोग होती है.
सेम की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for bean cultivation)
इसकी खेती ठंडी जलवायु में सफलतापूर्वक की जा सकती है, लेकिन ध्यान रहे कि पाला अधिक न पड़ता हो. इसके पौधों को पाले से बहुत नुक़सान होता है.
सेम की खेती के लिए उपयुक्त भूमि (Land suitable for bean cultivation)
इस फ़सल के लिए दोमट, चिकनी व रेतीली मिट्टी उपयुक्त मानी गई है. मगर ध्यान रहे कि भूमि उचित जल निकास वाली होनी चाहिए, साथ ही भूमि क्षारीय व अम्लीय वाली नहीं होनी चाहिए. इसका पीएच मान 5.3 – 6.0 हो.
सेम की उन्नत किस्में (Improved varieties of beans)
सेम की फलियां लंबी, चपटी, टेड़ी, हरे और पीले रंग की होती हैं. किसान भाई सेम की अच्छी उपज के लिए पूसा अर्ली, काशी हरितमा, काशी खुशहाल (वी.आर.सेम- 3), बी.आर.सेम-11, पूसा सेम- 2, पूसा सेम- 3, जवाहर सेम- 53, जवाहर सेम- 79, कल्याणपुर-टाइप, रजनी, एचडी- 1, एचडी- 18 और प्रोलिफिक आदि किस्मों की बुवाई कर सकते हैं.
सेम की बुवाई का समय (Sowing time of beans)
इस फसल के लिए बुवाई जुलाई से अगस्त का समय उपयुक्त माना गया है. ध्यान रहे कि बुवाई सममतल खेत में उठी हुई मेड़ों/क्यारियों में करें. इस तरह फसल का उत्पादन अच्छा और अधिक मिलता है.
सेम के लिए खेत की तैयारी (Field preparation for beans)
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अगर खेत में नमी की कमी है, तो बुवाई से पहले पलेवा कर लेना चाहिए.
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खेत को बुवाई से पहले अच्छी तरह जोत कर पाटा लगा लेना चाहिए.
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ध्यान रहे कि बुवाई के समय बीज अंकुरण के लिए पर्याप्त नमी हो.
सेम के बीज की मात्रा (Quantity of bean seeds)
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इसकी खेती में एक हेक्टेयर क्षेत्रफल के लिए लगभग 20 से 30 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है.
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सेम की बुवाई का तरीका
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खेत की तैयारी करने के बाद लगभग 5 मीटर की चौड़ी क्यारियां बनाएं.
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क्यारियों के दोनों किनारों पर लगभग 5 – 2.0 फ़ीट की दूरी पर बीजों की बुवाई करें. इनकी गहराई 2 से 3 सेंटीमीटर की होनी चाहिए.
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बीजों को रोग से बचाने के लिए कवकनाशी से उपचारित अवश्य करें.
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एक सप्ताह के अंदर बीज अंकुरित हो जाएंगे.
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जब पौधे 15 से 20 सेंटीमीटर तक हो जाएं, तब एक स्थान में सिर्फ़ एक स्वस्थ पौधा छोड़ दें. बाक़ी पौधे उखाड़ दें.
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किसान भाई पौधों को बांस की बल्लियों से सहारा दे सकते हैं, इससे उनकी अच्छी बढ़वार होती है.
सेम की खेती में सिंचाई प्रबंधन (Irrigation Management in Bean Cultivation)
हमेशा ध्यान में रखें कि फ़रवरी मार्च के समय बोई गई सेम की फ़सल में सप्ताह में एक बार सिंचाई करना है. इसके अलावा, जून-जुलाई वाली फ़सल में सिंचाई तब करें, जब अधिक समय तक बारिश न हुई हो.
सेम की खेती में खाद व उर्वरक (Manure and fertilizers in bean cultivation)
सेम की खेती में मृदा परीक्षण के बाद खाद व उर्वरक का प्रयोग करना चाहिए. वैसे किसान बुवाई से पहले खेत तैयार करते समय 150 से 200 कुन्तल प्रति हेक्टेयर की दर से गोबर की खाद या कंपोस्ट मिट्टी में मिला सकते हैं. इसके पश्चात नाइट्रोजन: फ़ोस्फोरस : पोटाश खेत की अंतिम जुताई के दौरान मिलाए.
सेम की खेती में खरपतवार नियंत्रण (Weed control in bean cultivation)
अगर सेम के खेत में उग आए खरपतवार को उखाड़ दें. इसके साथ ही निराई–गुड़ाई के दौरान निकली मिट्टी को पौधों की जड़ों पर चढ़ा दें.
सेम की खेती में रोग व कीट रोकथाम (Disease and pest prevention in bean cultivation)
जानकारी के लिए बता दें कि सेम की फसल में फफूंद रोग ज्यादा लगता है, इसलिए किसानों को रोग प्रतिरोधी किस्म का चुनाव करना चाहिए. इसके अलावा, बीज को उपचारित कर बुवाई करना चाहिए.इतना ही नहीं, सेम की फसल को में चैपा और बीन बीटल जैसे कीट बहुत नुकसान पहुंचाते हैं. इनकी रोकथाम के लिए क्लोरपायरीफॉस 20 ईसी 3 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर छिड़क दें. ध्यान रहे कि इसका छिड़काव 10 से 15 दिन के अंतराल पर करना है.
सेम की फ़सल की तुड़ाई (Sifted Harvest)
फसल की तुड़ाई क़िस्म व बुवाई पर निर्भर होती है. वैसे जब सेम की फलियां पूरी तरह विकसित हो जाएं, साथ ही कोमल अवस्था में आ जाएं, तब फसल की तुड़ाई करना चाहिए. अगर तुड़ाई में देर होती है, तो फलियां कठोर हो जाती है और इन पर रेशे आ जाते हैं. इस वजह से बाज़ार में सेम की फसल का उचित दाम नहीं मिल पाता है.
सेम का उत्पादन (Production of beans)
अगर फ़सल की उत्पादकता जलवायु, मिट्टी, क़िस्म, सिंचाई समेत सुरक्षा प्रबंधन आदि पर निर्भर करती है. वैसे किसान भाई सेम की फ़सल से प्रति हेक्टेयर 100 से 150 क्विटंल उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं.
सेम की खेती से जुड़ी नया शोध (New research related to bean cultivation)
भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान द्वारा सेम की 4 किस्मों को विकसित किया गया है. इसमें वीआर बुश सेम-3, वीआर बुश सेम-8, वीआर बुश सेम-9 और वीआर बुश सेम-18 शामिल है. इन किस्मों की खासियत यह है कि इसकी फली मात्र 70 से 80 दिन में ही तैयार हो जाती हैं.
उत्तर प्रदेश में स्थिति शाहजहांपुर जिले के गांव खजुआहार के मजरा रामपुर में रहने वाले वेदपाल सिंह सेम की उन्नत खेती कर रहे हैं. उन्हें बाजार में सेम की फसल की अच्छी कीमत मिल ही रही है. वह मात्र 50 क्विंटल सेम के बीज से 5 लाख रुपए का शुद्ध मुनाफा कमा रहे हैं. इस तरह आप भी सेम की खेती कर अपनी एक अलग पहचान बना सकते हैं.
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