रसभरी खाने में स्वादिष्ट और बहुत ही पौष्टिक फल होता है. इसकी खेती मुख्य तौर पर देश के ठंडे स्थानों में की जाती है. रसभरी का व्यवसाय काफी बड़े स्तर पर होता है. इसका उपयोग जूस, औषधि और विभिन्न प्रकार के खाद्य उत्पादों को बनाने में किया जाता है. रसभरी के एक पौधे की लाइफ 10 से 15 साल तक की होती है.
रसभरी की खेती के लिए भूमि
रसभरी की खेती किसी भी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है. इसके लिए मुख्य रुप से बलुई और दोमट मिट्टी अच्छी मानी जाती है. इसकी खेती के लिए मिट्टी का पीएच मान 6.5 से लेकर 8 तक रहना चाहिए.
रसभरी की खेती का समय
रसभरी की खेती का समय जून से शुरु हो जाता है. इसकी अच्छी पैदावार के लिए खेत की दो से तीन बार खेती करनी होती है. कल्टीवैटर की मदद से मिट्टी को भुरभुरा भी कर दें और फिर पाटले की मदद से इसे समतल बना दें.
रसभरी की खेती के लिए जलवायु
रसभरी के अच्छे उत्पादन के लिए 20 से 25 डिग्री तक का तापमान उचित होता है. इसके लिए ठंड का मौसम काफी अच्छा माना जाता है. इसकी खेती के लिए एक हैक्टेयर के लिए 300 से 350 ग्राम बीज की आवश्यकता होता है.
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फसल की तुड़ाई
रसभरी के फल जनवरी से फरवरी महीने के बीच पकने लगते हैं. जब यह पकने लगते हैं तो इसकी ऊपरी परत के छिलके का रंग पीला हो जाता है. यह समय इसकी तुड़ाई का हो जाता है. आप इसे सावधानीपूर्वक तोड़ कर घर के किसी ठंडी जगह पर रख सकते हैं.
भण्डारण
रसभरी की पैकिंग इस तरह करनी चाहिए ताकि इनके फलों में हवा का आवागमन हमेशा बना रहे. आप इसके रख-रखाव के लिए डालिया, टोकरियाँ या प्लास्टिक के बैग का इस्तेमाल कर सकते हैं. साधारण तौर पर इन फलों को 72 से 80 घण्टें तक सुरक्षित रखा जा सकता है. इनके लंबे रख-रखाव के लिए आपको कोल्ड स्टोरेज की आवश्यकता होगी.
राष्ट्रीय कृषि विकास योजना
रसबरी की बागवानी के लिए सरकार राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत 25 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर की लागत पर 50 प्रतिशत की सब्सिडी दे रही है. किसान भाई इस राशि को किस्तों में भी जमा कर सकते हैं.
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