खजूर कई पोषक तत्वों से युक्त फल है. बाजार में पूरे साल इसकी डिमांड बनी रहती है. खजूर खराब नहीं होता, इसके फलों को सुखाकर छुहारे बनाए जाते है. भारत के राजस्थान, तमिलनाडु, केरल, गुजरात में इसकी खेती सबसे ज्यादा होती है. किसान भाई खजूर की खेती कर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं. आज इस लेख में हम आपको खजूर की खेती से जुड़ी जानकारी देंगे.
खजूर के लिए उपयुक्त जलवायु-
खजूर का पौधा 25 मीटर या उससे ज्यादा ऊंचा हो सकता है. इसकी खेती के लिए शुष्क जलवायु की आवश्यकता होती है. इसकी खेती के लिए कम बारिश की जरूरत होती है. इसलिए सूखे मरुस्थलीय इलाकों में भी इसका उत्पादन हो सकता है. पौधों के विकास के लिए भरपूर प्रकाश की जरूरत होती है. तेज धूप में पौधों का सही से विकास होता है. खजूर के पौधों के लिए तेज सर्दी नुकसानदायक होती है.
उपयुक्त मिट्टी-
खजूर के लिए रेतीली भूमि की जरूरत होती है. भूमि भरपूर जलनिकासी वाली होनी चाहिए. दो से तीन मीटर तक कठोर पथरीली भूमि में इसकी खेती नहीं की जा सकती. भूमि का पीएच मान 7 से 8 के बीच होना चाहिए.
खजूर की उन्नत किस्में-
खजूर की किस्मों को नर और मादा प्रजाति में विभाजित किया गया है. खजूर की बरही किस्म सबसे ज्यादा पैदावार देने वाली किस्म हैं. इसका पौधा बहुत तेजी से बढ़ता है लेकिन फल देरी से पकते हैं. इस किस्म से एक पौधे से 70 से 100 किलो तक फलों का उत्पादन होता है. इसकेफल अंडाकार और पीले रंग के होते हैं.
खुनेजी- इसके पौधे सामान्य रूप से विकास करते हैं लेकिन फल बहुत जल्दी पकते हैं. इसके किस्म के पौधों से 60 किलो तक फलों का उत्पादन होता है. इस किस्म के फल बहुत मीठे होते हैं और लाल रंग के होते हैं.
हिल्लावी- यह अगेती किस्म है, इसमें प्रति पौधे से 100 किलो तक फलों का उत्पादन लिया जा सकता है. यह किस्म जुलाई महीने में पककर तैयार हो जाती है. इसके फल लंबे, हल्के नारंगी होते हैं.
जामली- इस किस्म के पौधों से 100 किलो तक उत्पादन लिया जा सकता है. इसके फल अन्य किस्मों के मुकाबले मुलायम होते हैं. इनका रंग सुनहरा पीला और स्वाद मीठा होता है. यह देरी से पकने वाली किस्म है.
खदरावी किस्म- इसके फल पिंडखजूर बनाने के लिए सबसे अच्छे होते हैं. इस किस्म के पौधों से 60 किलो तक उत्पादन लिया जा सकता है. इसके पेड़ कम ऊंचाई के होते हैं.
मेडजूल- यह किस्म 75 से 100 किलो प्रति पौधे तक उत्पादन देती है. यह देरी से पकने वाली किस्म है. इसके फलों का रंग पीला नांरगी होता है. इसके फल मीठे होते हैं और इनसे पिंडखजूर बनाए जाते हैं.
खजूर की नर किस्म केवल फूल देती है. इस पर फल नहीं लगते. खजूर की नर किस्मों में धनामी, मदसरीमेल शामिल है.
खेत की तैयार-
खजूर के पौधों की बुवाई से पहले खेत की गहरी जुताई करनी चाहिए, ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाए. इसके बाद पाटा चलाकर मिट्टी को समतल करें. इसके बाद मिट्टी में गोबर की खाद, जिसमें फोरेट या कैप्टान की उचित मात्रा हो, उसे मिलाकर डालें.
खजूर की बुवाई-
खजूर की रोपाई बीज और पौधे दोनों से की जा सकती है. बीज से पौधे बनने में समय लग जाता है. इसलिए आप स्थानीय नर्सरी से खजूर के पौधों ले आएं. खजूर के पौधे लगाने के लिए खेत में गड्ढे तैयार करने होते हैं. प्रत्येक गड्ढों के बीच की दूरी 6-8 मीटर होनी चाहिए. खजूर की बुवाई का सबसे अच्छा समय जुलाई-अगस्त होता है. एक एकड़ में खजूर के लगभग 70 पौधे लगाए जा सकते हैं.
सिंचाई-
खजूर के पौधों को बहुत कम पानी की जरूरत होती है. गर्मियों में 15 से 20 दिन के अंतराल और सर्दियों में महीने में एक बार सिंचाई उपयुक्त होती है.
खाद व कीटनाशक-
खजूर के पौधों में गोबर की खाद व यूरिया का इस्तेमाल कर सकते हैं. किस्म के हिसाब से कीटनाशक का उपयोग करें. खरपतवार नियंत्रण के लिए समय पर निराई-गुड़ाई करें.
कैसे कमाएं मुनाफा-
खजूर का पौधा लगाने के 3 से 6 साल के बीच पैदावार देना शुरू करता है. एक पौधे से औसतन 70 से 100 किलो तक खजूर का उत्पान होता है जो बाजार में थोक भाव में 30 से 40 रुपए प्रति किलो तक बिकते हैं. ऐसे में आप कम लागत में अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. खजूर की फसल आने में समय लगता है, इस बीच आप खेत में अन्य कम सिंचाई वाली फसल उगाकर दोगुनी कमाई कर सकते हैं.
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