कोई भी किसान संतरे की बेहतर उपज करने के लिए अगर इजरायली तकनीक को अपना ले तो वह कम खर्च में जल्दी और अच्छी बेहतर फसल प्राप्त कर सकते है. यहां राजस्थान के झालवाड़ मांडवी में स्थित नि:शुल्क कृषक प्रशिक्षण केंद्र पर दिखाया गया है कि इजरायली तकनीक के चलते यहां लगाए गए संतरो के पेड़ों पर तीन साल में ही फल आना शुरू हो गए है. वैसे तो इसमें पांचवे साल में ही फल आते है.
बूंद-बूंद पानी तकनीक से फायदा
यहां पर भवानीमंडी क्षेत्र में खेतों में उपजाऊ काली मिट्टी की परत करीब डेढ़ फीट तक ही है. इस स्थिति को समझते हुए. यहां पर करीब एक मीटर ऊंचाई तक और काली मिटटी को डालकर क्यारियां बनाई गई है. इन सारी क्यारियों के अंदर और बीच में संतरे के पौधों को रोपने का कार्य किया गया है. इन पौधों में आपस में बीच की दूरी 6-6 मीटर रखी गई है. इसमें ही ड्रिप सिंचाई के लिए स्थाई रूप से पाइप को बिछाकर पेड़ की जड़ों को बूंद-बूंद पानी देने का बंदोबस्त किए गया है. पेड़ों के आसपास कचरा जमा नहीं हो पाता है और वाष्पीकरण न हो. इसके लिए तनों के पास विशेष तरह की पॉलीथिन को बिछा दिया गया है.
ड्रिप इंजेक्शन से दिया तरल खाद
पौधों को पानी देने के लिए एक पंप हाउस को बनाकर उससे ड्रिप की सप्लाई को जोड़ा गया है. हर तीन से चार दिन में पानी दिया गया है. सभी 280 पौधों को खाद देने के लिए सूखा खाद की बजाय इंजेक्शन जैसे तरल खाद देना तय किया गया है. इसके ड्रिप के ही पंप हाउस में बने एक टैंक में हर माह केवल मात्र 50 ग्राम 19-19-19 नाइट्रोजन, फास्फेरस, पोटाश नामक खाद को डाल दिया गया है. इस तकनीक के सहारे बूंद-बूंद तरीके से पेड़ की जड़ों में पहुंच दिया गया है.
तरल खाद का तरीका बेहतर
वैज्ञानिक सुनील कुमार ने बताया कि आम फसलों को भी सूखा खाद को देने की जगह तरल तरह से खाद देना बिलकुल सही है. आमतौर पर किसान एक बीघा में एक बैंग यूरिया की डाल देते है. फसल को इसकी अधिक जरूरत नहीं होती है. इसीलिए बेहतर है कि किसान इस खाद को तरल रूप में एक निश्चित मात्रा में स्प्रै टैंक में भरकर फसल छिड़क दे तो फसल को ज्यादा से ज्यादा फायदा मिलेगा.
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