आलू की खेती ठण्ड के मौसम में ख़ास तौर पर की जाती है.जिस वजह से आलू की फसल को अनेक तरह के रोग होने का खतरा होता है.ये रोग मुख्य रूप से फफूँद, शुक्राणु एवं विषाणु द्वारा फैलते हैं. वातावरण में अधिक नमी और मैदानी इलाकों व क्षेत्रों में जलवायु अनुकूल होने के कारण बीमारियों से प्रति वर्ष नुकसान भयानक रूप में होता है.
जिससे 50 से 90 प्रतिशत तक फसल बर्बाद हो जाती है.ऐसे में फसल में कीटों के प्रकोप का उपचार समय रहते ठीक कर देने में ही किसानों की भलाई है.कीटों के प्रकोप से फसलों को कैसे बचाया जाए इसपर आज हम चर्चा करेंगे.
चकती रोग (फोमा पर्ण धब्बा)(Rash Disease)
यह एक फफूँद जनित रोग है. फोमा एक्सीगुआ(Foma Exigua) कवक के कारण होने वाले पर्ण धब्बा रोग में पाइयों पर बड़े हल्के अथवा गाढ़े रंग के 1.0 से 2.5 मी०मी० आकार के गोल धब्बे बन जाते हैं.
फोमा सारधिना के कारण पत्तियों पर पिन की नोक के आकार के धब्बे बनते हैं.यह धब्बे अण्डाकार, गोल अथवा अनियमित आकार वाले 4 मिली मीटर तक होते है.
यह तीनों(अगेती झुलसा, पिछेती झुलसा एवं फोमा)ही रोग कारक कन्दों को भी ग्रसित करते हैं तथा भंडारण के दौरान जीवित रहने की क्षमता रखते हैं. रोगी कन्द इन फफूंदों के लिए प्राथमिक स्रोत का काम करते हैं. आमतौर पर ये रोग मध्यम तापमान (17 से 25° से० ग्रे० व अधिक आर्द्रता (75%) होने पर फैलता हैं.
समेकित प्रबन्धन (Integrated Management)
अगेती झूलसा रोग की तरह प्रबन्धन करें.
चारकोल रॉट (काला गलन) (Charcoal Rot)
यह रोग मेक्रोफोमीना फेसियोली (Macrophomina facioli) नामक फफूँद से उत्पन्न होता है. यह फफूँद मिट्टी में पाया जाता है. इस बीमारी का आक्रमण उन आलूओं पर ज्यादा होता है जिसमे मार्च-अप्रेल में खाद जाते हैं. वहीँ मिट्टी का तापमान 280 से०ग्रे० से अधिक होने पर इस रोग का प्रकोप बढ़ जाता है.
लक्षण
तना का सतह राख रंग का हो जाता है. कंद से सटे तने का भाग काला हो जाता है. जड़ का रंग भूरा होकर सड़ जाता है. उसके बाद यह बीमारी कन्दों को ग्रसित करती है और धीरे-धीरे पूरे आलू को सड़ा देती है. यह रोग सिर्फ कन्दों में लगता है.
समेकित निंयत्रण (Integrated Management)
ऐसे में फसल को जल्दी खोदकर निकाल लेना चाहिए. अगर किसी कारणवश फसल को देर से खोदना पड़े तो खेत में जल्दी सिंचाई कर दें ताकि मिट्टी का तापमान बढ़ने ना पाये.
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मंद चित्ती(Dim spot)
यह रोग विषाणु ‘ए’ के कारण होता है.
लक्षण:
रोगी पौधों की पत्तियों पर हल्की पीली चित्तियां दिखाई देती हैं. कभी-कभी इन चित्तियों पर काले छोटे-छोटे धब्बे भी बनते हैं. इस रोग का संक्रमण भी कंद, छुत और माहु द्वारा होता है. इस रोग से आलू की उपज में लगभग 10-25 प्रतिशत तक की कमी आती है.
अक्यूवा चित्ती (Acuva Spot)
विषाणु ‘जी’ के कारण आलू में अक्यूवा चित्ती रोग लगता है. यह रोग मैदानी क्षेत्रों में लगायी जाने वाली पुरानी किस्मों में पाए जाते हैं.
लक्षण:
रोगी पौधों की निचली पत्तियों में पीले धब्बे नजर आते हैं.सुखे मौसम में इन धब्बों का आकार छोटा होता है. परन्तु जब तापक्रम कम हो और आर्द्रता अधिक हो तो ये धब्बे पूरी पत्तियों पर नजर आते हैं. रोग का संक्रमण मुख्यतः रोगी कंदों द्वारा ही होता है.
समेकित प्रबन्धन (Integrated Management)
स्वस्थ्य एवं प्रमाणित बीज का प्रयोग.
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