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कपास की फसल के लिए बेहद खतरनाक है ये कीट, जानें कैसे करें प्रबंधन

Cotton Diseases: कपास की फसल में लगने वाले रोग व कीट लगने से पैदावार पर काफी असर पड़ता है. ऐसे में किसानों को समय रहते इन कीट व रोगों पर नियंत्रण पा लेना चाहिए. इसके लिए आज हम बेहद जरूरी जानकारी लेकर आए हैं.

लोकेश निरवाल
कपास की फसल में लगने वाले रोग व कीट प्रबंधन (Image Source: Pinterest)
कपास की फसल में लगने वाले रोग व कीट प्रबंधन (Image Source: Pinterest)

Cotton Cultivation: कपास की खेती करने वाले किसानों के सामने सबसे बड़ी परेशानी कपास की फसल में लगने वाले कीट व रोग है. अगर समय रहते  कपास के कीट पर नियंत्रण नहीं किया जाए, तो इसे फसल की पैदावार पर सीधा प्रभाव पड़ता है. कई कीट औऱ रोग कपास की फसल को पूरी तरह से बर्बाद कर सकते हैं. ऐसे में किसानों के लिए ज़रूरी है कि वह पहले से ही इसके प्रति सतर्क रहें. किसानों की इसी परेशानी को देखते हुए आज हम कपास की फसल में लगने वाले कीट व रोग प्रबंधन से जुड़ी जानकारी लेकर आए हैं. आइए इनके बारे में विस्तार से जानते हैं.

कपास की फसल/Cotton Crop में लगने वाले कीड़ों के समेकित कीट प्रबंधन की विधियां निम्नलिखित है.

कपास में लगने वाले कीट और लक्षण

चूसने वाले कीट/Sucking Pests

मिली बग: सफेद मोम की तरह यह कीट पौधों के विभिन्न भागो से चिपके रहते हैं. इस कीट के शिशु व वयस्क पौधे के लगभग सभी भागों से रस चूसकर फसल को नुकसान पहुंचाते है. ग्रसित पौधे झाड़ीनुमा बौने रह जाते हैं. कम टिंडे बनते हैं तथा इनका आकार छोटा एवं कुरूप रह जाता है. कीट मधु स्राव करते हैं, जिन पर चीटियां आकर्षित होती है और इस कीट को एक पौधे से दूसरे पौधे तक ले जाती है.

फुदका (जैसिड): इसके शिशु व वयस्क पत्तियों की निचली सतह से रस चूस कर फसल को हानि पहुंचाते हैं. इनके प्रकोप से पत्तियां टेढ़ी-मेड़ी हो कर नीचे की तरफ मुड़ जाती हैं तथा लाल पड़ कर अंतत सूख कर गिर जाती हैं.

आर्थिक दहलीज़ स्तर : 2 जैसिड प्रति पत्ती.

सफेद मक्खी: यह कीट मुख्यतः फूल आने से पहले फसल को नुकसान पहुंचाता है तथा पत्तों का मरोड़िया रोग फैलाता है. इस कीट के शिशु व वयस्क दोनों ही पौधों से रस चूसकर फसल को हानि पहुंचाते है. कीटों के मधु स्राव करने पर काली फफूंद आने से पत्तों की प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया कम हो जाती है. आर्थिक दहलीज स्तर 8-10 वयस्क प्रति पत्ती या 20 वयस्क प्रति पत्ती सुबह 9 बजे से पहले .

चेंपाः चेपा के शिशु व वयस्क पत्तों व मुलायम वृद्धिशील प्ररोहों से रस चूसकर फसल को हानि पहुंचाते हैं. इससे पत्ते टेढ़े-मेढ़े होकर मुरझा जाते हैं.

प्रबंधन

  • सिफारिश की हुई प्रतिरोधी प्रजातियों की बुवाई करें.

  • समय पर बुवाई करें तथा नाइट्रोजन का अधिक प्रयोग न करें .

  • गर्मी में गहरी जुताई से कीटों की विभिन्न अवस्थाएं व रोग के जीवाणु नष्ट हो जाते हैं .

  • आवश्यकतानुसार बिकेन्थ्रिन 8% + क्लॉथियानिडिन 10% एस.सी 10 मि.ली / 10ली. या फिप्रोनिल 7% + फ्लोनिकैमिड 15% डब्ल्यूडी. + जी 8 ग्रा./ 10ली. सल्फोक्साफ्लोर 21.8% एस.सी 7.5 मि.ली / 10 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें .

  • फुदका के लिए आवश्यकतानुसार एसिटामिप्रिड 20% एसपी 1 ग्रा./ 10ली. या एफिडोपाइरोपेन 50 ग्राम / ली डीसी 20 मि.ली/10ली. या फ़्लोनिकैमिड 50% डब्ल्यू. जी 3 ग्रा./ 10ली. या आइसोसायक्लोसेरम 9.2% डी.सी 4 मि. ली / 10 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें.

  • परजीवियों जैसे क्राइसोपरला व लेडी बर्ड भृंग का संरक्षण करें .

  • खेत को शुरुआत के 8-9 सप्ताह तक खरपतवार रहित रखें .

  • लाल बग के प्रकोप को कम करने के लिए टिडाँ (डोडी) को सही समय पर तोड़ लें.

कीट/लक्षण

पत्तियां व शाखाएं काली हो जाती है और खुले टिंडों की कपास का रंग काला हो जाता है.

कपारा की लाल वगः इस कीट के शिशू व वयस्क दोनों ही पत्तों य हरे टिंडों से रस चूसते हैं. ग्रसित टिंडों पर पीले धब्बे तथा कपास पर लाल धब्बे आ जाते हैं. कपास निकालते समय, बगों के पिसने से कपास व तेल की गुणवत्ता कम हो जाती है.

कपास की धूसर (डस्की) बगः वयस्क 4-5 मि.मी. लम्बे राख के रंग के या भूरे रंग व मटमैले सफेद पंखों वाले होते हैं. निम्फ छोटे व पंख रहित होते हैं. शिशु व वयस्क दोनों ही कच्चे बीजों से रस चूसते हैं, जिससे ये पकते नहीं है तथा वजन में हल्के रहते हैं. कपास निकालते समय वयस्क के पिस जाने रूई पर धब्बे पड़ने से रूई की गुणवत्ता व बाजार भाव घटता है.

प्रबंधन

  • दो वयस्क या निम्फ प्रति पत्ति होने पर फुदका के लिए इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस. एल. 250 मि.ली./हेक्टेयर की दर से या एसिटामिप्रिड 250 ग्रा./ है या ऑक्सीडीमेटान मिथाइल 25 ई.सी. 1200 मि.ली. / हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.

  • सफेद मक्खी की निगरानी के लिए पीले पाश का प्रयोग करें .

  • आवश्यकतानुसार एसिटामिप्रिड 20% एस.पी 2 ग्रा / 10ली. या एफिडोपाइरोपेन 50 ग्राम / ली डी.सी 20 मि.ली / 10ली. या फ़्लोनिकैमिड 50% डब्ल्यू. जी 3 ग्रा./ 10ली. या पायरिप्रोक्सीफेन 10% ई.सी 16 मि.ली / 10ली. या पाइरीफ्लुक्विनाजोन 20% डब्ल्यू. जी 7.5 ग्रा./ 10 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें.

  • चेपा के लिए आवश्यकतानुसार डायफेंथियुरोन 50% डब्ल्यू. पी 10 ग्रा./ 10 ली. या डिनोटफ्यूरन 20% एसजी 4 ग्रा. / 10 ली. या फ़्लोनिकैमिड 50% डब्ल्यू. जी 3 ग्रा / 10 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें.

  • विकल्प के तौर पर ब्यूवेरिया बैसियाना / 2 ग्रा / ली, चेंपा की प्रकोप के हिसाब से डाले.

  • शुरूआत में लाल बगों को इकट्ठा करके नष्ट कर दें .

  • लाल बग व घूसर (डस्की) बग के लिए आवश्यकतानुसार फ्लुवेलिनेट 25% ई.सी 4 मिली / 10 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें. वैकल्पिक परपोषी पौधे जैसे पार्थनियम प्रजाति की घासों को कपास के खेत व आस-पास से हटा देना चाहिए.

English Summary: Diseases and pests of cotton crop and their management Published on: 14 August 2024, 05:41 PM IST

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