लद्दाख को दुनिया के सबसे ठंड़े मरूस्थल के तौर पर जाना जाता है, और अक्सर युवाओं के लिए लेह लद्दाख घूमने की लिस्ट में सबसे ऊपर रहता है. लेकिन जब बात यहां पर खेती की आती है, तो लद्दाख में उगाया जाने वाला खुबानी फल काफी लोकप्रिय है. क्योंकि, यहां किसानों द्वारा इसकी बड़े पैमाने पर खेती की जाती है. एक रिपोर्ट की मानें तो लद्दाख में हर साल 15,789 टन खुबानी की पैदावार होती है, जो देश में कुल खुबानी उत्पादन का 62 फ़ीसदी है. ऐसे में लद्दाख से खुबानी का निर्यात भी देश के बाकी राज्यों समेत विदेशों तक में किया जाता है. लेकिन लद्दाख में केवल खुबानी का ही उत्पादन नहीं किया जाता है. कई और ऐसी फसलें हैं जिनका उत्पादन कर किसान इस क्षेत्र में बेहतर कमाई कर पा रहे हैं.
लद्दाख में उगाई जाने वाली फसलें
इसी कड़ी में लद्दाख की ठंडी शुष्क जलवायु में उगाई जाने वाली कई बागवानी व पारंपरिक फसलों के बारे में जानकारी देने के लिए कृषि जागरण के फेसबुक प्लेटफॉर्म पर एक खास लाइव वेबिनार का आयोजन किया गया था. जिसमें इस विषय पर विस्तार से चर्चा करने के लिए कृषि विज्ञान केंद्र-कारगिल-II, लद्दाख के एसएमएस-बागवानी शब्बीर हुसैन मौजूद रहें. कार्यक्रम की शुरूआत करते हुए डॉ. शब्बीर ने सबसे पहले लद्दाख में उगाई जाने वाली प्रमुख फसलों के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि वैसे तो लद्दाख में कई तरह की बागवानी और सब्जी वर्गीय फसलों का उत्पादन किया जाता है, लेकिन जो इनमें सबसे प्रमुख हैं उनमें खुबानी, सेब, अखरोट और सीबकथोर्न का नाम आता है. इसके अलावा, यहां पर गेहूं, बाजरा, ज्वार, कपास, चावल, मटर, लोबिया, काबुली चना, हरा चना, सोयाबीन, मूंगफली, सरसों और मक्का आदि के अलावा कई तरह की सब्ज़ियों की खेती भी की जाती है.
किसानों को मिल रहा है कितना लाभ?
डॉ. शब्बीर ने आगे किसानों की कमाई के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि पहले के वक्त में किसान ज्यादातर खेती किसानी पर ही निर्भर हुआ करते थे. लेकिन इससे उन्हें ज्यादा कमाई नहीं हो पा रही थी. क्योंकि उन्हें कृषि से जुड़ी तकनीकों और आधुनिक कृषि के बारे में जानकारी नहीं थी. ऐसे में उनके लिए कमाई का जरिया सरकारी या निजी नौकरी ही हुआ करती थी. लेकिन जैसे जैसे कृषि विज्ञान केंद्रों द्वारा किसानों को आधुनिक कृषि और इससे जुड़ी नई तकनीकों के प्रति जागरूक करना शुरू किया गया है वैसे वैसे किसान अच्छी कमाई करने में सक्षम हो रहे हैं, अब हालात ये हैं कि लोग अच्छी खासी सरकारी नौकरियां छोड़कर खेती की ओर बढ़ रहे हैं. उन्होंने कहा कि अभी भी कई युवा नौकरी के लिए गांव छोड़कर शहरों की ओर भाग रहे हैं, लेकिन इससे ग्रामीण क्षेत्रों में पलायन बढ़ता जा रहा है. ऐसे में कृषि विज्ञान केंद्र-कारगिल-II, लद्दाख अपनी तरफ से इस कोशिश में लगा हुआ है कि लोगों को गांव में रहकर ही रोजगार और बेहतर कमाई का रास्ते उपलब्ध कराए जा सकें, ताकि बढ़ते पलायन को भी कम किया जा सके.
प्रोसेसिंग और निर्यात
बागवानी फलों की प्रोसेसिंग को लेकर डॉ. शब्बीर हुसैन ने बताया कि हमारी कोशिश रहती है कि किसानों की अधिकतर फसलों की प्रोसेसिंग और पैकेजिंग की प्रक्रिया पूरी करने के बाद ही उन्हें बाजार में बिक्री के लिए भेजा जाए. क्योंकि आमतौर पर अगर किसान को बाजार में उनके फलों की कीमत 100 रूपये प्रति किलो तक मिल रही है तो उसी फल की प्रोसेसिंग करने के बाद ये कीमत 3-4 गुना बढ़ जाती है. जिससे ना केवल किसानों को लाभ होता है बल्कि लद्दाख के उत्पादों को देशभर में अलग पहचान मिल रही है. इसी के चलते चाहें खुबानी फल हो या फिर सीबकथोर्न केवीके द्वारा सभी फलों की प्रोसेसिंग कर तरह-तरह के उत्पाद तैयार करने की कोशिश की जा रही है.
एक उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि यहां सीबकथोर्न की प्रोसेसिंग कर ले बेरी के नाम से जूस को तैयार किया जाता है. जिसका सेवन करने से शरीर में मिनिरल्स और विटामिन की कमी दूरी होती है. वहीं इसे लोग मेडिसिन की तरह भी इस्तेमाल में लाते हैं. इनके लाभ को देखते हुए कई ब्रांड भी हमसे उत्पादन खरीदते हैं वहीं देश के लगभग हर कोने से हमारे पास इनकी खरीद करने के लिए डिमांड आती है. नई दिल्ली में कई लोग एमेजॉन के माध्यम से इन उत्पादों की खरीद करते हैं. वहीं बीते साल की बात करें तो दुबई में साल 2022 में हमने 35 मीट्रिक टन खुबानी का निर्यात किया था.
प्राकृतिक आपदाओं के चलते होता नुकसान और बचाव के तरीके
अक्सर ऐसा देखा जाता है कि पहाड़ी इलाकों में प्राकृतिक आपदाओं के चलते खेती करने में काफी मुश्किलें होती है. वहीं इन आपदाओं की वजह से किसानों को काफी नुकसान भी उठाना पड़ता है. कभी बर्फबारी, तो कभी भारी बारिश, कभी सूखा तो कभी तूफान. इस तरह की प्राकृतिक आपदाओं से बचने के लिए किसान क्या करते हैं ये पूछने पर डॉ. शब्बीर ने बताया कि हम उन्हें को आधुनिक कृषि तकनीकों से अवगत कराते हैं. जिनमें से कुछ तकनीकें इस प्रकार हैं-
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ब्लैक पॉलिथीन मल्च – जिसे ब्लैक एग्रीकल्चरल मल्च फिल्म भी कहते हैं, इसका उपयोग करके किसान खेती की उत्पादकता में बढ़ोत्तरी कर सकते हैं, इस तकनीक में खेत में लगे पौधों की भूमि को चारो ओर से प्लास्टिक फिल्म की सहायता से पूरी तरह से ढ़क दिया जाता है. वैसे तो ये कई रंगों में उपलब्ध होती है मगर बागवानी फसलों के लिए अक्सर काले रंग की प्लास्टिक मल्च फिल्म का ही इस्तेमाल किया जाता है.
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ड्रिप इरिगेशन – ड्रिप इरिगेशन तकनीक को बूंद बूंद सिंचाई पद्धति के नाम से भी जाना जाता है. इसके इस्तेमाल से ना केवल पानी की बचत होती है बल्कि खेती की लागत में भी कमी आती है. इस पद्धति के अन्तर्गत पानी पौधों की जड़ों में बूंद-बूंद करके लगाया जाता है.
कृषि विज्ञान केंद्र-कारगिल-II, लद्दाख का मुख्य उद्देश्य
कृषि विज्ञान केंद्र-कारगिल-II, लद्दाख के मुख्य उद्देश्य के बारे में पूछने पर डॉ. शब्बीर हुसैन ने बताया कि हमारा मुख्य उद्देश्य इस लद्दाख व जांस्कर के किसानों को खेती की ज्यादा से ज्यादा आधुनिक तकनीकों से अवगत कराना है, साथ ही हम उन्हें कृषि के फायदों के बारे में जागरूक कर इसके लिए ट्रेनिंग भी उपलब्ध कराते हैं. हम उन्हें उन्हीं के खेतों में जाकर लाइव ट्रायल भी देते हैं. ताकि किसानों भी केवीके पर भरोसा हो सके और ट्रायल के माध्यम से वो खुद भी खेती की उन्नत तकनीकों की जानकारी ले सकें.
डॉ. शब्बीर ने कार्यक्रम के आखिर में जांस्कर और कारगिल जिले के कुछ प्रगतिशील आदिवासी किसानों की सफलता की कहानी से भी हमें परिचित कराया. उन्होंने बताया कि किस तरह से आज केवीके की मदद से यहां के किसान तकनीकों के माध्यम से सब्जियों, फलों आदि की खेती करके लाभ कमा रहे हैं. जहां पहले उन्हें खेती करने में कई समस्याओं का सामना करना पड़ता था तो वहीं अब कृषि का आधुनिक तकनीकें उनकी सफलता को उड़ान दे रही हैं.
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