आलू किसानों की खास नकदी फसल है. इसकी खेती अन्य फसलों के मुकाबले में कम समय में ज्यादा मुनाफा देती है. हर साल किसान एक ही खेत में आलू की खेती करते हैं, जिससे मिट्टी कीट और रोगों का घर बन जाती है. देश के लगभग सभी क्षेत्रों में आलू की खेती होती है.
जिन किसानों ने अपने खेतों में आलू की फसल लगा रखी है, वह इसमें लगने वाले पिछेता झुलसा और निमोटोड समेत कई वायरसों से काफी परेशान रहते हैं. मगर अब किसानों को घबराने की जरूरत नहीं है, क्योंकि केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान (सीपीआरआई) के वैज्ञानिकों ने आलू की नई किस्म कुफरी करण विकसित की है.
आलू की नई कुफरी करण किस्म की खासियत (The specialty of the new Kufri Karan variety of pota to)
इस आलू का इस्तेमाल सब्जी बनाने में किया जा सकेगा. इसके सफेद आलू के बीच के कंदों का भार 40 से 60 ग्राम तक होता है. आलू की इस किस्म को ऊंचाई वाले इलाकों में अप्रैल-मई में उगाया जा सकता है, तो वहीं मध्य पहाड़ों में जनवरी-फरवरी में उगाया जा सकता है. पठारों में इसकी खेती पूरे साल कर सकते हैं. आलू की इस किस्म को 10 से 12 सेंटीमीटर गहराई में उगाना होगा. इसके लिए साढ़े तीन से चार टन प्रति हेक्टेयर बीज की आवश्यकता होगी. यह किस्म 100 से 120 दिन में फसल तैयार कर देती है.
भंडारण क्षमता है ज्यादा (Storage capacity is high)
यह किस्म हिमाचल प्रदेश समेत देश के पहाड़ी और पठारों में बेहतर पैदावार दे सकती है, साथ ही इसके भंडारण की क्षमता भी ज्यादा है. वैज्ञानिकों का मानना है कि आलू की नई किस्म में कई बीमारियों और वायरस से लड़ने की क्षमता रखती है. बता दें कि आलू की फसल पर सबसे ज्यादा पिछेता झुलसा रोग का प्रभाव पड़ती है. इसके अलावा फसल को लगभग 6 और वायरस बर्बाद करते हैं. ऐसे में आलू की नई किस्म इन सभी वायरस से लड़ने की क्षमता रखती है.
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25.1 टन प्रति हेक्टेयर होगा उत्पादन (Production will be 25.1 tonnes per hectare)
आलू की इस किस्म से 25.1 टन प्रति हेक्टेयर आलू का उत्पादन मिल सकता है. इसमें 18.8 फीसदी शुष्क पदार्थ मौजूद हैं. ध्यान दें कि जब फसल तैयार हो जाए, तो आलू निकालने में विलंब न करें. इसके अलावा आलू के भंडारण से पहले खराब कंदों को नष्ट कर दें.
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