फसल विविधीकरण: फसल चक्र से किसानों की पैदावार काफी अच्छी होती है और इससे आय का स्त्रोत भी बढ़ता है. फसल चक्रों को अपनाने के लिए, किसानों को यह ध्यान रखना बहुत जरूरी है कि इनमें से कौन सा फसल चक्र उनके क्षेत्र और उनकी कृषि भूमि के लिए उपयुक्त है. ऐसे में आइए जानते हैं कि फसल विविधता का अपनाने का क्या सही तरीका है.
मक्का-गोभी सरसोंइस फसल चक्र में मक्का की बुआई जून के महीने में की जाती है. इसके बाद बंदगोभी सरसों की बुआई अक्टूबर-नवम्बर महीने के बीच तथा गर्मी के मौसम में मूंग की बुआई अप्रैल के प्रथम पखवाड़े में कर देनी चाहिए. गर्म मौसम की मूंग की समय से बुवाई के लिए बिना सिंचाई के बोआई के तुरंत बाद बोई जा सकती है.
मकई-तोरिया-सूरजमुखी
इस फसल चक्र में मक्का की बुवाई जून के प्रारम्भ में होती है. तोरिया की जल्दी पकने वाली किस्म का चुनाव करना चाहिए. तोरिया के बाद जनवरी के प्रथम पखवाड़े में सूरजमुखी की बुआई करने से इसकी पैदावार अच्छी होती है.
मूंगफली-आलू-बाजरा
मूंगफली को इस फसल चक्र में मई के पहले सप्ताह में बोया जाना चाहिए, जिससे अक्टूबर के पहले सप्ताह में आलू बोने के लिए खेत खाली हो जाता है. चारा बाजरा की बुआई आलू की कटाई के बाद मार्च के प्रथम पखवाड़े में कर देनी चाहिए.
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मूंगफली-मटर-सूरजमुखी
इस फसल चक्र में मूंगफली मई के दूसरे पखवाड़े में, मटर अक्टूबर के दूसरे पखवाड़े में और सूरजमुखी फरवरी के पहले पखवाड़े में बोई जाती है. इस फसल चक्र में मूंगफली मार्च के प्रथम पखवाड़े तक, मक्का जुलाई के प्रथम पखवाड़े तक तथा आलू/मटर मध्य अक्टूबर तक बोई जाती है.
स्प्रिंग मूंगफली-पनट-आलू/मटर
इस फसल चक्र में मूंगफली की बुआई मार्च के प्रथम पखवाड़े में, मूंगफली की बुआई जुलाई के प्रथम पखवाड़े में तथा आलू/मटर की बुवाई मध्य अक्टूबर तक कर देनी चाहिए.
हल्दी-प्याज
इस फसल चक्र के तहत अप्रैल के अंत में हल्दी की बुआई कर देनी चाहिए. यह फसल नवंबर के अंत में खेत खाली कर देती है, जिसमें जनवरी के प्रथम सप्ताह से जनवरी के मध्य तक लाल प्याज के धान को उखाड़ देना चाहिए. इसके लिए पनीर की बिजाई मध्य अक्टूबर से मध्य नवंबर तक कर देनी चाहिए.
पंजाब की समस्या
धान फसल चक्र पंजाब का प्रमुख फसल चक्र है. पंजाब के लगभग 35 लाख हेक्टेयर में गेहूं और 31 लाख हेक्टेयर में धान की फसल तैयार होती है. इस फसल चक्र से किसानो की उपज काफी अच्छी होती है, लेकिन इस फसल चक्र के कुछ नकारात्मक पहलू जैसे भू-जल स्तर का कम होना, पराली प्रबंधन की समस्या, ग्रीन हाउस गैसों का बनना, फसल विविधता में कमी आदि जैसी समस्याएं आ रही हैं.
आज की मांग है कि गेहूँ-धान फसल चक्र के अंतर्गत कुछ क्षेत्रफल कम किया जाए तथा अन्य फसल चक्रों के अधीन क्षेत्रफल बढ़ाया जाए, जिससे किसान का लाभ बढ़े तथा पर्यावरणीय समस्याओं का समाधान हो सके. इसके लिए गेहूं और धान के विकल्प के रूप में अन्य फसलें जैसे मक्का, मेंथा, हल्दी, दालें, चारा, तिलहनी फसलें और सब्जियां लगाई जा सकती हैं.
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