आज देसी फसलों की कई ऐसी किस्में है जो विलुप्त होने की कगार पर है. धान की ऐसी ही एक किस्म है काला चावल. औषधीय गुणों से भरपूर काले चावल की किस्म को बचाने के लिए छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले का कृषि विभाग किसानों का सहयोग कर रहा है.
इसके लिए किसानों को काले चावल का बीज मुहैया कराया जा रहा है. इस वजह से कांकेर जिले के किसानों का काले चावल की खेती में रूझान बढ़ा है. यहां के स्थानीय किसान शैलेष नागवंशी इसकी उपज कर रहे हैं. उनका कहना है कि धान की किस्म काफी फायदेमंद है क्योंकि इसमें कई औषधीय गुण होते हैं.
पहले हमने धान की इस किस्म के बारे में महज सुना ही था. लेकिन कृषि विभाग ने हमें इसका बीज मुहैया कराया. कुछ नया करने के चलते हमने तकरीबन एक एकड़ में इसकी बुवाई की है.
इन जिलों में होती है धान की खेती (Paddy is cultivated in these districts)
छत्तीसगढ़ राज्य को धान का कटोरा कहा जाता है. इसके बस्तर, बीजापुर, बलरामपुर, धमरतरी, दंतेवाड़ा, बिलासपुर, जशपुर, कांकेर, कवरदहा, कोरिया, नारायणपुर, राजनंदगाँव, सरगुजा जैसे जिलों में धान की खेती की जाती है. राज्य में कई किसान साल में दो बार इसकी खेती करते हैं. इन जिलों में हाइब्रिड राइस की ही खेती होती है. ब्लैक राइस की खेती बेहद कम की जाती है. जबकि इसकी खेती किसानों के लिए फायदेमंद हो सकती है.
काले चावल की किस्में (Black rice varieties)
राज्य में काले चावल की परंपरागत खेती होती रही है. इसकी प्रमुखें किस्में इस प्रकार है- तुलसी घाटी, गुड़मा धान और मरहन धान लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया राज्य में इन किस्मों की पैदावार नाममात्र की होती गई. इस वजह से कृषि विभाग इन पुरानी किस्मों को सहेजना का काम कर रहा है. वह किसानों को बीज के साथ-साथ जैविक खाद और दवाई छिड़कने का स्प्रेयर भी दे रहा है. वहीं किसानों को कृषि वैज्ञानिकों द्वारा उन्हें परामर्श भी मिलता है.
ऐसे होगा मुनाफा परंपरागत धान की खेती से यहां का किसान दूर होता जा रहा है. वह अधिक मुनाफे के लिए हाइब्रिड धान की खेती कर रहा है. ऐसे में चावल की जो परंपरागत किस्में होती है उसकी अच्छी मांग रहती है और भाव भी अच्छा मिलता है. इसकी बड़ी वजह है कि इन किस्मों को औषधीय गुणों से भरपूर होना. ऐसे में यहां के किसानों के लिए यह कमाई का अच्छा जरिया बन सकता है. अभी इन परंपरागत किस्मों की बेहद कम खेती होती है. बता दें कि राज्य के कांकेर जिले में महज 10 एकड़ में इसकी खेती की जा रही है. कांकेर जिले के कृषि वैज्ञानिक विश्वेश्वर नेताम का कहना है कि कांकेर जिले में पहली मर्तबा काले चावल की खेती की जा रही है.
जो कि जैविक तरीके की जा रही है. धान की हाइब्रिड किस्म बिना फर्टिलाइजर के पैदा ही नहीं होता लेकिन काले चावल की खेती जैविक तरीके से की जा सकती है. वहीं यह खाने में भी काफी स्वादिष्ट होता है. डाॅ. नेताम का कहना है कि काले चावल की यह किस्म बस्तर जिले की है जिसे पहली बार कांकेर जिले में किया जा रहा है. बता दें कि छत्तीसगढ़ तकरीबन 43 लाख किसान धान की खेती पर निर्भर है. यहां 3.7 मिलियन हेक्टेयर में धान की खेती होती है.
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