Biofortified Wheat Variety: भारत अब दुनिया की सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन चुका है. इसी के साथ ये एक ऐसा देश भी है जिसकी गिनती खाद्यान्न उत्पादन के मामले में दुनिया के सबसे बड़े देशों में की जाती है. लेकिन क्या आपको मालूम है कि ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2022 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, कुपोषण के मामले में भारत का नाम दुनिया के 122 देशों की लिस्ट में शामिल हैं जिसमें भारत का स्थान 107वां है. ऐसे में इस कुपोषण से लड़ने के लिए भारत सरकार बायोफोर्टिफाइड फसलों पर जोर दे रही है, ताकि देश में लोगों को पोषक तत्वों से भरपूर अनाज उपलब्ध कराया जा सके.
वहीं, भारत में खाद्यान्न के दुनिया में गेहूं का काफी महत्व है. जिसको समझते हुए 30 अक्टूबर 2023 यानी कि सोमवार को बायोफोर्टिफाइड फसलों और खासकर गेहूं की बायोफोर्टिफाइड किस्मों पर कृषि जागरण द्वारा एक खास लाइव वेबिनार का आयोजन किया गया. जिस पर विस्तार से चर्चा करने के लिए वेबिनार में कृषि विज्ञान केंद्र बिजनौर, उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ. के.के. सिंह मौजूद रहे.
खाद्यान्न उत्पादन पर फोकस
इस दौरान, कृषि वैज्ञानिक डॉ. के.के. सिंह ने बायोफोर्टिफाइड फसलों के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि 60 और 70 दशक की शुरूआत में भारत में खाद्यान्न की काफी कमी थी और खाद्यान्न की कमी को दूर करने के लिए भारत के वैज्ञानिकों ने कुछ ऐसी प्रजातियों को विकसित किया जिनके जरिए किसान ज्यादा से ज्यादा उत्पादन हासिल कर सकें. जिसके बाद देश में भुखमरी की समस्या तो कम हुई मगर इस दौरान हम ये भूल गए कि जिस खाद्यान्न से हम अपना पेट भर रहे हैं उसमें पोषक तत्वों की कमी है. जैसे- जिंक, आयरन और कई सूक्ष्म पोषक तत्व आदि.
बायोफोर्टिफाइड फसलें कहते हैं?
हालांकि, बीते 10 सालों से वैज्ञानिकों ने इस विषय पर शोध करना शुरू किया है कि हमारे शरीर में जिन भी पोषक तत्वों की जरूरत होती है, वो हमें बाहर किसी और तरीके से नहीं लेना पड़े, बल्कि जो भी आम दिनचर्या में खाते हैं जैसे- रोटी, चावल और दाल आदि के जरिए ही ये हमारे शरीर में इन पोषक तत्वों की कमी पूरी हो जाए. वहीं, इन पोषक तत्वों की आपूर्ति जिन फसलों में होती है उन्हीं को हम बायोफोर्टिफाइड फसलें कहते हैं.
गेहूं की बात करें.. तो सामान्य तौर पर गेहूं में आयरन की मात्रा 25-32 पीपीएम तक होती है. जो कि शरीर में पोषक तत्वों की आपूर्ति के लिए पर्याप्त नहीं है. ऐसे में वैज्ञानिकों ने गेहूं की ऐसी बायोफोर्टिफाइड किस्मों को विकसित किया जिनमें आयरन की मात्रा 40 पीपीएम से लेकर 48 पीपीएम तक होती है. जिसके चलते अब हमें रोटी के जरिए भी आयरन की आपूर्ति होने लगी है, और इसी तरह गेहूं की किस्मों में जिंक और बाकी पोषक तत्वों की मात्रा भी बढ़ाई जा रही है.
बायोफोर्टिफाइड फसलों के नाम
इसके आगे बायोफोर्टिफाइड फसलों की कुल संख्या के बारे जानकारी देते हुए कृषि विज्ञान केंद्र बिजनौर के वैज्ञानिक डॉ. के.के सिंह ने बताया कि इनमें गेहूं, धान, सरसों, मसूर दाल, मूंगफली, अलसी, फूलगोभी और अनार आदि जैसे कई अनाज, सब्जियां और फलों की बायोफोर्टिफाइड किस्में इस समय विकसित की जा चुकी हैं.
गेहूं की बायोफोर्टिफाइड किस्में/ Biofortified Varieties of Wheat
गेहूं की बायोफोर्टिफाइड प्रमुख किस्में इस प्रकार हैं-
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डीबीडब्ल्यू 370 (करण वैदेही)
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डीबीडब्ल्यू 371 (करण वृंदा)
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डीबीडब्ल्यू 372 (करण वरुणा)
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एचपीबी- डब्ल्यू 01
गेहूं की बायोफोर्टिफाइड किस्मों की खासियत
बायोफोर्टिफाइड किस्मों को विकसित करते हुए कृषि वैज्ञानिकों द्वारा इन बातों का भी ध्यान रखा गया है कि कहीं जिन किस्मों में उनके द्वारा पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ाई जा रही है इसकी वजह से उनकी उत्पादकता तो प्रभावित नहीं हो रही है. इसके बाद जब रिसर्च शुरू की गई तो ऐसी गेहूं की किस्में विकसित की गई जिनमें ना केवल आयरन और जिंक की ज्यादा मात्रा है, बल्कि इनसे किसानों को ज्यादा पैदावार भी हासिल हो रही है. इन्हीं में एक किस्म विकसित की गई डीबीडब्ल्यू 187, जिसकी खासियत की बात करें तो इससे किसानों को प्रति हेक्टेयर 96 क्विंटल का उत्पादन हासिल होता है और इसमें आयरन की मात्रा 43 पीपीएम से ज्यादा है. वहीं डीबीडब्ल्यू 330 में प्रोटीन की मात्रा ज्यादा पाई जाती है.
बायोफोर्टिफाइड और फोर्टिफाइट अनाज में अंतर
डॉ. के.के सिंह ने बताया कि बायोफोर्टिफाइड फसलों का उत्पादन मानव शरीर में पोषक तत्वों की आपूर्ति के लिए किया जाता है उनसे उत्पादित होने वाले अनाज में पोषक तत्व मौजूद होते हैं. जो मानव स्वास्थ्य के लिए जरूरी माने जाते हैं, और अनाजों में इनकी आपूर्ति करने से व्यक्ति को बाहर दुकानों से या किसी और माध्यम से इन्हें ग्रहण करने की आवश्यकता नहीं पड़ती है. वहीं, फोर्टिइफाइड फसलों का उत्पादन मुख्य रूप से खाद्यान्न आपूर्ति के लिए किया जाता है. ताकि फसलों से ज्यादा पैदावार हासिल की जा सके और वर्तमान में फोर्टिफाइड चावल को पीडीएस में बंटवाया जा रहा है. इसके अलावा, कार्यक्रम के आखिर में डॉ. के.के सिंह ने बायोफोर्टिफाइड गेहूं किस प्रकार विकसित किया जाता है उसके बारे में जानकारी दी.
अगर कोई भी किसान बायोफोर्टिफाइड गेहूं का उत्पादन करने के इच्छुक हैं और इस बारे में विस्तार से जानकारी लेना चाहते हैं, तो कृषि विज्ञान केंद्र बिजनौर, उत्तर प्रदेश से उनकी ई-मेल आईडी [email protected] पर मेल कर सीधा संपर्क कर सकते हैं.
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