खरीफ सीजन की प्रमुख फसल धान (Paddy) है, जिसकी रोपाई का समय नजदीक आ रहा है, इसलिए अधिकतर किसानों की नजर सबसे ज्यादा एक्सपोर्ट होने वाले बासमती पर है. ऐसे में हम किसानों के लिए एक अहम जानकारी लेकर आए हैं.
दरअसल, जिन किसानों को कम समय में फसल का अधिक उत्पादन लेना है, वह पूसा बासमती 1692 (Pusa Basmati 1692) के बीज का इस्तेमाल कर सकते हैं.
पूसा ने विकसित की किस्म
धान की इस किस्म को पूसा ने जून 2020 में विकसित किया है. यह एकदम नई किस्म है, इसलिए इसके बीज की सीमित उपलब्धता ही होगी. कृषि विशेषज्ञों की मानें, तो किसानों की आय (Farmers Income) फसलों के दाम बढ़ने से नहीं, बल्कि फसल की पैदावार (Production) ज्यादा होने से बढ़ती है. ऐसे में यह किस्म किसानों के लिए बहुत लाभदायक है. बता दें कि किसानों ने पूसा कृषि मेले में भी काफी इसका बीज खरीदा था.
पूसा बासमती 1692 किस्म की खासियत
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) पूसा की मानें, तो यह किस्म कम अवधि वाली फसल देती है. इस किस्म से सिर्फ 115 दिन में फसल तैयार हो जाती है. फसल जल्दी ही तैयार होने के कारण बाकी समय में उसी खेत में अन्य उपज पैदाकर अधिक लाभ कमा सकते हैं.
पूसा बासमती 1692 किस्म से पैदावार
यह किस्म पूसा बासमती 1509 की तुलना में प्रति एकड़ 5 क्विंटल ज्यादा पैदावार देती है. यानी इससे किसानों को प्रति एकड़ 27 क्विंटल तक पैदावार प्राप्त होगी. यह पांच दिन पहले तैयार हो जाती है. इस किस्म का चावल (Rice) ज्यादा टूटता नहीं है, साथ ही लगभग 50 प्रतिशत खड़ा चावल निकलता है. बता दें कि दिल्ली, हरियाणा (Haryana) और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बासमती जीआई (Geographical Indication) क्षेत्र के लिए इसकी अनुशंसा की गई है.
जानकारी के लिए बता दें कि हमारा देश न सिर्फ बासमती का सबसे बड़ा उत्पादक है, बल्कि निर्यातक भी है. दुनिया के लगभग डेढ़ सौ देश में बासमती की मांग की जाती है. एपिडा की मानें, तो सालाना लगभग 30 हजार करोड़ रुपए के चावल का एक्सपोर्ट (Export) होता है. इसके साथ ही औसतन 15 हजार करोड़ रुपए का गैर बासमती चावल एक्सपोर्ट किया जाता है.
खास बात यह है कि देश के 7 राज्य हरियाणा, उत्तराखंड, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली के बाहरी क्षेत्रों, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के कुछ भागों में बासमती को जीआई टैग मिला चुका है.
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