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बासमती की ये किस्म देगी प्रति एकड़ 22 से 25 क्विंटल उत्पादन, फसल में नहीं होगा ब्लास्ट रोग

किसानों के लिए खरीफ सीजन बहुत महत्पूर्ण होता है, क्योंकि देश के अधिकतर किसान इस मौसम में धान की खेती करते हैं. भारत के कई हिस्सों में धान की खेती होती है. जहां किसान विभिन्न प्रकार की किस्मों की बुवाई करते हैं. इसमें बासमती चावल भी शामिल है, जिसका उत्पादन दुनियाभर में पहले स्थान पर है. मगर पिछले कई सालों से बासमती चावल में रसायन की अधिक मात्रा का उपयोग कर रहे हैं, जिससे उत्पादन में कमी आ रही है. ऐसे में किसानों को बासमती चावल की एक नई किस्म बासमती 1637 की बुवाई करनी चाहिए. इस किस्म को रोग अवरोधी माना जाता है, जिससे किसान को रसायन का छिड़काव नहीं करना पड़ेगा.

कंचन मौर्य

किसानों के लिए खरीफ सीजन बहुत महत्पूर्ण होता है, क्योंकि देश के अधिकतर किसान इस मौसम में धान की खेती करते हैं. भारत के कई हिस्सों में धान की खेती होती है. जहां किसान विभिन्न प्रकार की किस्मों की बुवाई करते हैं. इसमें बासमती चावल भी शामिल है, जिसका उत्पादन दुनियाभर में पहले स्थान पर है. मगर पिछले कई सालों से बासमती चावल में रसायन की अधिक मात्रा का उपयोग कर रहे हैं, जिससे उत्पादन में कमी आ रही है. ऐसे में किसानों को बासमती चावल की एक नई किस्म बासमती 1637 की बुवाई करनी चाहिए. इस किस्म को रोग अवरोधी माना जाता है, जिससे किसान को रसायन का छिड़काव नहीं करना पड़ेगा.

धान की बासमती-1637 किस्म

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने पूसा बासमती-1 से बासमती 1637 किस्म को विकसित किया है. बता दें कि यह किस्म पूसा बासमती-1 का सुधरा हुआ रूप है. भारत सरकार के बीज अधिनियम के तहत बासमती की कई अन्य किस्में विकसित हुई हैं. साल 1966 से अब तक  बासमती चावल की करीब 29 किस्में आ चुकी हैं, जिनकी खेती देश के कई राज्य करते हैं.

बासमती-1637 किस्म है रोग अवरोधी

इस किस्म में रोग रोधी क्षमता अधिक होती है. धान की पूसा बासमती-1 में ब्लास्ट रोग का खतरा रहता है, लेकिन 16937 में यह बीमारी नहीं लगती है. इससे फसल में रसायन का छिड़काव भी नहीं करना पड़ता है. ऐसे में इस किस्म की बुवाई से किसानों के प्रति एकड़ 22 से 25 क्विंटल की पैदावार प्राप्त हो सकती है. इस किस्म की बुवाई करके किसानों अपनी आमदनी को दोगुना कर सकते हैं.

क्या है ब्लास्ट रोग

यह रोग पिरीकुलेरिया ओराइजी नामक कवक से फैलता है, जो कि धान की फसल के लिए बहुत हानिकारक है. यह रोग पत्तियों और उसके निचले हिस्सों पर छोटे और नीले धब्बें बना देता है. इसके बाद धब्बें नाव की तरह दिखाई देने लगते हैं. ध्यान दें कि इस रोग के लक्षण सबसे पहले पत्तियों पर ही दिखाई देते है. इस रोग का आक्रमण गांठो और दानों के छिलकों पर भी होता है. यह एक फफूंदजनित रोग है, जो कि पत्तियों, गांठो और बालियों को अधिक प्रभावित करता है.  

इन राज्यों में होती है बासमती की खेती

देश में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा, जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के किसान बासमती चावल की खेती करते हैं. इसमें पंजाब बासमती उत्पादन में अग्रणी राज्य माना जाता है.

ज़रूरी जानकारी

अगर कोई किसान धान की खेती में इस किस्म की बुवाई करना चाहता है, तो वह पूसा में संपर्क कर सकता है. यहां से किसानों को सही दाम पर बीज उपलब्ध हो जाएंगे.

ये खबर भी पढ़े: सुगंधित धान की नई किस्म अगले साल विकसित, 4000 से 4500 रुपए प्रति क्विंटल किसान बेच पाएंगे पैदावार !

English Summary: Sowing of Basmati-1637 variety will give good production Published on: 16 May 2020, 03:52 PM IST

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