कृषि वैज्ञानिक फसलों के अच्छे उत्पादन के लिए नई-नई किस्म तैयार करते हैं. इसी कड़ी में फसल मानकों, अधिसूचना एवं फसल किस्मों के विमोचन की केंद्रीय उप-समिति ने बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा 8 फसलों की 10 नई किस्म विकसित की गई है. इन किस्मों का अनुमोदन भी कर दिया है.
इस संबंध में अधिक जानकारी देते हुए बीएयू कुलपति डा. ओंकार नाथ सिंह ने बताया कि ये विवि की बड़ी उपलब्धि है. कृषि वैज्ञानिकों द्वारा झारखंड के किसानों को ये अनुपम भेंट है. एक दशक से अधिक समय के बाद विवि द्वारा विकसित किस्मों को राज्य वेरायटी रिलीज की गई है. इनमें उड़द, अरहर, सोयाबीन, सरसों, बेबीकॉर्न (मक्का), मड़ुआ की एक-एक तथा तीसी की 3 किस्में शामिल हैं. इसके अलावा अनुशंसित बैगन की 2 किस्में बिरसा चियांकी बैगन-1 एवं बिरसा चियांकी बैगन-2 ऐसी हैं, जिन्हें केंद्रीय एजेंसी द्वारा अलग बैठक में अनुमोदन मिलने की संभावना जताई जा रही है.
आगे कुलपति ने बताया कि इन उन्नत किस्मों की उत्पादन क्षमता 15 से 20 प्रतिशत अधिक है. इनसे राज्य में कृषि उत्पादन और उत्पादकता में काफी वृद्धि होगी. इसके साथ ही फसलों का उत्पादन अच्छा होगा. इसके अलावा परिपक्वता अवधि कम रहेगी. तो आइए आपको इन नई किस्मों की विशेषताओं के बारे में बताते हैं.
बिरसा गेहूं - 4 (जेकेडब्लू)
इस किस्म की उत्पादन क्षमता 51.72 क्विंटल प्रति हेक्टेयर बताई जा रही है. इससे फसल लगभग 110-130 दिनों में परिपक्व हो जाती है. यह सूखा एवं ताप सहिष्णु और रोग प्रति किस्म है.
इस किस्म की खास बात यह है कि इसके दाने में 11 प्रतिशत प्रोटीन होता है. वहीं उच्च आयरन एवं जिंक की मात्रा अच्छी होती है. बता दें कि यह किस्म पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, पश्चिम उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश एवं जम्मू कश्मीर के तराई क्षेत्रों के लिए काफी उपयुक्त है.
बिरसा उड़द-2
इस किस्म की उत्पादन क्षमता 12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. इससे फसल लगभग 82 दिनों में परिपक्व हो जाती है. इसकी एक फली में 6-7 बड़े भूरे दाने होते हैं. यह सर्कोस्पोरा, लीफ स्पॉट और जड़ विगलन रोग प्रतिरोधी है. इसके अलाव एफिड का न्यूनतम प्रकोप होता है.
बिरसा अरहर-2
इस दलहनी किस्म में प्रोटीन की मात्रा 22.48 प्रतिशत पाई जाती है. इसका दाना अंडाकार होता है, तो वहीं दाने का रंग भूरा होता है. इसकी उत्पादन क्षमता 27.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है और परिपक्वता अवधि 235-240 दिन की है. यह विल्ट और बोरर के प्रति प्रतिरोधक है.
बिरसा सोयाबीन-3
इस किस्म का बीज हल्का पीले रंग का होता है और इसका आकार अंडाकार होता है. इसमें तेल की मात्रा 19 प्रतिशत व प्रोटीन 38.8 प्रतिशत होती है. इसकी उत्पादन क्षमता 27.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक है. अगर परिपक्वता अवधि की बात करें, तो यह 115-120 दिन तक की होती है. यह विभिन्न रोगों के और कीड़ों के प्रति सहिष्णु है. इसके अलावा भुआ पिल्लू का प्रकोप नहीं होता है.
बिरसा भाभा मस्टर्ड-1
इस किस्म का दाना बड़े आकार का होता है. इसे बीएयू एवं भाभा आणविक अनुसंधान केंद्र के संयुक्त सहयोग से विकसित किया गया है. इसमें सरसों के तेल की मात्रा लगभग 40 प्रतिशत है. इसके साथ ही अल्टरनरिया ब्लाइट, व्हाइट रस्ट और एफिड के प्रति सहिष्णु है. यह 112-120 दिनों में परिपक्व हो जाती है. इस किस्म की उत्पादन क्षमता 14.9 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.
तीसी
तिलहन फसल तीसी की 3 किस्में विकसित की गई हैं. इसमें बिरसा तीसी-1 में तेल की मात्रा 34.6 प्रतिशत तक की है. इसकी औसत उपज 11.4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. वहीं, फसल 128-130 दिनों में तैयार होती है. यह किस्म अल्टरनरिया ब्लाइट और रस्ट के प्रति उच्च प्रतिरोधी है, तो वहीं विल्ट और बडफ्लाई के प्रति मध्यम प्रतिरोधी है. तीसी की दूसरी किस्म दिव्या में तेल की मात्रा लगभग 40 प्रतिशत होती है.
बिरसा बेबी कार्न-1
इस किस्म की औसत उपज क्षमता 16.7 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है और परिपक्वता अवधि 50-65 दिन तक की है. इस किस्म की बुवाई से फसल की कटाई 48 वें दिन से शुरू हो जाती है, जो कि 65वें दिन तक जारी रहती है. इसकी तीन बार तुड़ाई होती है. कई रोगों के प्रति सहिष्णु है.
बिरसा मड़ुआ-3
यह किस्म नमी की कमी के प्रति सहिष्णु होती है. इसके साथ ही नेक और फिगर ब्लास्ट के प्रति मध्यम प्रतिरोधी है. इसकी औसत उपज क्षमता 28.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. वहीं परिपक्वता अवधि लगभग 110-112 दिन तक की होती है.
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