1. Home
  2. सम्पादकीय

धान की महत्वपूर्ण बीमारियाँ एवं उनके समाधान

धान हरियाणा क्षेत्र की मूल फसल नहीं है, फिर भी धान की काश्त लगभग 10.5 लाख हैक्टेयर में की जाती है परन्तु कई बीमारियों के कारण इसकी गुणवत्ता व प्राप्ति में भारी गिरावट देखी गई है। हरियाणा राज्य में धान पर 17 बीमारियों का प्रकोप होता है उनमें से कुछ बीमारियाँ आर्थिक दृष्टी से महत्वपूर्ण है। निम्नलिखित बीमारियों की पहचान व समाधान कुछ इस प्रकार है-

धान हरियाणा क्षेत्र की मूल फसल नहीं है, फिर भी धान की काश्त लगभग 10.5 लाख हैक्टेयर में की जाती है परन्तु कई बीमारियों के कारण इसकी गुणवत्ता व प्राप्ति में भारी गिरावट देखी गई है। हरियाणा राज्य में धान पर 17 बीमारियों का प्रकोप होता है उनमें से कुछ बीमारियाँ आर्थिक दृष्टी से महत्वपूर्ण है। निम्नलिखित बीमारियों की पहचान व समाधान कुछ इस प्रकार है-

बदरा या ब्लास्ट - पत्तियों पर आँख के आकार के धब्बे बनते हैं। तने काले पड़ने लगते हैं और अंत में पौधा तने से टूट कर गिर जाता है।

रोकथाम

बासमती धान की रोपाई जुलाई के पहले पखवाड़े में करें।

बीमारी के लक्षण नजर आते ही 120 ग्राम ट्राईस्य्क्लोजोन (बीम या सिवीक) 75 व.प या 250-500 ग्राम कार्बनडाजिम 750 लिटर पानी में मिलकर छिड़काव करें व दूसरा छिडकाव 50% बलिया निकलने पर करें।

मैनकोजेब 1.5-2 किलोग्राम 750 लिटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।

बलिया निकलते समय खेत में सूखा न पड़ने दें।

जीवाणु पत्ता अंगमारी - इस बीमारी में पीले रंग के लहरदार क्षतिग्रस्त स्थल, पत्तियों के एक या दोनों किनारों से प्रारंभ होकर नीचे की ओर बढ़ते हैं और अंत में पत्तियां सूख जाती है। गहन संक्रमण की स्थिति में रोग पौधे के ओर भागो जैसे बालियाँ तथा तने को भी सूखा देता है।

रोकथाम

प्रतिरोध किस्मों जैसे आई आर 64 (IR64), आई आर 120 (IR120) व पी आर 116 (PR116) की कशत करें।

कॉपर आक्सिक्लोराइड के छिड़काव से अंगमारी को रोका जा सकता है।

500 ग्राम ब्लाइटाक्स को 500 लिटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करें। दस से बारह दिनों के अंतर पर दुबारा छिड़काव करें।

40 पीपी एम स्ट्रेप्टोमाइसिन में बीज को 12 घंटो के लिए भिगोने के बाद बिजाई करें या फिर 100-150 पीपी एम का घोल बनाकर शुरुआती दिनों में ही पोधों पर छिड़काव करें।

तनागलन - रोगग्रस्त पोधे पीले कमजोर व स्वस्थ पोधों के मुकाबले ज्यादा लम्बे होते हैं तथा जमीन की सतह से गलकर सूख जाते हैं। पौधो के तने के नीचे के हिस्से से जेड निकल आती है तथा सफेद व गुलाबी रंग की फफूंद दिखाई देने लगती है।

रोकथाम

रोग ग्रस्त पोधो की रोपाई न करें और उन्हें निकाल कर जला दें।

धान की पनीरी खड़े पानी में उखाड़े।

बाबिस्टीन के 0.1% घोल में बीज को 36 घंटे भिगोने से तल गलन रोग पुर्णतः नियन्त्रण में पाया जाता है।

50 ग्राम एमीसानको 100 लिटर पानी में घोलकर 1 क्विंटल बीज को 24 घंटे भिगोंये तथा अंकुरित होने पर बिजाई करें।

ब्लास्ट या झुलसा रोग - यह रोग फफूंद से फैलता है। पौधे के सभी भाग इस बीमारी द्वारा प्रभावित होते है। प्रारम्भिक अवस्था में यह रोग पत्तियों पर धब्बे के रूप में दिखाई देता है। इनके धब्बों के किनारे कत्थई रंग के तथा बीच वाला भाग राख के रंग का होता है। रोग के तेजी से आक्रमण होने पर बाली का आधार से मुड़कर लटक जाना। फलतः दाने का भराव भी पूरा नहीं हो पाता है।

नियत्रंण

उपचारित बीज ही बोएं

जुलाई के प्रथम पखवाड़े में रोपाई पूरी कर लें। देर से रोपाई करने पर झुलसा रोग के लगने की संभावना बढ़ जाती है

यदि पत्तियों पर भूरे रंग के धब्बे दिखाई देने लगे तो कार्बेन्डाजिम 500 ग्राम या हिनोसाव 500 मि.ली. दवा 500-600 लिटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टेयर में छिड़काव करें। इस तरह इन दवाओं का छिड़काव 2-3 बार 10 दिनों के अंतराल पर आवश्यकतानुसार किया जा सकता है।

संवेदनशील किस्मों में बीमारी आने पर नाइट्रोजन का कम प्रयोग करें और रोगग्रस्त फसल के अवशेषों को कटाई के बाद जला देना चाहिए।

English Summary: Important Paddy Diseases and Their Solutions Published on: 12 July 2018, 04:40 IST

Like this article?

Hey! I am . Did you liked this article and have suggestions to improve this article? Mail me your suggestions and feedback.

Share your comments

हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें. कृषि से संबंधित देशभर की सभी लेटेस्ट ख़बरें मेल पर पढ़ने के लिए हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें.

Subscribe Newsletters

Latest feeds

More News