पादप रोग विज्ञान अनुप्रयुक्त (अप्लाइड) विज्ञान की वह शाखा है जिसके अंतर्गत पादप रोगों के कारकों, रोग हेतु विज्ञान, उनके परिणाम स्वरूप हुई हानियों एवं प्रबंधन का अध्ययन किया जाता हैं. प्राचीन काल से ही मनुष्य अपने साथ विभिन्न पौधों, बीजों तथा रोपण पदार्थों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक तथा एक देश से दूसरे देश में ले जाता रहा है. पौधों, बीजों तथा रोपण पदार्थों में, बहुत से रोगकारक जैसे फफूंदी, जीवाणु तथा विषाणु होते हैं जो मिट्टी, हवा अथवा बीजाणु जनित होते हैं, इनके साथ एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचते रहे हैं और इस प्रकार से विश्व के उन भागों में उन सभी रोग कारकों का प्रकीर्णन भी हो गया, जो वहां पहले से उपस्थित नहीं थे. जब कोई बाह्य रोग किसी नए क्षेत्र में प्रवेश करता है, तब वह उन रोगों की अपेक्षा अधिक विनाशी सिद्ध हो सकता है, जो उस क्षेत्र मे पहले से ही उत्पन्न हो रहे हैं. कभी- कभी कई रोग, जो अपनी उत्पत्ति स्थान वाले देश में कम विनाशी होते हैं, जब किसी नए देश में प्रवेश करते है तो वहां की जलवायु इसके रोग कारकों के इतनी अनुकूल होती है कि यह उस देश की फसल को अधिक मात्रा मे हानि पहूंचाकर पूर्ण रूप से नष्ट कर देते है. और इससे वहां के उद्योग को भी संकट मे डाल देते है. फ़्रांस में अंगूरो की मृदुरोमिल आसिता (डाऊनी मिल्डयू) रोग का प्रवेश वर्ष 1878 में अमेरिका से मंगाई गयी अंगूर की कलमों द्वारा हुआ था तथा इस रोग के द्वारा वहां के अंगूर उद्योग को भारी क्षति पहुंची थी. भारत में भी अनेक बाह्य रोग कारकों से उत्पन्न पादप रोगों ने समय-समय पर प्रवेश किया है जो फसलों को भारी हानि पहुंचाते रहे हैं.
पादप रोगों की अधिसूचना
जब कोई पादप रोग फसल पर उग्र रूप में उत्पन्न होता है, तब किसान द्वारा उस रोग के उत्पन्न होने की सूचना कृषि क्षेत्र के उच्च अधिकारियों को दी जाती है, जिससे की रोग की उचित रोकथाम की जा सके और निकट भविष्य में उसके प्रसार या फैलाव को रोका जा सके. कृषि अधिकारी द्वारा अन्य दूसरे क्षेत्रों के किसानों को भी फसल पर उत्पन्न हुए उस विशेष रोग की सूचना दे दी जाती है.
पादप नाशकजीवों एवं रोगों के उन क्षेत्रों में जहां वो नहीं पाये जाते हैं, अपवर्जन, प्रसार, फैलाव एवं निरोध या निवारण स्थापित होने में विलम्ब के उद्देश्य से कृषि विकास सामग्री के संचलन अथवा गमनागमन या आयात एवं निर्यात पर विधिक या कानूनी प्रतिबंध को एक पादप संगरोध या संपर्करोध के रूप में परिभाषित किया जा सकता है.
पादप संगरोध का वर्गीकरण: पादप संगरोध को विश्व की राजनैतिक ईकाईयों के आधार पर निम्न दो भागों में विभक्त किया गया है.
अंतरराष्ट्रीय पादप संगरोध: इस पादप संगरोध के अंतर्गत पादप पदार्थों के आवागमन पर विधिक (कानूनी) नियंत्रण करके एक देश से दूसरे देश मे रोगों या नाशक जीवों के प्रवेश या विस्तार को रोका जाता है. इसमे बीजों, रोग ग्रस्त पौधों तथा पादप प्रवध्यों (पौधों के भागों को) को एक देश से दूसरे देश में लाने व ले जाने पर प्रतिबन्ध लगाया जाता है.
राष्ट्रीय पादप संगरोध: इसके अंतर्गत पादप रोग कारकों, कीटों एवं खरपतवारों के प्रवेश को रोकनें के लिए पादप सामाग्री को एक राज्य के भीतर स्थानीकृत क्षेत्रों में एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने पर प्रतिबंध लगाया जाता है. परन्तु यह केवल एक देश के भीतर ही उस देश की केन्द्रीय एवं राज्य सरकारों द्वारा लागू किया जाता है.
इसमें रोगी पौधों, बीजों या रोपण पदार्थो जैसे कंद, शल्ककन्द, प्रकन्द, घंकन्द को अंत:भूस्तारी, मूल कलम, कलम इत्यादि को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना या गमनागमन एवं बिक्री पर कानूनी रोक लगाया जा सकता है, जिससे कि रोगग्रस्त क्षेत्रों से रोग रहित क्षेत्रों में रोग के प्रवेश एवं प्रसार या फैलाव को रोका जा सके. आज कल भारत में केले के फलों को छोड़कर केले के सम्पूर्ण पौधे या उसके रोगी रोपण अंगो, जैसे अंत:भूस्तारी, स्तंभ या तना इत्यादि कि बिक्री तथा केले के गुच्छित चूड़ रोग (बनाना बंची टॉप वाइरस) से बाधित या ग्रस्त असम, केरल, ओड़ीशा एवं पश्चिम बंगाल राज्यों से देश के अन्य सभी रोग रहित राज्यों मे ले जाने पर पूर्ण प्रतिबंध है. इसी प्रकार का प्रतिबंध केले का मोजैक (बनाना मोजैक वाइरस) से ग्रस्त महाराष्ट्र एवं गुजरात राज्यों से केले के फलों के अतिरिक्त इसके पौधों एवं अन्य भागों को अन्य सभी रोग रहित राज्यों में ले जाने पर लगाया गया है. आलू के कन्दों को भी पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग जिले से आलू के काला मस्सा रोग (सिंकाइट्रियम एण्डोबायोटिकम) तथा तामिलनाडु के नीलगिरी जिले से आलू का गोल्डेन सूत्रकृमि (ग्लोबोडेरा रोस्टोचिनेंसीस) देश के अन्य रोग रहित क्षेत्रों में लाने तथा बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध या रोक है, जिससे कि इन रोगों के नए क्षेत्रों मे प्रवेश या प्रसार या फैलाव को रोका जा सके.
ऑस्ट्रेलिया से 2006 में आयातित गेहूं के माध्यम से 14 तरह के खतरनाक खरपतवार, दो कवक या फफूंदी रोग बौना या ड्वार्फबंट (टिल्लेटिया कोण्ट्रोवर्सा) तथा अर्गट (क्लाविसेप्स पेर्पुरिया) और एक नया कीट भारत में पहुचें. इन 14 खरपतवारों में से 11 प्रजातियां भारत में नही पाई जाती हैं. ये दोनों कवक या फफूंद रोग भी भारत में पहले नहीं थे. भारत में इनका प्रवेश गेहूं कि फसल के लिये आभिशाप बनकर आया. ऐसे ही एक दूसरा उदाहरण सेब का है जो अमेरिका से आयातित होता हैं. इंग्लैंड में अंतरराष्ट्रीय कृषि ब्यूरों ने अमेरिका के सेबो में 184 कीटों कि पहचान की हैं जिनमें से 94 कीटों का भारत के संदर्भ में महत्त्व हैं सरल शब्दों में कहें तो अमेरिका से सेब के आयात कि प्रत्येक खेप (सैंपल) भारत में 94 ऐसे कीट ला रही हैं. जिनका यहां अब तक कोई अस्तित्व नही मिला था.
भारत मे प्रवेश कर चुकी कुछ बीमारियां एवं उनका उत्पत्ति स्थान
क्र. संख्या |
बीमारियां/रोग |
उत्पत्ति स्थान |
प्रवेश वर्ष |
1 |
कॉफी का गेरुआ रोग |
श्री लंका |
1879 |
2 |
आलु का पछेती झुलसा रोग |
यूरोप |
1883 |
3 |
गुलमोहर का गेरुआ रोग |
जापान/यूरोप |
1904 |
4 |
गेंहू का फ्लेग स्मट |
ऑस्ट्रेलिया |
1906 |
5 |
अंगुर की मृदुल आसिता |
यूरोप |
1910 |
6 |
कद्दू वर्गीय की मृदुल आसिता |
श्री लंका |
1910 |
7 |
मक्का की मृदुल आसिता |
जावा |
1912 |
8 |
केले का गुच्छित चूड़ रोग |
श्री लंका |
1940 |
9 |
धान की जीवाणुज पर्ण रेखा रोग |
फिलीपींस |
1967 |
भारत में पौधों इत्यादि के आयात का नियमन करने के लिए नियम:
भारत सरकार ने भारत में पादप वस्तुओं के आयात का निषेध, नियमन एवं प्रतिबंध करने के उद्देश्य से निम्न अधिसूचना जारी की है
1. पौधे के मूल उत्पत्ति देश के किसी उचित अधिकारी या प्राधिकारी द्वारा स्वीकृत प्रमाणपत्र.
2. वायु द्वारा पौधों के आयात का प्रमाणपत्र प्राप्त करने के लिए सभी प्रार्थना पत्रों को पौध सुरक्षा सलाहकार वनस्पति रक्षण संगरोध या भंडारण निदेशालय, फरीदाबाद (हरियाणा) के पास पहले ही भेजना होगा. प्रमाणपत्र कोई भी कारण बताए बिना जारी करने से रोका जा सकता है.
3. किसी भी पौधे का वायु द्वारा आयात केवल सांताक्रूज (मुंबई), मीनाम्बक्कम (चेन्नई), दम–दम (कोलकाता), इन्दिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डा (नई दिल्ली) तथा तिरुचिरापल्ली हवाईअड्डा द्वारा ही किया जाएगा.
4. वायु द्वारा आयात किये जाने वाले सभी पौधों के साथ भारत सरकार के पादप रक्षण सलाहकार द्वारा दिया गया हरा एवं नारंगी रंग का टैग बांधना होगा और दिये गए विशेष निर्देशों के अनुसार प्रयोग करना होगा.
5. वायु द्वारा आयातित सभी पौधों का प्रवेश, पत्तन पर पादप रक्षण सलाहकार अथवा उनके द्वारा अधिकृत व्यक्ति द्वारा निरीक्षण किया जाएगा और यदि आवश्यक हुआ तो उनको धूमित अथवा विसंक्रमित किया जाएगा.
लेखक :
डॉ० नीलम मौर्या ( शोध सहायक) क्षेत्रीय वनस्पति संगरोध केन्द्र, अमृत्सर, पंजाब – 143101
डॉ० चन्दन कुमार सिंह ( शोध सहायक) क्षेत्रीय वनस्पति संगरोध केन्द्र, अमृत्सर, पंजाब- 143101
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