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इस मुश्किल घड़ी में भारतीय अर्थव्यवस्था को बचाएगी खेती

हम हमेशा से सुनते आ रहे हैं कि इंसान की तीन सबसे बड़ी जरूरतें होती हैं, रोटी, कपड़ा और मकान. शायद इंसान कपड़े और मकान के बिना रह सकता है, लेकिन रोटी के बिना उसके जीवन की कल्पना कर पाना मुशकिल ही नहीं नामुमकिन है. सभी जानते हैं कि इस वक्त देश पर कोरोना का गंभीर संकट मंडरा रहा है. ऐसे में देश की पूरी जनता अपने घरों में कैद हो गई है लेकिन इंसान चाहे छोटा हो या बड़ा, उसको भोजन की आवश्यकता पड़ती ही है. मनुष्य की बुनियादी आवश्यकता भोजन ही है और ऐसे में देश में अन्न की आपूर्ति का जिम्मा किसानों पर ही आता है. इसमें कोई दो राय नहीं है कि भविष्य में किसान और खेती ही देश की अर्थव्यवस्था को बचाने में बड़ी भूमिका अदा करेंगे.

कंचन मौर्य
कंचन मौर्य

हम हमेशा से सुनते आ रहे हैं कि इंसान की तीन सबसे बड़ी जरूरतें होती हैं, रोटी, कपड़ा और मकान. शायद इंसान कपड़े और मकान के बिना रह सकता है, लेकिन रोटी के बिना उसके जीवन की कल्पना कर पाना मुशकिल ही नहीं नामुमकिन है. सभी जानते हैं कि इस वक्त देश पर कोरोना का गंभीर संकट मंडरा रहा है. ऐसे में देश की पूरी जनता अपने घरों में कैद हो गई है लेकिन इंसान चाहे छोटा हो या बड़ा, उसको भोजन की आवश्यकता पड़ती ही है. मनुष्य की बुनियादी आवश्यकता भोजन ही है और ऐसे में देश में अन्न की आपूर्ति का जिम्मा किसानों पर ही आता है. इसमें कोई दो राय नहीं है कि भविष्य में किसान और खेती ही देश की अर्थव्यवस्था को बचाने में बड़ी भूमिका अदा करेंगे.  

इस कठिन समय में एक कहावत कहना गलत नहीं होगा कि कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है. आज के हालातों को देखा जाए, तो कृषि के बिना अपने जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है. इतना ही नहीं, अगर हमारे देश में पर्याप्त अनाज न हो, तो ऐसी उथल-पुथल मच जाएगी, जिसकी शायद कोई  कल्पना नहीं करता सकता है.

हमारे यहां राष्ट्रीय जरूरत के 3 गुना से ज्यादा अनाज का भंडार है. रिपोर्ट्स की मानें तो इसके बावजूद 96 प्रतिशत प्रवासी मजदूरों को राशन नहीं मिल पाता है. इस कारण लॉकडाउन में कई मजदूर और गरीब भूखे-प्यासे पैदल सफर कर अपने गांव चले गए. देश में किसानों को उनके अनाज का उचित दाम नहीं मिल पाता है. इसके बावजूद किसान अनाज का उत्पादन करता है. देश में कोरोना और लॉकडाउन की स्थिति भी तब बनी, जब किसानों को रबी फसल की कटाई करनी थी. माना जा रहा था कि इस साल मौसम की मार झेलने के बाद भी फसल का उत्पादन ज्यादा मिलेगा. लोगों की आवाजाही के साथ रेस्टोरेंट, होटल और ढाबे भी बंद हो गए हैं. इस कारण सब्जियों और फलों की मांग घट गई.

कई रिपोर्ट में बताया गया है कि किसानों को बंदगोभी, फूलगोभी, मूली, मटर और दूसरी सब्जियों के लिए खेतों में हल चलाना पड़ गया. कितनी टमाटर की फसल बर्बाद हो गई. इसके अलावा स्ट्रॉबरी जानवरों को खिला दी गई, तो वहीं मशरूम सड़ गए. इतना ही नहीं, बाजारों में दूध, मछली और फूल पर बुरा प्रभाव पड़ा है. मौजूदा संकट में कृषि और मजदूरों का बुरा हाल है. इस बार रिकॉर्ड बताया गया था कि गेहूं का उत्पादन लगभग 10.6 करोड़ टन होगा, लेकिन खेत में मजदूरों की कमी से कटाई प्रभावित हो गई.

कृषि क्षेत्र से लगभग 50 प्रतिशत आबादी को रोजगार मिलता है. इसमें साल 2011-12 से 2017-18 के बीच सार्वजनिक क्षेत्र का निवेश जीडीपी का 0.3 से 0.4 प्रतिशत रहा है. माना जा रहा है कि इस समय में कृषि अर्थव्यवस्था मजबूत खंभे की तरह सामने खड़ी है. ओईसीडी (आर्थिक सहयोग और विकास संगठन) की मानें, तो फसलों का उचित दाम न मिल पाने की वजह से भारतीय किसानों ने 2000 से 2016-17 तक 45 लाख करोड़ रुपए खोए हैं. अगर किसान के पास यह राशि पहुंच जाती, तो किसानों को खेती छोड़ शहरों की ओर नहीं जाना पड़ता.

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English Summary: Farming will save the Indian economy Published on: 20 April 2020, 05:36 IST

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