पूरे विश्व के कुल ग्वार उत्पादन का लगभग 80 प्रतिशत अकेले भारत में होता है. यहां लगभग 2.95 मिलियन हेक्टर क्षेत्र में ग्वार की फसल उगाई जाती है, जिससे 130 से 530 किलोग्राम प्रति हेक्टर ग्वार का उत्पादन होता है, जो कि 65 देशों में निर्यात किया जाता है.
वहीँ, मौजूदा सीजन के दौरान देश में ग्वार के उत्पादन में 50 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आने की सम्भावना जताई जा रही है. ग्वार का उत्पादन मुख्यत: राजस्थान हरियाणा और गुजरात में होता है. कुल उत्पादन का 70 प्रतिशत से अधिक अकेले राजस्थान में होता है.
पिछले कई वर्षों से ग्वार व ग्वार गम की कीमतों में आई गिरावट के कारण किसानों का रुझान ग्वार की फसल की तरफ से घट गया है. जिसके कारण इस वर्ष ग्वार की बुवाई घट गई है. इस कारण ग्वार उत्पादन में गिरावट आई है. दूसरी ओर वर्तमान फसल जो आ रही है, उसमें ग्वार की क्वालिटी काफी हल्की है. तो आइये जानते हैं कि अन्य राज्यों में ग्वार का मंडी भाव क्या है?
मंडी |
ग्वार का भाव ₹/क्विंटल |
श्री गंगानगर |
6080 |
नोहर |
6048 |
संगरिया |
6100 |
हनुमानगढ़ |
6200 |
रावतसर |
6244 |
रायसिंहनगर |
6276 |
गोलूवाला |
6100 |
सादुलशहर |
6001 |
खाजूवाला |
6200 |
रावला |
6045 |
रिडमलसर |
6013 |
सरदारशहर |
6100 |
गजसिंहपुर |
6100 |
श्री विजय नगर |
6081 |
लूणकरणसर |
6111 |
गजसिंहपुर |
6100 |
सुमेरपुर |
6100 |
पूगल |
6150 |
श्रीकरणपुर |
6086 |
नागौर |
6100 |
श्रीमाधोपुर |
5970 |
बीकानेर |
6161 |
सिरसा |
6025 |
मंडी आदमपुर |
6081 |
ऐलनाबाद |
6200 |
कालांवाली |
5975 |
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ग्वार दलहनी फसल होने के कारण इसकी जडों में जड़ ग्रन्थियां पाई जाती है, जो वातावरणीय नाईट्रोजन का स्थिरीकरण करती है और मृदा की भौतिक दशा को सुधारने के साथ-साथ अन्य फसलों की उपज में वृद्धि करती है. ग्वार अनुपजाऊ लवणीय एवं क्षारीय मृदाओं को सुधारने का भी कार्य करती है. इसका प्रयोग हरी खाद के रूप में भी किया जाता है.
ग्वार के सही उत्पादन के लिए जरुरी टिप्स
ग्वार के अच्छे उत्पादन के लिए रबी फसल की कटाई के बाद खाली पड़े खेतों में बुवाई से पहले 15-20 टन प्रति हेक्टर सड़ी हुई गोबर की खाद मिलाएं. दलहनी फसल होने के कारण सामान्यत: ग्वार की फसल में उर्वरकों की कम आवश्यकता पड़ती है. ग्वार का बेहतर उत्पादन लेने के लिए 20-25 किग्रा नाइट्रोजन, 40-50 किग्रा फास्फोरस, 20 किग्रा सल्फर की सिफारिश वैज्ञानिकों द्वारा की गई है. सभी उर्वरक बुवाई के समय या अंतिम जुताई के समय देने चाहिए. फास्फोरस के प्रयोग से ना केवल चारे की उपज में वृद्धि होती है, बल्कि उसकी पौष्टिकता भी बढ़ती है. पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से और दो जुताइयां ट्रैक्टर चालित कल्टीवेटर से करें. अंतिम जुताई के बाद पाटा अवश्य लगाएं जिससे मृदा नमी संरक्षित रहे. इस प्रकार तैयार खेत में खरपतवार कम पनपते हैं. साथ ही वर्षा जल का अधिक संचय होता है.
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