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अपनी मेहनत व हिम्मत से बदली गांव, बनी ग्रीन लेडी

यदि जज्बा हो कुछ करने की तो उसके सामने बाधाएं नहीं रह जाती है. ऐसे ही महिला का ज्रिक कर रहे हैं जिन्होंने गांव की तस्वीर व तकदीर दानों बदल दी. बारह साल की आयु में जया देवी का विवाह हो गया और सोलह साल की कच्ची आयु में वो एक बेटी की मां बन गई. पति बाहर कमाने चले गये और और पिता की मौत के बाद वापस मायके चली आ गयी. यहां उसकी भेंट नोट्रेडम स्वास्थ केंद्र जमालपुर की सिस्टर अजिया से हुई जहां से उसके जीवन की धारा ही बदल गयी.

KJ Staff

यदि जज्बा हो कुछ करने की तो उसके सामने बाधाएं नहीं रह जाती है. ऐसे ही महिला का ज्रिक कर रहे हैं जिन्होंने गांव की तस्वीर व तकदीर दानों बदल दी. बारह साल की आयु में जया देवी का विवाह हो गया और सोलह साल की कच्ची आयु में वो एक बेटी की मां बन गई. पति बाहर कमाने चले गये और और पिता की मौत के बाद वापस मायके चली आ गयी. यहां उसकी भेंट नोट्रेडम स्वास्थ केंद्र जमालपुर की सिस्टर अजिया से हुई जहां से उसके जीवन की धारा ही बदल गयी. उन्हीं की प्रेरणा से हजारीबाग के मशीनरी संस्थान में जाकर सामाजिक कार्यां का प्रशिक्षण लिया और महाजनी प्रथा के खिलाफ महिलाओं को संगठित किया. कई अन्य की तरह वो बिहार की एक बाल वधु बन कर ही रह सकती थी लेकिन उन्होंने अपने लिए एक अलग रास्ता चुना. एक ऐसा रास्ता जिस पर चल कर वो बिहार की ‘‘ग्रीन लेडी’’ बन गईं.नक्सलियों के आतंक की वजह से उन्हें अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी. यही नहीं और भी कई तरह की चुनौतियों का उन्हें सामना करना पड़ा. लेकिन जया भी कोई सामान्य लड़की नहीं थी. वो अपने जीवन और गांव की परिस्थितियों को बदलने के लिए दृढ़ संकल्प थीं.

एक दिन, नियमति स्वास्थ्य जांच के दौरान बदलाव की अपनी इच्छा उन्होंने नर्स से साझा किया. नर्स ने उन्हें एक समूह बनाने का सुझाव दिया क्योंकि बिहार में अकेले लड़ना कम खतरनाक नहीं था. फिर उन्होंने साल 1997 में अपने गांव सारधी में हाशिए पर छुट गए समुदायों खासतौर पर महिलाओं की मदद के लिए और उन्हें महाजनों के चंगुल से निकाल कर वित्तीय स्तर पर स्वतंत्न बनाने के मकसद से एक स्वयं सहायता समूह का गठन किया. जया देवी कहती हैं, ‘‘एक आदिवासी महिला होने की वजह से मैंने नक्सल हमले और हर प्रकार के संघर्षों को देखा है. हर किसी का जीवन उनकी दया पर ही निर्भर था. मैं इस परिस्थिति को बदलने के लिए कृत संकल्प थी. मैं अपने गांव वालों को आर्थिक रूप से मजबूत बनाना चाहती थी’’. बिहार के मुंगेर जिले के धरहरा प्रखंड का बंगलवा पंचायत नक्सलियों के खौफ से कराह रहा है. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़ा जाति बाहुल यह इलाका मुख्यत: सुरम्य एवं दुरूह पहाड़ी क्षेत्न है जहां के लोगों के बीच नक्सलियों के खौफ के साथ सामंती प्रवृति के दबंगों का खौफ सामान्य लोगों पर बराबर बना रहता था. दबंगों के सामने सामान्य लोगों का कोई बस नहीं चलता था परन्तु वहां की एक अतिपिछड़ी जाति की बेटी ने एक ऐसा चमत्कार दिखा दिया जिसे बड़े-बड़ों ने नहीं किया होगा. जया नाम की इस बेटी को उसके कार्यों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर तो सरकार ने सम्मानित किया ही है अंतर्राट्रीय स्तर पर भी उसे सम्मान मिला.

बंगलवा पंचायत के सराधि गांव के रामधनी तांती एवं गुलाबी देवी की दूसरी बेटी जया की शिक्षा चौथी क्लास तक ही सीमति रही, लेकिन 2000 महिलाओं को साक्षर बनाकर उन्हें न केवल नारी सशक्तीकरण का पाठ पढ़ाया, बल्कि उनमें सामाजिक चेतना भी जगा दी. अपने कार्यों के बूते पूरे क्षेत्न में मसीहा के रूप में जानी जाती हैं. सराढी गांव में जन्मी जया ने बचपन से ही महाजनी प्रथा के दुष्परिणाम देखे. इसके प्रति उसमें गहरा आक्रोश था.

महाजनी प्रथा को ध्वस्त करने के लिये गांव की महिलाओं को संगठित कर एक स्वयं सहायता समूह गठित किया. पांच रूपये से बीस रूपये प्रतिदिन जमा कर अपनी आवश्यकता के कार्य में सहयोग प्रदान करने का सूत्नपात करते हुए महिलाओं में जागृति पैदा की और नशा उन्मूलन, शिक्षा , स्वास्थ प्रतिरक्षा, हक की लड़ाई और जीवन स्तर को उपर उठाने के उदेश्यों से उन्हें अवगत कराया. उन्होंने 2000महिलाओं को हस्ताक्षर करना सिखाया तथा बच्चों को स्कूल भेजने की प्रेरणा दी. समाज सेवा के क्षेत्न में उसने जो कदम बढ़ाया तो पीछे मुड़कर नहीं देखा. इस स्वयं सहायता समूह द्वारा प्रारंभ में अश्वगंधा , पामारोजा एवं इसी तरह के कुछेक सुगंधित पौधों की खेती प्रारंभ की गयी. इस कार्य में पूरा लाभ नहीं मिलने की संभावना को देखते हुए जया देवी के इस स्वयं सहायता समूह ने बंगलवा की पहाड़ी से बेकार बहने वाले जल को संरिक्षत कर पूरे क्षेत्न को सिंचित करने का बीड़ा उठाया और लोगों के श्रमदान से एक आहर का जीर्णोद्धार किया. फिर जया देवी ने जल संरक्षण के विविध उपायों द्वारा बंजर भूमि को सिंचित कर क्षेत्न में खेती के लिए जल संरक्षण के कार्य को गति प्रदान तो किया ही महिलाओं को एकित्नत कर स्वयं सहायता समूह का विस्तार भी किया.

एक स्वयं सहायता समूह से प्रारंभ होकर 285 समूहों का एक विशल कार्य क्षेत्न आज उस क्षेत्न में कार्यरत है जिसका अपना छोटा-मोटा बैंक भी ग्रामीण स्तर पर चलता है और लाखों के कारोबार सहायता समूहों द्वारा किया जा रहा है. महिलाओं को किसी तरह की चिकित्सकीय आवश्यकता खेती और सामाजिक आवष्यकताओं के लिए किसी का मोहताज नहीं होना पड़ता है और अपनी स्वयं की राशि से उनका जीवन स्तर संवरता जा रहा है.

जया देवी कहती है कि उनके इस अभियान में नाबार्ड द्वारा काफी सहायता दी गयी और उनके जलागम विकास (वाटर शेड) कार्यक्रम में 84.16 के अनुपात में नाबार्ड द्वारा सहायता दी जा रही है. आज बंगलवा क्षेत्न ही नहीं मुंगेर जिला के समीपवर्ती गांवों के साथ जमुई जिला के क्षेत्न में भी यह सहायता समूह कार्यरत है और इनका अपना खेती का ट्रैक्टर है. बंगलवा पंचायत के 35 स्वयं सहायता समूहों का महासंघ का निर्माण कर बिहार क्षेत्नीय ग्रामीण बैंक तत्कालीन मुंगेर क्षेत्नीय ग्रामीण बैंक के माध्यम से एक ट्रैक्टर खरीदा गया जिससे वंचित समुदाय के लोगों की खेती में बल मिला. जया देवी के नेतृत्व में इस महासंघ ने बिना किसी अनुदान के बैंक का ऋण मुक्त करा दिया. जया देवी क्षेत्न के लोगों में विकिसत कृषि तकनीक एवं कृषि उत्पादन प्राप्त कराने के लिए विभिन्न स्तरों से समन्वय कर क्षेत्न के कृषि परिदृश्य में सम्यक बदलाव के लिए सतत प्रयत्नशील है. श्रीमती जया देवी अपने स्वयं सहायता समूह महासंघ के अध्यक्ष एवं महासंघ की उपसमिति (सम्पर्क समिति) के अध्यक्ष होने के नाते क्षेत्न के विकास में योगदान करने वाले सरकारी एवं गैर सरकारी संगठनों से सम्पर्क स्थापित कर क्षेत्न में विभिन्न सेवाओं का समायोजन करवाती है. मुंगेर जिला अन्तर्गत नाबार्ड प्रायोजित दस जलागम परियोजनाएं कार्यान्वित करायी जा रही है. यह परियोजना राष्ट्रीय श्रम विकास योजना अन्तर्गत, बंजर भूमि विकास का कार्य कर रही है. श्रीमती जया देवी स्वैच्छिक योगदान देकर सहभागिता, पारिदर्षता एवं श्रमदान आधारित इन परियोजना को कार्यान्वित करा रही है.

स्वयं सहायता समूह से अब बिच्चयां भी जुड़ी है और इन बिच्चयों द्वारा सुबह में छोटे-छोटे बच्चों का शिक्षण कार्य किया जाता है और गाँव में बुजुर्ग महिलाओं को पढ़ाया जाता है. पहाड़ों से बहने वाले पानी से छह वाटर शेड से पांच हजार हेक्टेयर क्षेत्न की खेती हो रही है और लोगों का जीवन स्तर बदलता जा रहा है. आज इस क्षेत्न की महिलाएं सजग हो गयी हैं और उन्हें न्यूनतम मजदूरी का भी पूरा ज्ञान है. उन्हें खेती की जमीन भी जानकारी है और वे लोग नक्षा देख कर भी बता सकती हैं कि उनकी कौन सी जमीन है. जया देवी का यह सपना है कि अब उस क्षेत्र को नक्सल क्षेत्र न कहा जाए बल्कि हरित क्षेत्र के रूप में वह पूरा क्षेत्र जाना जाय.

श्रीमती जया देवी ने वैश्विक समस्या, जलवायु परिवर्तन एवं क्षेत्नीय समस्या जल, कृषि, पशुपालन एवं खाद्य सुरक्षा में नाबार्ड प्रायोजित जलागम परियोजना के माध्यम से धरहरा क्षेत्न के सभी परियोजनाओं में अपना योगदान दे रही है. क्षेत्न के ग्रामीणों के बीच जलागम दृष्टिकोण से वर्षा जल संरक्षण एवं बिगड़ते पर्यावरण सुधार के लिए विभिन्न संरचनाओं का जीर्णोद्धार, छोटे-छोटे कम लागत वाले स्थानीय तकनीक से जल संरक्षण हेतु विभिन्न संरचनाओं के आयोजन, क्रि  यान्वयन, निर्माण एवं अनुरक्षण संबंधी क्रि  याकलाप में योगदान दे रही है. श्रीमती जया देवी इन कार्यों के लिए परियोजना अंतर्गत विभिन्न प्रावधानों का लेखा वहीं का रखरखाव एवं अन्य सभी जानकारियां एवं बारिकियों को सीख कर अध्यक्षीय दायित्व का सफलता पूर्वक निर्वहन कर रही है. इतना ही नहीं, प्रक्षेत्न के कुछ संस्थानों ने इन्हें परियोजना, क्रि  यान्वयन, जागरूकता अभियान, समिति गठन एवं अन्य अवसरों पर एक संसाधन व्यक्ति के रूप में उपयोग करते हैं. जलागम परियोजना के सफल क्रि  यान्वयन से श्रीमती जया देवी ने एक सफल, प्रोएिक्टव सहभागी ही नहीं सषक्त सामुदायिक नेत्नी के रूप में अपनी पहचान बनायी है. जया की इसी सामाजिक दायित्व ने एम.एस.स्वामीनाथन फाउन्देशन की नॅशनल वर्चुअल अकादमी की ओर से ग्रामीण क्षेत्न में ज्ञान की क्र  ांति के लिए सम्मानित फेलोषिप अिर्जत कराया है.

आज वहां की महिलाएं स्वयं सहायता समूह का संचालन तो करती हैं उनके बीच से सचिव, कोषाध्यक्ष एवं अन्य आर्थिक कार्य वे चयन करते हैं. छोटी-छोटी आव्स्यकताओं के लिए उन्हें कहीं जाने की आवस्यकता नहीं होती है. वे आपस में ही संचित धन से एक-दूसरे की सहायता कर लेती हैं. बड़ी आवस्यकता के लिए उन्हें बैंक से राशि निकालनी पड़ती है. जया देवी ने कहती है कि नाबार्ड द्वारा सराधि, करैली, गोपालीचक, पंचरूखी एवं वनवर्षा नामक पांच गांवों को गोद लिया गया है और वहां के विकास में नाबार्ड अपनी महती भूमिका निभा रहा है. जया देवी उत्साह से लबरेज अदम्य शिक्तसंपन्न एवं बहुमुखी प्रतिभा का पर्याय हैं. जिसका नाम लोगों ग्रीन लेडी ऑफ मुंगेर के नाम से क्षेत्न में चर्चित जया देवी को भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय युवा पुरस्कार से भी नवाजा गया है और दक्षिण कोरिया में आयोजित युवा कार्यकर्ता प्रषिक्षण कार्यक्र  म में उन्हें भारत का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला है. इस प्रकार गांव की अतिपिछड़ी जाति की एक सामाजिक रूप से कमजोर महिला के अदम्य साहस, कभी नहीं हार मानने वाली दृढ़ इच्छाशिक्त एवं विकास के प्रति समिर्पत विचार ने उसे कहां से कहां पहुँचा दिया. मुंगेर के जिलापदाधिकारी कुलदीप नायर के मुताविक जया ने समाज में न केवल नारी सशक्तीकरण के लिए काम किया है,बल्कि उनमें सामाजिक चेतना भी जगायी है. वह सरकारी योजना का लाभ भी लोगों तक पहुंचा.

English Summary: Your hard and daring village, Bunny Green Lady Published on: 26 August 2017, 05:50 AM IST

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