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कहानी ऐसे दूधवाले की जिसका मकसद स्कूल खोलकर बच्चों को शिक्षित करना है

बिहार के अररिया जिले के रमजानी मियां कभी स्कूल नहीं जा सके। इस बात का उन्हें अफसोस था। अफसोस से परेशान होने के बजाय उन्होंने भावी पीढ़ी को शिक्षति करने का बीड़ा उठाया। दिक्कत यह थी कि गांव में स्कूल ही नहीं था। पांच वर्ष पूर्व उन्होंने लोगों से बांस मांगकर स्कूल बना डाला। अब तमघट्टी कूड़ा टोल के बच्चे बेकार घूमने के बजाय स्कूल जाने लगे हैं। रमजानी अपने गांव को निरक्षरता के कलंक से मुक्त करना चाहते हैं। अभिभावकों को करते हैं प्रेरित :

बिहार के अररिया जिले के रमजानी मियां कभी स्कूल नहीं जा सके। इस बात का उन्हें अफसोस था। अफसोस से परेशान होने के बजाय उन्होंने भावी पीढ़ी को शिक्षति करने का बीड़ा उठाया। दिक्कत यह थी कि गांव में स्कूल ही नहीं था। पांच वर्ष पूर्व उन्होंने लोगों से बांस मांगकर स्कूल बना डाला।  अब तमघट्टी कूड़ा टोल के बच्चे बेकार घूमने के बजाय स्कूल जाने लगे हैं। रमजानी अपने गांव को निरक्षरता के कलंक से मुक्त करना चाहते हैं। 
अभिभावकों को करते हैं प्रेरित : 
खुद के निरक्षर रहने की टीस ने रमजानी मियां को भावी पीढ़ी को साक्षर बनाने की प्रेरणा दी। कहते हैं किसी बच्चे को गंदे पानी में मछली मारते, बेगार करते या बेकार घूमते देख काफी दुख होता है। वे बच्चे के माता-पिता से मिलकर उसे स्कूल भेजने के लिए प्रेरित करते हैं। रमजानी अपने अनुभव साझा करते हुए कहते हैं कि मुङो अपने दूध का हिसाब भी दूसरों से कराना पड़ता है।
विद्यालय खोलने की ठानी 
साइकिल से दूध बेचने वाले रमजानी मियां ने पांच वर्ष पूर्व गांव में स्कूल खोलने की ठानी। लोगों से बांस मांगा और दिन-रात मेहनत कर झोपड़ीनुमा स्कूल बनाया। तत्कालीन जनप्रतिनिधियों ने भी उनकी मदद की और सरकार से विद्यालय को मंजूरी दिला दी। विद्यालय का नाम प्राथमिक विद्यालय कूड़ा टोला, तमघट्टी रखा गया। आज इसमें दो शिक्षक 200 बच्चों को पढ़ा रहे हैं।
उपेक्षति है रमजानी का विद्यालय
प्राथमिक विद्यालय कूड़ा टोल, तमघट्टी सरकारी उपेक्षा का दंश ङोल रहा है। सरकारीकरण होने के चार वर्ष बाद भी ना तो विद्यालय का भवन बना और ना ही यहां के बच्चों को मध्याह्न् भोजन मिलता है। विद्यालय को जमीन भी उपलब्ध है। रमजानी कहते हैं कि सरकार संसाधन उपलब्ध कराए तो और बेहतर करेंगे।
बांस की टूटी-फूटी झोपड़ी में पठन-पाठन
ग्रामीणों ने बताया कि कई बार विभाग से भवन बनवाने एवं एमडीएम शुरू करने की मांग की गई लेकिन कोई परिणाम नहीं निकला। बांस की टूटी-फूटी झोपड़ी में पठन-पाठन होता है। बारिश के दिनों में सीधे कक्षा में ही पानी गिरता है। इस कारण पढ़ाई प्रभावित होती है। इस संबंध में अररिया के डीईओ डॉ. फैयाजुर्हमान ने कहा कि मामले की जानकारी लेकर गांव के इस विद्यालय की समस्याओं को दूर किया जाएगा।
निरक्षर रहने की पीड़ा महसूस होने पर पूरे गांव को साक्षर करने का बीड़ा उठाया, ग्रामीणों से बांस मांगकर स्कूल बनाया । 
English Summary: Story is such a milkman whose purpose is to open the school and educate the children Published on: 26 August 2017, 05:56 AM IST

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