देश, युवाओं के लिए संभावनाओं से भरा हुआ है। बात सिर्फ नवाचार और उचित मार्गदर्शन की है। हर एक क्षेत्र में नवाचार आपके सफलता की राह अवश्य दिखाता है। कार्य क्षेत्र चाहें कोई भी हो सिर्फ शुरुआत करनी चाहिए। कृषि भी आज के समय में संभावनाओं से भरी हुई है। हर कार्य को सही निर्देशन में किया जाए तो कार्य सफल होने की संभावनाएं अधिक हो जाती हैं।
इसी प्रकार एक युवा ने वर्मीकम्पोस्ट बनाने की विधि और जानकारी के लिए प्रशिक्षण लिया और उसे एक उद्दम के रूप में साबित किया। ये सफल कहानी बरेली (यूपी) के प्रतीक बजाज की है। जिन्होंने कॉमर्स की पढ़ाई छोड़कर वर्मीकम्पोस्ट बनाने के लिए कृषि विज्ञान केंद्र के सहायता से वर्मीकम्पोस्ट बनाने में महारथ हासिल की है। बजाज ने शुरुआत में के.वी.के व्हाट्स ऐप ग्रुप से जुड़कर वैज्ञानिकों की सहायता से जानकारियां हासिल कर कार्य की शुरुआत की। वर्ष 2015 में प्रतीक ने बरेली स्थित आई.वी.आर.आई केंद्र में अपनी समस्यायें रखीं जिनके समाधान के लिए वैज्ञानिकों ने उन्हें सुझाव दिए।
उन्होंने 10x3 के वर्मीकम्पोस्ट बेड तैयार किया। जिसे उन्होंने तीन शेड सें ढक दिया नमी सोखने के लिए ईंटो से उचित तरीके दीवारों से ढक दिया। प्रारंभ में उन्होंने वर्मीकम्पोस्ट बेड को भरने में 10 क्विंटल गोबर तथा केंचुए की इस्नीया फोइटीडा का इस्तेमाल किया जो उन्होंने आवीआरआई से 200 किग्रा की दर से खरीद था । प्रत्येक बेड को उन्होंने 40 से 50 प्रतिशत की नमी व 20 से 30 डिग्री सेंटीग्रेड के तापमान से नियंत्रित किया। 90 दिन के भीतर उन्हें प्रारंभिक वर्मीकम्पोस्ट खाद प्राप्त की। वह वर्मीकम्पोस्टिंग के लिए रिन्हो वर्मी बेड व मटका तरीके का इस्तेमाल करते हैं।
रिन्हो बेड पद्धति पालीथाइलीन जाल व बेड की निचली सतह पर जाल का इस्तेमाल किया जाता है। वह मानते हैं कि वर्मीकम्पोस्टिंग के लिए सतह पद्धति की तुलना में रिन्हो बेड ज्यादा उपयुक्त है। यही नही एक साल में उन्होंने 50 लीटर वर्मीवाश प्राप्त किया। जिसे उन्होंने 250 रुपए प्रतिलीटर की दर बेचा।
तो वहीं दूसरी ओर उन्होंने कहा कि मटका पद्धति के द्वारा मूल्यवान वर्मीकम्पोस्ट प्राप्त किया जा सकता है। इसके अन्तर्गत केंचुओं के लिए उचित नमी बनी रहती है। उनके अनुसार इस प्रक्रिया में वह मटके को 10 किग्रा का मड प्रेस व 300-400 ग्राम केंचुओं का मिलाकर रख देते हैं। जिससे 40 से 60 दिन के अंदर वर्मीकम्पोस्ट प्राप्त कर लेते हैं। प्रत्येक 30X2 के बेड में उन्होंने 10 क्विंटल गोबर व 10 किग्रा केचुए से भरते हैं। जिसके लिए उन्हें विभिन्न सामग्रियों के लिए 700 रुपए का खर्च आया। जिसके फलस्वरूप उन्हें 6.5 क्विंटल वर्मीकम्पोस्ट व 17 किलोग्राम केचुए प्राप्त किया। कुलमिलाकर उन्हें तीनों बेड से 26 क्विंटल वर्मीकम्पोस्ट 68 किलोग्राम केचुआ प्राप्त किया। जिसे उन्होंने क्रमश: 5 व 200 रुपए किलोग्राम की दर से बेचा। जिससे उन्हें 41600 रुपए की आमदनी प्राप्त की। इस प्रकार उन्होंने प्राप्त खाद को 'ये लो खाद' नाम से बेचा। जिसे उन्होंने किसान मेले और विभिन्न काउंटर लगाकर बेचना शुरु किया।
इसके उपरान्त खाद के विपणन के लिए प्रयास करने शुरु किए। बरेली से नजदीक अपने बारदौली गांव में प्रतीक ने 7 बीघे की जमीन में 20 वर्मीकम्पोस्ट बेड तैयार किए हैं। जिनकी माप 30X 4X 1.6 की माप के हैं। अगस्त 2017 में प्रतीक ने सहयोगी बायोटेक के माध्यम से 400 क्विंटल वर्मीम्पोस्ट की बिक्री की। हर एक बेड से वह प्रत्येक डेढ़ माह के समयान्तराल में वह वर्मीकम्पोस्ट प्राप्त कर लेते हैं। खाद को और अच्छा बनाने के लिए वह नीम पत्तियों का इस्तेमाल भी करते हैं। अह वह वर्मीकम्पोस्ट की पैकिंग कर किसानों को उपलब्ध कराते हैं। 40 किलो खाद की पैकिंग का मूल्य 650 रुपए है जबकि खाद फुटकर में एक किलो 20 रुपए प्रतिकिलो की दर से बेचते हैं। बजाज ने अपनी कंपनी को और अधिक आधुनिक तरीकों से सुसज्जित करने के लिए वह पैकिंग मशीनों भी लगवाई हैं। आज उनकी टीम में मार्केटिंग के लिए 10,000 रुपए प्रतिमाह के वेतन पर कार्य कर रहें हैं साथ ही 3 कर्मचारी हैं जो कि 300 रुपए प्रतिमाह के वेतन पर कार्य करते हैं। अधिक प्रसार के लिए प्रतीक ने उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड समेत 11 नवयुवकों को प्रशिक्षित करने का कार्य किया है। व्यावसायिक प्रशिक्षण के लिए 4500 रुपए के शुल्क निर्धारित किया है तो वहीं किसानों को खाद बनाने के लिए निशुल्क प्रशिक्षण प्रदान कर रहें हैं।
प्रतीक ने कार्य की शुरुआत करने के लिए जहां स्वयं प्रशिक्षण लिया करते थे तो वहीं प्रगतिशील किसानों को अब वह प्रशिक्षण दे रहें हैं। यहीं नहीं आईवीआरआई बरेली में भी वह नियमित प्रशिक्षण देने के लिए जाते हैं।
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