झुन्झुनू जिले की चिढ़ावा पंचायत समिति का अनुसूचित जाति बाहुल्य गाँव महती की ढाणी. जिसमें अधिकांश परिवारों के पास रोटी रोजी के संसाधन नहीं होने की वजह से लगभग सभी गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने के लिये मजबूर थे. सबसे बड़ी समस्या इस गाँव की पेयजल की थी. जब कोई शादी समारोह होता तो परिवारजनों को कई दिनों तक पेयजल के इन्तजाम में जुटना पड़ता था. जितनी मेहनत शादी के इन्तजाम में नहीं होती उससे ज्यादा पीने के पानी की व्यवस्था में होती थी.
रामकृष्ण जयदयाल डालमियां सेवा संस्थान ने इस अनुसूचित जाति बाहुल्य गाँव की सर्वप्रथम पेयजल की समस्या से निजात दिलाने के लिये गांव के सरकारी स्कूल परिसर में वर्षा जल संरक्षण हेतु करीब 1 लाख लीटर क्षमता का भूमिगत कुण्ड बनाया. इस कुण्ड के बनने के बाद ग्रामीणों को पेयजल अथवा शादी समारोहों के लिये दूसरे गांवों से पानी नहीं लाना पड़ता अन्यथा गांव की महिलायें पानी के इन्तजाम में अपना पूरा दिन लगा देती थीं.
महती की ढाणी गांव में पेयजल की समस्या काफी पुरानी है. कई पीढ़ियाँ इस समस्या से जूझती आ रही हैं. जब संस्थान ने इस गांव को सर्वांगीण विकास के लिये गोद लिया तो सर्वप्रथम पेयजल समस्या का निदान कर ग्रामीणों को वर्षा जल संरक्षण कर शुद्ध पेयजल मुहैया कराया वैसे भूमिगत जल गांव में मौजूद है लेकिन पानी में लवणीय व क्षारीय तत्वों का समावेष होने के कारण इसका उपयोग पेयजल के रूप में नहीं किया जा सकता. जो लोग इसका उपयोग कर रहे थे वे विभिन्न बीमारियों से ग्रसित हो जाते और गरीबी के कारण अपना ईलाज भी नहीं करा पाते जिससे समय से पहले ही वे अपना शरीर छोड़ देते थे.
संस्थान ने ग्रामीणों में वर्षा जल संरक्षण के प्रति जाग्रति के लिये लगभग सभी घरों में वर्षा जल एकत्रिकरण के लिये भूमिगत टाँकों का निर्माण कराया तथा दैनिक उपयोग के बाद जो पानी सार्वजनिक रास्तों पर फैलकर गन्दगी फैलाता था उसकी रोकथाम के लिये कच्चे कुएँ बनवाये ताकि ये पानी भूमिगत जल में मिल सके . इस कार्य में ग्रामीणों का संस्थान का पूरा सहयोग मिला जिसका परिणाम यह रहा कि आज पूरा गाँव पेयजल के लिये आत्मनिर्भर हुआ है बल्कि सार्वजनिक रास्तों में गन्दे पानी के फैलने के कारण होने वाली गन्दगी से भी मुक्त हो गया है.
इसके अलावा संस्थान ने ग्रामीणों को खुले में शौच करने से होने वाली समस्याओं की जानकारी दी और सभी घरों में शौचालय निर्माण में सहयोग करने का प्रस्ताव रखा जिसपर सभी ग्रामीण सहयोग करने के लिये राजी हो गये. मात्र एक वर्ष में पूरे गांव के सभी घरों में शौचालयों का निर्माण हो गया है तथा इनके शत प्रतिशत उपयोग के बारे में समझाया तो ग्रामीण इसके लिये तैयार हो गये और इनका उपयोग शुरू हो गया जिससे आज यह गांव खुले में शौच से मुक्त हो गया है.
महती की ढाणी गांव में गरीबी इतनी थी की लोग मेहनत मजदूरी या बकरी पालन कर बड़ी मुष्किल से दो वक्त की रोजी रोटी जुटा पा रहे थे. गांव के 87 परिवारों में से करीब 80 परिवार गरीबी की रेखा के नीचे थे. खेती के लिये पर्याप्त संसाधन नहीं होने की वजह से लोग दोनों फसलें भी नहीं कर पा रहे थे जिसपर संस्थान ने ग्रामीणों की स्थानीय परिस्थितियों के आधार पर आय वृद्धि की योजना तैयार की. इस योजना में ग्रामीणों द्वारा दिये गये सुझावों को समाहित किया गया.
सर्वप्रथम ग्रामीणों को लवणीय व क्षाररोधी फसलों की बुवाई करने तथा बकरीपालन के प्रोत्साहन देने जैसे कार्यक्रम योजना में शामिल किये. चूंकि यह गांव भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौधोगिकी विभाग के सहयोग से संचालित समन्वित कृषि प्रणाली परियोजना में शामिल था जिसपर ग्रामीणों को खरीद एवं रवि की फसलों के लिये रोगरोधी एवं खारे पानी को सहन करनेवाली उच्च गुणवत्तायुक्त बीज निःशुल्क मुहैया कराये गये. साथ ही सिंचाई के लिये फव्वारा सिंचाई प्रणाली के उपयोग की सलाह दी. किसानों को समय समय पर दी गयी सलाह एवं गुणवत्तायुक्त बीजों की उपलब्धता के परिणामस्वरूप किसानों का कृषि उत्पादन बढ़कर डेढ़ से दोगुना हो गया.
महती की ढाणी के गरीब किसानों को कम क्षेत्र व लागत में अधिक आय प्राप्त करने के लिये कृषि के साथ-साथ बागवानी शुरू करने की भी सलाह दी गयी. उन्हें नींबू, मौसमी, किन्नू, बेर आदि फलदार पेड़ों के पौधे मुहैया कराये गये. किसानों ने संस्थान द्वारा उपलब्ध कराये गये इन पौधों को रोपकर नियमित सिंचाई शुरू की. सिंचाई के लिये बूंद-बूंद सिंचाई प्रणाली का उपयोग किया गया. संस्थान द्वारा फलदार पौधों के रखरखाव व उनमें लगने वाले रोगों की रोकथाम की जानकारी दी गयी तथा कीटनाषक दवाईयां भी उपलब्ध करायी गयी. जिसके कारण गांव में फलदार पौधों के बाग दिखाई देने लगे हैं. एक दो साल बाद जब इन बागानों में फल आने लगेंगे तो किसानों को इनसे अतिरिक्त आमदनी भी प्राप्त होने लगेगी.
ग्रामीणों को बकरीपालन व्यवसाय को प्रोत्साहित करने के लिये उन्हें अधिक लाभकारी माने जानेवाली बकरी की जमुनापारी व सिरोही नस्ल के बकरियों का पालन करने का सुझाव दिया जिसके पालन पर ग्रामीण सहमत हो गये. इन बकरियों को खरीदकर इनका उपयोग शुरू किया तो ग्रामीणों में इन नस्लों के प्रति लगाव बढ़ने लगा साथ ही संस्थान ने बकरियों में फैलने वाली बीमारियों की रोकथाम के लिये समय पर टीकाकरण कराने की व्यवस्था भी की गयी. स्थिति यह है कि आज महती की ढाणी गांव खुशहाली के मार्ग पर तेजी से बढ़ने लगा है.
रामचरण धाकड़
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