Successful Fish Farmer Success Story: बिहार के किशनगंज जिले के रहने वाले किसान मुज़फ्फर कमाल सबा की कहानी उन लाखों किसानों के लिए प्रेरणादायक है जो कृषि में नवाचार के माध्यम से अपने जीवन को बदलना चाहते हैं. कंप्यूटर साइंस में स्नातक और नौकरी छोड़कर कृषि क्षेत्र में हाथ अजमाने वाले किसान मुज़फ्फर कमाल सबा ने कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) की तकनीकी सहायता से मछली पालन का बिजनेस (fish farming business) शुरू किया. केवीके के मार्गदर्शन में तालाब निर्माण, मछलियों का चयन, पोषण, और रोग प्रबंधन में विशेषज्ञता हासिल की.
अब वह 2 हेक्टेयर में मछली पालन (fish farming) कर सालाना 150 क्विंटल मछली का उत्पादन करते हैं और लगभग 20 लाख रुपये का टर्नओवर जनरेट करते हैं. उनकी सफलता से गांव के अन्य किसान भी प्रेरित हुए हैं.
शुरुआती सफर: नौकरी से मछली पालन तक
मुज़फ्फर कमाल सबा ने वर्ष 2011 में मौलाना आज़ाद कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग से कंप्यूटर साइंस में स्नातक की पढ़ाई पूरी की. पढ़ाई के बाद वह बेंगलुरु में नौकरी करने लगे, लेकिन उनका मन हमेशा से कृषि की ओर झुका रहा. अंततः 2019 में उन्होंने नौकरी छोड़कर अपने गांव लौटने और कृषि के क्षेत्र में कुछ अलग करने का निर्णय लिया. कमाल के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि उन्हें पारंपरिक कृषि से हटकर कुछ ऐसा करना था जो न केवल उन्हें अच्छी आय प्रदान करे, बल्कि समाज में एक पहचान भी दिला सके.
कृषि विज्ञान केंद्र से जुड़ाव और प्रशिक्षण
कृषि के क्षेत्र में कुछ अलग करने के लिए उन्होंने कई विकल्पों पर विचार किया और अंततः मछली पालन को चुना. हालांकि, उन्हें इस क्षेत्र में कोई अनुभव नहीं था. ऐसे में, वह गूगल पर खोजबीन करने लगे और कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) के बारे में जानकारी प्राप्त की. किशनगंज में स्थित कृषि विज्ञान केंद्र होने के कारण उन्होंने वहां जाकर विशेषज्ञों से मुलाकात की. इस मुलाकात ने उनके जीवन को एक नई दिशा दी.
कमाल सबा ने कृषि विज्ञान केंद्र के विशेषज्ञों से मछली पालन (fish farming) का प्रशिक्षण लिया और भागलपुर स्थित कृषि विज्ञान केंद्र के मत्स्य इकाई का भ्रमण भी किया. वहां से उन्होंने मछली पालन की विस्तृत जानकारी प्राप्त की, जिसमें तालाब का निर्माण, स्थान चयन, मछलियों का पोषण, रोग प्रबंधन, मार्केटिंग और वित्तीय प्रबंधन जैसी महत्वपूर्ण बातें शामिल थीं.
मछली पालन में सफलता: मेहनत और मार्गदर्शन का परिणाम
शुरुआत में चुनौतियां बहुत थीं, लेकिन कमाल सबा ने हार नहीं मानी. उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र के विशेषज्ञों के मार्गदर्शन में तालाब निर्माण किया और मछलियों की सही प्रजातियों का चयन किया. उन्होंने IMC (इंडियन मेजर कार्प) और कैटफिश की फार्मिंग शुरू की.
कृषि जागरण से बातचीत में कमाल सबा ने बताया कि किशनगंज के बाजार में IMC मछली की बहुत अधिक मांग है, और यह उनके लिए एक फायदेमंद विकल्प साबित हुआ. 1 किलो IMC मछली का पालन करने में लगभग 80 रुपये का खर्च आता है, जबकि वह इसे अपने फार्म पर ही 135-150 रुपये प्रति किलो बेच देते हैं. वहीं, कैटफिश का पालन 70-75 रुपये प्रति किलो लागत में होता है और वह इसे 100-105 रुपये में बेच देते हैं.
कमाल सबा इस समय 2 हेक्टेयर क्षेत्र में फैले 10 तालाबों में मछली पालन (fish farming) कर रहे हैं और साथ ही बायोफ्लाक कल्चर (Biofloc Culture) का भी प्रयोग कर रहे हैं. मछली पालन बिजनेस (fish farming business) से वह अपनी लागत से दुगनी आय प्राप्त कर रहे हैं. उनकी मेहनत और धैर्य ने उन्हें 150 क्विंटल मछली उत्पादन तक पहुंचाया है, जिससे उनका सालाना टर्नओवर लगभग 20 लाख रुपये से अधिक हो गया है.
पुरस्कार और सम्मान: एक सफल किसान की पहचान
कमाल सबा की सफलता के चलते उन्हें कई प्रतिष्ठित पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए हैं. उन्हें बिहार कृषि विश्वविद्यालय द्वारा उत्कृष्ट किसान पुरस्कार से नवाजा गया और जिला पदाधिकारी द्वारा प्रशस्ति पत्र- (2020-21) और (2021-22) भी प्राप्त हुआ है.
सामाजिक और आर्थिक प्रभाव: प्रेरणादायक कहानी
कमाल सबा की यह सफलता सिर्फ उनकी व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं है. उनकी सफलता ने गांव के अन्य किसानों को भी प्रेरित किया है. कई किसानों ने उनकी कहानी से प्रेरणा लेकर मछली पालन (fish farming) और अन्य वैकल्पिक कृषि व्यवसायों को अपनाना शुरू किया है. इसके साथ ही, उनके फार्म पर कई लोगों के लिए रोजगार के अवसर भी उत्पन्न हुए हैं.
मेहनत, सही दिशा और मार्गदर्शन से मिलती है सफलता
कमाल सबा की यह कहानी इस बात का साक्ष्य है कि सही मार्गदर्शन और तकनीकी सहायता के साथ किसान अपनी पारंपरिक खेती के अलावा अन्य वैकल्पिक व्यवसायों से भी अच्छी आमदनी प्राप्त कर सकते हैं. कृषि विज्ञान केंद्र की सहायता से किसान अपने पारंपरिक तरीकों में नवाचार ला सकते हैं और अपनी आमदनी में बढ़ोतरी कर सकते हैं.
कमाल सबा की सफलता की कहानी इस बात का प्रमाण है कि मेहनत, धैर्य और सही मार्गदर्शन से कोई भी किसान अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकता है और समाज में एक नई पहचान बना सकता है.
इनपुट: डा० अलीमुल इस्लाम, विषय वस्तु विशेषज्ञ, (कृषि प्रसार)
कृषि विज्ञान केन्द्र, किशनगंज, बिहार
बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर, भागलपुर, बिहार
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