Success Story of Organic Farmer Mahesh Pipariya: गुजरात के राजकोट जिले के रहने वाले प्रगतिशील किसान महेश पिपरिया ने अपने संघर्ष और मेहनत से जैविक खेती के क्षेत्र में सफलता की नई मिसाल कायम की है. आज, उनके पास 22 एकड़ की सर्टिफाइड ऑर्गेनिक फार्म (Certified Organic Farm) है, जो न केवल देश के विभिन्न हिस्सों में बल्कि विदेशों में भी अपना नाम कमा चुका है. महेश ने परंपरागत खेती को छोड़कर जैविक खेती (Organic Farming) की ओर रुख किया, और अब उनके खेतों से उत्पन्न होने वाले उत्पादों को विदेशों में निर्यात किया जाता है. उनके गुलाब, गेंदा फूल, अमरूद के पत्ते, और अन्य जैविक उत्पादों को विदेशों में अच्छे दामों पर बेचा जाता है, जिससे उनका सालाना टर्नओवर 50 लाख रुपये से भी ज्यादा है.
प्रगतिशील किसान महेश पिपरिया की सफलता की कहानी किसानों के लिए एक प्रेरणा है, जो यह साबित करती है कि सही दिशा में मेहनत और आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल करके छोटे किसान भी बड़ी उपलब्धियां हासिल कर सकते हैं. उनके फार्म "गोकुल वाडी ऑर्गेनिक फार्म" के तहत उगाए गए फूलों की पंखुड़ियां विदेशों में बिकती हैं, जिससे उन्हें वाजिब मूल्य मिलता है. ऐसे में आइए इस लेख में हम महेश पिपरिया के जीवन, उनके संघर्ष और सफलता की कहानी के बारे में विस्तार से जानते हैं-
परंपरागत खेती से जैविक खेती (Organic Farming) की ओर रुख
प्रगतिशील किसान महेश पिपरिया का जीवन कृषि के साथ गहरे जुड़े हुए है, और उनका परिवार भी परंपरागत खेती से जुड़ा हुआ था. शुरू में उनके यहां कपास, मूंगफली और गेहूं जैसी सामान्य फसलों की खेती होती थी. लेकिन जब उन्हें यह महसूस हुआ कि परंपरागत खेती से ज्यादा लाभ नहीं मिल रहा है और बाजार में भी प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है, तब उन्होंने खेती के तरीके को बदलने का निर्णय लिया.
पिछले 14 वर्षों में प्रगतिशील किसान महेश ने अपनी खेती के तरीके में क्रांतिकारी बदलाव किए हैं. शुरुआत के चार वर्षों के बाद में उन्होंने परंपरागत खेती से शिफ्ट होकर फूलों की जैविक खेती शुरू की. इसके बाद उन्होंने धीरे-धीरे अपनी फार्म का आकार बढ़ाया और आज उनका 22 एकड़ का फार्म सर्टिफाइड ऑर्गेनिक फार्म के रूप में सफलतापूर्वक चल रहा है.
गुलाब की खेती: एक नये तरीके से
प्रगतिशील किसान महेश पिपरिया की सबसे प्रमुख और प्रसिद्ध खेती गुलाब की है. वह अपने 22 एकड़ के फार्म में से 10 एकड़ भूमि पर गुलाब की खेती करते हैं. यह गुलाब देसी किस्म का होता है, जो पूरे साल फूल देता है. गुलाब की खेती करने के लिए सबसे अच्छा समय उनके अनुसार जुलाई-अगस्त या फिर फरवरी-मार्च होता है. गुलाब की यह किस्म एक बार लगाने पर लगभग 5 साल तक फूल देती है, जो एक बहुत ही आकर्षक विशेषता है.
महेश गुलाब की खेती के लिए कलम विधि का उपयोग करते हैं, जिसमें पौधों को नर्सरी से खरीद कर खेतों में बुवाई की जाती है. हर एक एकड़ में 2200-2500 गुलाब के पौधे लगाए जाते हैं, और पौधों के बीच की दूरी 3 फीट तथा पंक्तियों के बीच 5 फीट होती है. उनका गुलाब खासतौर से उन लोगों को आकर्षित करता है जो हर्बल टी बनाने के लिए फूलों की पंखुड़ियां इस्तेमाल करते हैं.
पंखुड़ियां सुखाने की प्रक्रिया और निर्यात
प्रगतिशील किसान महेश पिपरिया का सबसे खास तरीका है कि वह अपने गुलाब के फूलों को बेचने की बजाय, फूलों की पंखुड़ियों को सुखाकर हर्बल टी में उपयोगी बनाते हैं. इसके लिए वह सोलर ड्रायर और इलेक्ट्रिक ड्रायर का उपयोग करते हैं, जिससे पंखुड़ियां ताजगी के साथ सुरक्षित रहती हैं. इन पंखुड़ियों को महेश अमेरिका और कनाडा जैसे देशों में निर्यात करते हैं, जहां उन्हें अच्छा मूल्य मिलता है.
वर्तमान में महेश के फार्म पर सालाना लगभग 5-6 टन गुलाब की पंखुड़ियों का उत्पादन होता है, जो 750 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बिकती है. यह उनके फार्म के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत है, जो उन्हें अच्छा लाभ देता है और जैविक खेती के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दिखाता है.
गेंदा फूल की खेती: विदेशों में निर्यात
प्रगतिशील किसान महेश पिपरिया केवल गुलाब की खेती ही नहीं करते, बल्कि गेंदा फूल की भी जैविक खेती करते हैं. उनके गेंदा फूलों भारत में नहीं बेचा जाता है, बल्कि लंदन जैसे देशों में निर्यात होता है. महेश खुद गेंदा फूल के पौधे तैयार करते हैं और रोपाई करते हैं, और हर साल लगभग 1 टन गेंदा फूल की पंखुड़ियां तैयार करते हैं. यह पंखुड़ियां विदेशों में बेची जाती हैं, और महेश को इनसे भी अच्छा मुनाफा मिलता है.
गेंदा फूलों की खेती महेश के फार्म के लिए एक और सफल व्यवसाय बन गई है, जो उन्हें खेती के विविध क्षेत्रों में सफलता दिला रही है.
अमरूद की खेती: पत्तों के लिए
महेश की एक और खास खेती अमरूद की है, जिसे वह फलों के लिए नहीं बल्कि पत्तों के लिए उगाते हैं. उनके फार्म में चार एकड़ में अमरूद के बाग हैं, जिनमें इलाहाबादी और सफेदा किस्म के अमरूद उगाए जाते हैं. महेश अमरूद के पत्तों का भी निर्यात करते हैं, और इन्हें सुखाने के बाद अमेरिका और कनाडा जैसे देशों में बेचा जाता है.
हर साल महेश को 6-7 टन अमरूद के पत्तों का उत्पादन मिलता है, जिन्हें वह ड्रायर से सुखाकर उच्च गुणवत्ता के रूप में तैयार करते हैं. इन पत्तों का उपयोग हर्बल उत्पादों में किया जाता है, और इस प्रक्रिया से महेश को अच्छा मुनाफा प्राप्त होता है.
व्हीट ग्रास और बीट रूट की खेती
प्रगतिशील किसान महेश पिपरिया की खेती में व्हीट ग्रास और बीट रूट की खेती भी शामिल है. व्हीट ग्रास, जिसे गेहूं घास भी कहा जाता है, विटामिन A, C, E, आयरन, कैल्शियम और क्लोरोफिल जैसे महत्वपूर्ण पोषक तत्वों से भरपूर होता है. व्हीट ग्रास की खेती महेश के फार्म में एक और लाभकारी फसल के रूप में उगाई जाती है, जो स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है.
इसके अलावा, वह बीट रूट यानी चुकंदर की भी जैविक खेती करते हैं, जो पोषक तत्वों से भरपूर होता है और स्वास्थ्य के लिहाज से बहुत फायदेमंद होता है.
सिंचाई और अन्य तकनीकें
महेश के फार्म पर सिंचाई की दो विधियां उपयोग में लाई जाती हैं: एक आधे फार्म में ड्रिप इरिगेशन और बाकी आधे फार्म में परंपरागत सिंचाई पद्धति. ड्रिप इरिगेशन का उपयोग पानी की बचत करने के लिए किया जाता है और इससे फसलों की गुणवत्ता भी बढ़ती है.
सफलता और भविष्य की योजनाएं
प्रगतिशील किसान महेश पिपरिया ने अपने संघर्षों और मेहनत के जरिए एक सफल जैविक फार्म तैयार किया है, जो न केवल उनके लिए बल्कि समाज के अन्य किसानों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत है. उनका फार्म न केवल देश में बल्कि विदेशों में भी पहचान बना चुका है. वह जैविक खेती को बढ़ावा देने और किसानों को इसके फायदे बताने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं. वर्तमान समय में उनसे प्रभावित होकर 7 किसान फूलों की जैविक खेती कर रहे हैं.
महेश के पास भविष्य में और भी योजनाएं हैं. वह अपने फार्म का विस्तार करना चाहते हैं और नए उत्पादों की खेती की योजना बना रहे हैं ताकी सालाना टर्नओवर 1 करोड़ रुपये तक पहुंच जाए.
प्रगतिशील किसान महेश पिपरिया का इंटरव्यू देखने के लिए लिंक पर क्लिक करें
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