पटियाला जिले के नाभा से सटे गांव खोख के रहने वाले लगभग 71 वर्षीय नेक सिंह जिंदगी में कई उतार-चढ़ाव देखे, मगर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। मार्केट की नब्ज पकड़ उन्होंने इतनी मेहनत की कि आज वह पंजाब के नंबर वन मिर्च उत्पादक हैं। इनकम टैक्स भरने वाले गिने-चुने किसानों की फेहरिस्त में उनका नाम शुमार है। वह मिर्च की खेती से एक एकड़ में दो लाख रुपए कमा लेते हैं और इसी के दम पर उन्होंने अपनी चार एकड़ की पैतृक जमीन को बढ़ाकर 65 एकड़ तक कर लिया है।
लोगों को मिर्ची खिलाने वाले नेक सिंह को खाने में नहीं हैं मसाले पसंद...
नेक सिंह समय-समय पर हरियाणा में लगने वाले किसान मेलों में भी शिरकत करते रहते हैं। मिर्च की खेती के लिए उन्होंने अनुकूल माहौल बनाने को लेकर पॉली हाउस का विकास किया। ये पॉली हाउस राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब में काफी मशहूर रहा है।
- -जब उनसे सवाल किया जाता है कि खुद को बिना मसाले का खाना पसंद है तो फिर इतने बड़े लेवल पर मिर्च का उत्पदान क्यों तो वह तपाक से जबाव देते हैं, ‘क्यों नहीं, इसकी मांग बेहद है और ये मांग कभी खत्म नहीं होगी।‘
इस तरह रहा संघर्ष का सफर
- अपने अनुभव के बारे में नेक सिंह बताते हैं कि बात साल 1965 की है। कुछ पारिवारिक कारणों के चलते दसवीं की पढाई के बाद आगे नहीं पढ़ पाए। तेरह एकड़ जमीन पर काम शुरू किया, जिसमें से उनके हिस्से लगभग 4 एकड़ जमीन ही आई।
- उनके शुरुआती दिन संघर्ष से भरे रहे। यहां तक कि उन्हें घर का खर्च चलाने के लिए पेप्सू रोड ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन की बस में कंडक्टर की नौकरी भी करनी पड़ी, लेकिन हिम्मत नहीं हारी।
- नेक सिंह के साथ उनके बड़े भाई भी रहते थे और 1960 में सभी को विरासत में एक समान जमीन मिली थी, लेकिन अपनी उद्यमिता के बल पर उनमे से सबसे आगे निकलने में सिर्फ नेक सिंह ही कामयाब रहे।
- जिस वक्त राज्य में हरित क्रांति जोर पकड़ रही थी, उस करीब 20 साल की उम्र में नेक सिंह ने साहसिक कदम उठा खेती के लिए साढ़े 3 हजार रुपए के कर्ज से ट्यूबवेल लगाने का फैसला किया।
- यह रकम उस जमाने में ये बहुत बड़ी हुआ करती थी, वहीं नेक सिंह ने एक किर्लोस्कर इंजन खरीदा और उसे खुद ही असेंबल भी किया।
- सरकार की योजना के मुताबिक उन्होंने गेहूं और चावल की खेती शुरू की। हालांकि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की मदद से उन्हें एक स्थिर आमदनी जरूर मिल रही थी, लेकिन नेक सिंह संतुष्ट नहीं थे और वो और कमाना चाहते थे।
- इसी सिलसिले में सन 1980 से उन्होंने वैज्ञानिकों और कृषि विशेषज्ञों से मिलना शुरू कर दिया। पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी(पीएयू) के संपर्क में आने के बाद कपास और टमाटर के पौधों का परीक्षण किया और नई तकनीक सीखी।
- इसी का नतीजा रहा कि 1988 से लेकर 2000 तक उन्हें टमाटर की खेती से काफी आमदनी हुई। टमाटर के साथ ही उन्होंने 1991 से मिर्च की खेती भी शुरू कर दी और उसके बाद से उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
- बीते सीजन में उन्होंने साढ़े तीन एकड़ में मिर्च के पौधे लगाए, लेकिन बताते हैं उनका टारगेट 10 एकड़ तक पहुंचने का है। नेक सिंह गेहूं की खेती नहीं करते हैं, बल्कि रबी के मौसम में ज्यादा कमाई वाली फसल आलू, सूरजमुखी और खरीफ मौसम में मिर्च और बासमती चावल की खेती करते हैं।
इस तरह आया बदलाव
- पंजाब कृषि विश्वविद्यालय और भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) के प्रयोगों को दोहराते हुए 1991 में वो मिर्च की सफल खेती से परिचित हुए। इस काम को समझने में उन्हें बेंगलुरु के इंडियन इस्टीट्यूट ऑफ हॉर्टिकल्चर से भी काफी मदद मिली।
- नाभा के ये उद्यमी बताते हैं, “मैं देशभर के वैज्ञानिकों को जानता था जिन्होंने मुझे मिर्च की सीएच-1 प्रजाति के परीक्षण में शामिल होने का मौका दिया। साल दर साल मैंने विशेषज्ञों से मिल रही जानकारी की मदद से इस प्रजाति में सुधार करता रहा, जबकि मिर्च के आधिकांश किसान ये भी नहीं जानते हैं कि नर्सरी कैसे तैयार की जाती है।”
- बाद में उन्होंने मिर्च की खेती के लिए अनुकूल माहौल बनाने के लिए पॉली हाउस का विकास किया। ये पॉली हाउस राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब में काफी मशहूर था।
100 औरतें काम करती हैं नेक सिंह के फार्म पर, कमाती हैं 10 हजार तक
नेक सिंह इलाके की महिलाओं को काम करने का मौका देते हैं और उन्हें प्रति घंटा के लिए 40 रुपए देते हैं। नर्सरी की देखभाल, मिर्च चुनने, दूसरे काम में सहयोग करने जैसे काम के लिए हर साल 100 महिलाओं को काम पर रखते हैं। नेक सिंह बताते हैं कि उनके यहां काम करने का माहौल घर के जैसा है, वहीं उनके काम करने वाली महिलाएं हर महीने करीब 10 हजार रुपए कमा लेती हैं।
संकर किस्म के लिए हवा का रुख परखना जरूरी
नेक सिंह को मिर्च की संकर किस्म का विशेषज्ञ बनने में उन्हें कई साल लग गए। आईएआरआई के वैज्ञानिकों द्वारा बताई गई जानकारी को सांझा करते हुए नेक सिंह बताते हैं, ‘संकर किस्म बनाने के दौरान हवा की दिशा बेहद अहम भूमिका निभाती है। संकर पौधे को दो अन्य फसलों के बीच की कतार में रखना चाहिए और इसमे भी हवा की बहाव की दिशा में सही कोण का ध्यान रखना है।‘
मिर्च की खेती संबंधी कुछ खास बातें
- एक एकड़ नर्सरी से 285 एकड़ खेती के लिए पौधे तैयार होते हैं।
- मिर्च के पौधों (सैंपलिंग) से प्रति वर्ष 4500 रुपये से लेकर 6000 रुपए प्रति एकड़ तक आमदनी।
- हर साल पौधों (सैंपलिंग) से कुल आमदनी 26 से 50 लाख रुपए।
- प्रति एकड़ पौधे से करीब साढ़े सात लाख से 14 लाख रुपए की आमदनी।
- पौधे के बढ़ने का समय 5 महीना (नवंबर से मार्च तक)
- पैदावार लागत (श्रम, लॉजिस्टिक्स, इन्फ्रास्ट्रक्चर, पौधे के लिए बीज) ढाई लाख प्रति एकड़
श्रम लागत 40 रुपए प्रति घंटा। - एक एकड़ में 180 से 220 क्विंटल हरी मिर्च के साथ 200 क्विंटल लाल मिर्च का उत्पादन होता है
हरी मिर्च का बाजार मूल्य 12 से 25 रुपए प्रति किलो। - प्रति एकड़ सकल आय 6 लाख रुपए।
- प्रति एकड़ कुल आमदनी ( पैदावार लागत को घटाने के बाद) पांच लाख रुपए।
- प्रति एकड़ लैंड लीज 20 से 40 हजार रुपए (कुल आमदनी से घटाकर)
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