माना जाता है कि परवल की खेती गंगा किनारे ही होती है. झारखंड की मिट्टी और जलवायु परवल के लिए उपयुक्त नहीं मानी जाती. पर इस धारणा को नकारते हुए गोला के हेसापोड़ा पंचायत के भुभूई गांव की शांति देवी ने परवल की खेती कर समाज को यह बता दिया कि अगर लगन व जज्बा हो तो कोई काम असंभव नहीं है. शांति ने पहली बार दो वर्ष पूर्व एक एकड़ जमीन में परवल लगाया था, जिससे अच्छी पैदावार हुई.
आज साल में चार बार इसे तोड़कर बाजार में बेचती है जिससे करीब एक लाख बीस हजार रुपए की आमदनी हो जाती है. एक बार में करीब चालीस किलो परवल निकलता है. शांति ने बताया कि उसने यह खेती प्रदान नामक संस्था के सहयोग से किया था. अब उसके परिवार का जीविकोपार्जन बड़े आराम से हो जाता है.
परवल की खेती से होता है परिवार का जीविकोपार्जन
शांति देवी के परवल की खेती से गांव के लोग इतने प्रभावित हुए कि वे भी अब परवल उगाने लग गए हैं. गांव के मोहन महतो और प्यासो देवी ने उसका अनुसरण करते हुए परवल की खेती शुरू की और आज इसी से अपने परिवार का भरण-पोषण कर रहे हैं.
गोला के बनतारा मार्केट में बेचती है फसल
शांति देवी साल में चार बार परवल की फसल तोड़ती है. इस बार अप्रैल माह के समाप्त होने के बाद इसे तोड़ा जाएगा और गोला के बनतारा मार्केट लाकर बेचा जाता है. यहां परवल के अच्छे दाम मिल जाते हैं. लोगों को स्थानीय परवल काफी पसंद आ रहे हैं. शांति का परवल हाथों-हाथ बिक जाता है.
महीने में दो बार देनी पड़ती है खाद और दवा
किसान शांति ने बताया कि वे एक बार अपने रिश्तेदार के यहां रांची गई थी. वहीं उसने छोटे पैमाने पर परवल की खेती देखी. यहीं से वह स्वयं सेवी संस्था प्रदान से जुड़ गई और इसे लगाने के तरीके सीखे. शांति ने बताया कि पौधा रोपने के समय से ही महीने में दो बार खाद और कीटनाशक दवाइयां डाली जाती है. साथ ही पौधे की सुरक्षा और बराबर देखभाल करना होता है.
शांति को मिलेगा प्रशासनिक सहयोग : कृषि पदाधिकारी
इस संबंध में जिला कृषि पदाधिकारी अशोक सम्राट ने बताया कि उनकी जानकारी में पूरे जिले में मात्र एक ही जगह पटल की खेती होने की जानकारी मीडिया के माध्यम से मिली है. अगर ऐसा हो रहा है तो वे अपने प्रयास से वैसे किसान को लिफ्ट ऐरिगेशन की सुविधा मुहैया करा सकते हैं. साथ ही अप्रैल माह से इसका सर्वे करा कर किसान को लाभ दिया जाएगा.
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