बिहार राज्य के मुजफ्फपुर जिले के सकरा गांव के एक प्रगतिशील किसान दिनेश कुमार ने अपने चार साल के शोध के बाद ऐसी तकनीकि विकसित की है। जिससे ओल और लौकी की खेती एक साथ की जा सकती है.
बता दे किसान दिनेश ने अप्रैल महीने में एक एकड़ के जमीन पर इसकी शुरुआत की और अक्टूबर महीने में यह खेती पूरी तरह से सफल हो पाई। इस तकनीकि से किसानो की दो गुनी आय के साथ जमीन की गुणवत्ता भी दो गुनी जो जाती है. पहले केवल एक एकड़ जमीन पर केवल ओल के जाती थी जिसकी उपज लगभग 185 क्विंटल उपज होती थी. जिससे 7 महीने में किसानों की कमाई लगभग 3 लाख 70 हजार हो जाती थी. अब उसी जमीन पर मचान लगाकर लौकी की खेती भी की जाने लगी है एकड़ में 460 पौधे लगाए गए। उपज 4 लाख 60 हजार की हुई। एक लत्तर में 80 से 125 लौकी होते हैं। इस तरह लौकी और ओल की खेती से 7 माह में 8 लाख 30 हजार रुपए की आमदनी हुई। लौकी में 1 लाख 5 हजार और ओल में 1 लाख 35 हजार रुपए का खर्च आता है।
इस प्रकार की खेती करने के लिए जैविक खाद का उपयोग करते है. गाय के दूध को मिट्टी के बर्तन में दही जमाया जाता है. जमे हुए दही में तांबा या पीतल का टुकड़ा डाल दिया जाता है। इसे तब तक नहीं निकला जाता है कि जब तक की इसका रंग तोतिया नहीं हो जाता है. इसके दही में पानी मिलकर दही बनाया जाता है. उसके बाद इस मिश्रण को लौकी और ओल के पौधों पर छिड़का जाता है. यह स्प्रे फसलों के लिए नाइट्रोजन और फास्फोरस का काम करता है. इतना ही नहीं ये कीड़े मारने की दवा भी खुद ही बनाते है. नीम के पत्ते और गाय के मूत्र से बनी दवा को कीड़े या दीमक लगे पौधों में दिया जाता है। इस तकनीक को बिहार के लगभग 35 हजार किसान अपना चुके हैं।
अब प्रगतिशील किसान दिनेश दो साल से धनिया पत्ते की खेती पर भी शोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि यह गांव की बेरोजगार महिलाओं के लिए किया जा रहा है ताकि वे एक-दो कट्ठा जमीन पर हर मौसम में धनिया पत्ता उगा सकें। इस शोध पर अभी काम जारी है।
प्रभाकर मिश्र, कृषि जागरण
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