आज खेत खलिहानों में कीटनाशकों और रासायनिक खादों का प्रयोग किया है. लोगों को आज इस बात की चिंता सता रही है कि क्या उन तक पहुंचने वाली सब्जियां कैंसर या अन्य किसी बीमारी को तो बढ़ावा नहीं देती है. इसी बीच हिमाचल प्रदेश के शिमला में पंजयाणु गांव के किसानों ने सौ फीसदी प्राकृतिक खेती का प्रण लिया है. यहां के गांव में 40 बीघा जमीन पर प्राकृतिक खेती की जा रही है. आज गांव के लोग स्वेचछा से इस खेती को धीरे-धीरे अपना चुके है. आज धीरे-धीरे सारा गांव सौ फीसदी प्राकृतिक खेती वाला गांव बनने की राह पर अग्रसर है. सबसे खास बात यह है कि गांव में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने में सबसे बड़ी भूमिका महिलाएं ही निभा रही है.
महिला किसान ने जलाई अलख
यहां पर गांव के लोगों को प्राकृतिक खेती की ओर मोड़ने और इससे जोड़ने की अलख गांव की निवासी लीना ने जगाई है. यहां पर उन्होंने एक उदाहरण स्थापित करके लोगों को जहर मुक्त खेती के लिए प्रेरित किया है, सभी महिलाएं खेत खलिहान और घर के कामकाज से निवृत्त होकर दोपहर के बाद इकट्ठा हो जाती है. साथ ही वह अपनी-अपनी गाय का गोबर और मूत्र, जड़ी -बूटियों की पत्ती एक जगह पर एकत्र करती है. इन सभी को मिलाकर जीवामृत, घनजीवामृत और अग्निअस्त्र जैसी दवाईयां बनाती है.
फायदेमंद होती है खेती
प्राकृतिक खेती से खाद, केमिकल स्प्रे और दवाईयों को खरीदने के भी पैसे बचते है. किसान के पास नस्ल की गाय होनी चाहिए, जिससे वह खाद और देसी कीटनाशक को बना सकते है. इस तरह की खेती से प्रकृति भी सही बनी रहती है. इस पद्धति में क्यारियां, मेंढ़े बनाकर मिश्रित खेती किया जाता है, जिससे किसानों की आय दोगुनी करने में भी बहुत कारगार होती है. इसमें बीज कम और उत्पादकता ज्यादा होती है.
3 हजार किसानों ने प्राकृतिक खेती अपनाई
मंडी जिले में शून्य लागत से प्राकृति खेती अपनाने के लिए लोगों को प्रेरित किया है. इस साल जिले के कुल 3 हजार किसानों ने शून्य लागत प्राकृतिक खेती को अपनाई जाती है. यहां पर जहर मुक्त खेती से भंयकर बीमारिय़ों से बचा जा सकता है. यहां परलागत के शून्य होने के चलते किसानों की खर्चों की बचत, मिश्रित पैदावार से उनकी आमदनी दोगुनी करने में यह सहायक हैं.
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