लातूर जिले में जहाँ अधिकतर किसान गन्ने की खेती/ Sugarcane Field करते हैं, वहीं ये किसान फलों के बाग लगा कर 2 लाख रुपए प्रति एकड़ कमा रहे हैं! वर्ष 2022-23 के आँकड़ों के अनुसार, महाराष्ट्र में 13.4 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि में, जो वहाँ की कुल कृषि भूमि का लगभग 22 प्रतिशत है; गन्ने की फसल बोई गई थी और उससे अगले वर्ष, यानी 2023-24 में 217 चीनी मिलों ने चीनी उत्पादन का कार्य आरंभ करने के लिए आवेदन किया था; ये आँकड़े दिखाते हैं कि महाराष्ट्र में कितने अधिक किसान गन्ने जैसी अधिक जल खपत वाली फसल पर निर्भर हैं.
लेकिन कुछ किसान अब लीक से हट कर सोचने लगे हैं और उन्हें इसका आर्थिक लाभ भी मिल रहा है, क्योंकि कृषि उत्पादन में उनकी लागत शून्य होने लगी है! इस सूखे संभावित राज्य को बोनस के रूप में इसका अप्रत्यक्ष लाभ भी मिल रहा है, क्योंकि पानी की बचत हो रही है. हम आपको लातूर ज़िले के एक ऐसे ही किसान की कहानी बताने जा रहे हैं.
कृषि व्यवसाय ने बदला जीवन
वही, 33 वर्षीय विजय दांडीमे के लिए रोजगार के लिए कृषि का कार्य ही एक अंतिम विकल्प था. उन्होंने किसी प्राइवेट कॉलेज में एक वर्ष तक अध्यापन का कार्य करने से पूर्व स्नातक की डिग्री प्राप्त की थी. फिर उन्हें लगा कि प्रातः 9 से सायं 5 बजे तक की नौकरियां उनके लायक नहीं हैं. परंतु शीघ्र ही उन्हें अपनी योग्यता अनुसार मनपसन्द कोई नौकरी ढूँढने में आने वाली चुनौतियों का आभास हो गया. उनके पिता ने, जो स्वयं एक किसान हैं, वर्ष 2005 में एक ट्रैक्टर खरीदा था जिसका उपयोग वे व्यावसायिक प्रयोजन से करते थे. उनके पिता अपनी जमीन पर सोयाबीन, चने और तुअर दाल जैसी परंपरागत फसलें उगाते थे, जिनके उत्पादन और कीट नियंत्रण के लिए उन्हें रासायनिक खादों और कीटनाशकों का इस्तेमाल/ Use of Chemical Fertilizers and Pesticides करना पड़ता था. इससे उत्पादन की लागत इतनी बढ़ जाती थी कि 40,000 रुपए की उपज के किए 20,000 रुपए केवल रसायनों में ही खर्च हो जाते थे.
जब विजय को कोई और अच्छी नौकरी नहीं मिली तो उन्होंने 2014 में अपने पिता के कृषि व्यवसाय को ही अपनाने का निर्णय लिया. वह कुछ छोटे-मोटे कार्य के साथ-साथ ट्रैक्टर चला कर कुछ अतिरिक्त आय जुटाने लगे. इस बीच उन्होंने आर्ट ऑफ़ लिविंग के प्राकृतिक खेती कार्यक्रम में एक वरिष्ठ प्राकृतिक कृषि विशेषज्ञ, महादेव गोमारे से प्रशिक्षण लेकर, कृषि को अधिक गंभीरता से अपनाने का निर्णय लिया और उन्होंने बचत करके अपने पास पहले से उपलब्ध 2 एकड़ भूमि के अतिरिक्त 10 एकड़ कृषि भूमि और ख़रीद कर ली.
उनके अपने शब्दों में, ‘आर्ट ऑफ़ लिविंग के प्रशिक्षक दो महीने का प्रशिक्षण देने के लिए गंगापुर गाँव में आये थे. उन्होंने न केवल हमें प्राकृतिक खेती का प्रशिक्षण दिया बल्कि योग, ध्यान और सुदर्शन क्रिया, जो श्वास की एक तकनीक है, भी सिखाई. उन्होंने हमें अमरूद तथा शरीफा/सीताफल के बीज दिए और उन्हें उगाने तरीका भी बताया.’
एक बात जो विजय को बहुत चुभती थी, वह थी उस पानी की कमी से जूझते क्षेत्र के किसानों का गन्ने जैसी अधिक जल खपत वाली फसल पर अत्यधिक निर्भरता. गर्मियां शुरू होते ही लातूर जिले में स्थित गंगापुर को पानी की दैनिक आवश्यकताओं भी पानी के टैंकरों द्वारा पूरी करनी पड़ती थी. परंतु ऐसी परिस्थिति में भी किसान गन्ने की फसल ही बोते थे क्योंकि निकट की चीनी मिल में वह आसानी से बिक जाता था. “आर्थिक हानि से बचने के लिए किसान अपनी खेती का स्वरूप बदलने से डरते थे. उनमें क्षेत्र की जल उपलब्धता की स्थिति और उसके संभावित विकल्पों के विषय में बहुत कम जागरूकता थी. ऐसे क्षेत्र में अमरूद लगाना एक आशीर्वाद ही है क्योंकि इससे हमें आय अधिक होती है और पानी की खपत बहुत कम!” विजय अपना अनुभव साझा करते हुए कहते हैं, “मुझे गन्ने की खेती में अधिक रुचि नहीं है. इसके लिए बहुत अधिक पानी की आवश्यकता होती है. हमें अपने जल संसाधनों को लेकर सचेत होना पड़ेगा. मेरे गाँव में ही जिन किसानों के खेत जल स्रोतों के निकट हैं, केवल गन्ना ही उगाते हैं और दूसरे किसानों की तकलीफ़ के बारे में बिलकुल नहीं सोचते.”
पानी की उपलब्धता कम होने पर अमरूद लगाना अच्छा विकल्प
उनका सुझाव है कि इस क्षेत्र में जहां पानी की उपलब्धता बहुत कम है, किसानों को उन फसलों को उगाना चाहिए जिनको अधिक पानी की आवश्यकता नहीं होती और जो किसान की जेब पर अधिक भार भी नहीं डालती. “जब से मैंने अमरूद लगाना आरंभ किया है, मैं एक एकड़ भूमि से 2 लाख रुपए तक कमा लेता हूँ. इसके लिए मेरा लागत मूल्य लगभग शून्य है. और सबसे अच्छी बात यह है कि अमरूद उगाने में गन्ने की अपेक्षा पानी की आवश्यकता उसकी एक तिहाई ही होती है. इसलिए प्रत्येक किसान को अमरूद और इसके जैसे अन्य फलों की खेती अपनाने के लिए बड़े दृष्टिकोण से सोचना होगा. अब मैं अपने क्षेत्र की जैविक विविधता तथा प्राकृतिक संसाधनों के विषय में अधिक जागरूक रहता हूँ. मैं जल का व्यापक उपयोग नहीं करता. मैं प्राकृतिक घटकों तथा ‘जीवामृत’ जैसी जैविक खादों (जो मैं घर पर स्वयं बना सकता हूँ) के उपयोग से ही भूमि का पोषण करके उसका ध्यान रखता हूँ. ऐसा कर के मैं अन्य किसानों की अपेक्षा अधिक धन कमा रहा हूँ.”
वर्ष 2015 से विजय के परिवार ने भाड़े पर ट्रेक्टर चलाने जैसे छोटे-छोटे कार्य करने बंद कर दिए हैं और अब वे पूरा समय अपनी 12 एकड़ भूमि पर खेती को ही देते हैं. “पहले सोयाबीन, चना और तुअर दाल जैसे फसलों से हम मुश्किल से 40,000 रुपये कमा पाते थे, जबकि अब अमरूद के बाग लगाने से हमें 2 लाख रुपए प्रति एकड़ मिल रहे हैं. मैंने आरंभ में 2 एकड़ में ही अमरूद लगाया था किंतु अब मैं इसे और 2 एकड़ में लगा रहा हूँ. यह सब प्राकृतिक तरीके से उगाया गया है और यह एक स्वस्थ प्रणाली है. धीरे-धीरे मैं अपनी सारी ज़मीन को प्राकृतिक कृषि उत्पादन में परिवर्तित करना चाहता हूँ और दूसरे किसानों को भी इसके लिए प्रेरित करूँगा.”
विजय के दो बच्चे हैं जिनकी शिक्षा और खर्च का वहन अब वे आराम से वहन कर रहे हैं. वे उनके भविष्य के लिए बचत भी कर रहे हैं. एक ऐसे राज्य में जहाँ फसलों के नष्ट होने, मौसम के उतार-चढ़ाव के कारण उनके खराब होने और उनसे उत्पन्न ऋण के दुश्चक्र जैसे प्रभावों के कारण किसानों द्वारा की जाने वाली आत्महत्या की खबरें अनेक वर्षों से सुर्ख़ियों में रहती हो, यह उदाहरण बहुत सुकून देने वाला है.
22 लाख किसानों को प्राकृतिक खेती का मिलेगा प्रशिक्षित
पिछले वर्ष नवंबर में आर्ट ऑफ़ लिविंग तथा महाराष्ट्र सरकार के बीच दो गंभीर उद्देश्यों के लिए सहयोग के लिए दो सहमति पत्रों पर अनुबंध हुए जिनका लक्ष्य उस राज्य के कृषि संकट की जड़ में रहने वाले जल संकट का समाधान करके वहाँ की भूमि के कृषि वैभव को पुनर्स्थापित करना है. इनमें से प्रथम अनुबंध के अनुसार महाराष्ट्र सरकार तथा आर्ट ऑफ़ लिविंग के बीच, राज्य की 13 लाख हेक्टेयर भूमि में प्राकृतिक खेती की तकनीकों को कार्यान्वित करने के लिए सहमति बनी है. आर्ट ऑफ़ लिविंग द्वारा देश भर में 22 लाख किसानों को प्राकृतिक खेती तकनीक में प्रशिक्षित किया गया है, जिसके साथ-साथ सभी संबद्ध पक्षों की हिस्सेदारी के साथ उनके द्वारा पैदा की गई उपज की बिक्री के लिए ठोस बाज़ार व्यवस्था भी तैयार की गई है.
आर्ट ऑफ़ लिविंग द्वारा देश भर में दशकों से सूखी पड़ी लगभग 70 नदियों और उनकी सहायक नदियों को पुनर्जीवित करके उनका जीर्णोद्धार किए जाने और उनसे 3.45 करोड़ से अधिक किसानों को लाभ पहुँचाने की प्रामाणिक उपलब्धियों को देखते हुए, महाराष्ट्र सरकार ने आर्ट ऑफ़ लिविंग के साथ एक दूसरे सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं जिसके अनुसार महाराष्ट्र राज्य के उन जल संकट से ग्रस्त 24 ज़िलों की 85 तहसीलों में ‘जल युक्त शिविर 2.0’ कार्यक्रम का क्रियान्वयन किया जाना है. उत्साह से भरे हुए, विजय कहते हैं, “मैं कृषि से 5-7 लाख रुपए प्रतिवर्ष कमा रहा हूँ. मैं जल अभाव से ग्रस्त इलाक़े में पानी का उपयोग दक्षतापूर्वक कर रहा हूँ. मैं प्रतिदिन ध्यान-साधना करता हूँ. जीवन में पहले मैं इतना प्रसन्न कभी नहीं रहा.”
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