मो0 जावेद बिहार के मुजफ्फरपुर में आयुर्वेद में विश्वास और औषधीय पौधों के प्रति लगाव से पर्यावरण संरक्षण की राह को दिखाने का काम कर रहे है. दरअसल शहर से सटे राजोपट्टी निवासी मो जावेद औषधीय पौधों की बागवानी के जरिए पर्यावरण संरक्षण की अलख जागा रहे है. उन्होंने कई तरह के फलों के अलावा औषधीय फसलों को भी लगाने का कार्य किया है.
दरअसल वह रघुनाथपुरी में वह एक आयुर्वैदिक डॉक्टर है. उनके पिता नरूल हसन भी औषधीय खेती करने का कार्य करते थे. दरअसल जावेद ने उनके सानिध्य में ही बागवानी का कार्य शुरू किया है. उनका सबसे बड़ा मकसद लोगों को पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक करना है.
ये पौधे हैं आकर्षण के केंद्र (These plants are the center of attraction)
मों जावेद की बागवानी में सफेद तुलसी, स्याह तुलसी, रूद्राक्ष, प्रह्लाद, बड़ी और छोटी इलायची, दाल चीनी, दालचीनी, तेजपत्ता, आलू बुखारा, व्हाइट जामुन, चेरी, सेब, नाशपाती, मैंगो स्टार, पपीता, आम, केला, अमरूद, हरफरौली, खीरा,मौसमी, ऑल स्पाइस, जायफल, अंजीर, हींग, कागजीबेल, जैतुन, बेदाना, कौराना, साइकस, भंगरिया जैसे औषधीय पौधे है. उन्होंने सेब की एक नस्ल अरब से मंगवाई है, वे अन्य प्रदेशों से पौधे लाकर बागवानी में लगाते है.
बॉटनिकल गार्डन जैसी तस्वीर (Photo of botanical garden)
उनके आवासीय परिसर में फैली बागवानी बॉटिनिकल गार्डन जैसी लगती है. यहां पर न केवल भारतीय बल्कि विदेशी औषधीय पौधे आसानी से मिल जाते है. इन पौधों में किसका क्या महत्व है यह बात उनको काफी अच्छे से पता है. उनहें फार्मा में अच्छा अनुभव भी है जिसके आधार पर उनको नौकरी मिली है. सामाजिक कार्यकर्ता कमर अख्तर बताते हैं कि उनका आवास एक बागवान है, जिसमें देश-विदेश के औषधीय पौधे पर्यावरण की रक्षा का संदेश दे रहे।
शुगर फ्री केला देखने आते लोग (People coming to see sugar free banana)
जावेद के बाग में तो वैसे सौ से ज्यादा औषधीय पेड़-पौधे होते है. लेकिन केले की अलग-अलग प्रजातियां मुख्य आकर्षण का केंद्र है. यहां का केला शुगर फ्री है. छोटे आकार वाले इस केले की कलम हैदराबाद से मंगवाई है.
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केले की एक और प्रजाति है जिसमें ऊपर की ओर फल लगता है. इसी बाग में फूल का झांडू का पेड़ लगा है. यहां पर खीरे का पेड़ भी लगा हुआ है. इसी के साथ कपूर और सिंदूर का पेड़ भी देखने को यहां मिल जाएगा.
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