मरुस्थल द्वार कहें जाने वाले गाँव अलखपुरा ज़िला भिवानी में प्रगातिशिल किसान सुनील लांबा वर्षो से तर-वत्तर सीधी बुवाई धान की खेती सफलतापूर्वक करते आ रहे हैं. पहले वे कपास की खेती करते थे, जिसमें कीटनाशकों के बार- बार छिड़काव से लागत बढने के साथ दूसरी समस्या भी आ रही थी. इस वजह से फसल चक्र बदल की ज़रूरत थी.
लेकिन उन दिनों (2005-2018) पंजाब- हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय और कृषि विभाग आदि पेप्सी कम्पनी के सहयोग से सीधी बुवाई धान के प्रदर्शन प्लाट सुखे खेत में लगवाकर बार–बार सिंचाई करवाते थे.
जिसमें बुवाई के बाद, पहले 20 दिनों में ही 5 सिंचाई लगने व खरपतवार की बहुतायत होने से किसान परेशान और धान फसल को बहुत नुकसान होता था. जिस वजह से किसानों के मन में सीधी बुवाई धान विधि के बारे कभी विश्वास नहीं बन पाया.
धान की खेती रही सफल
फिर सुनील ने वर्ष 2016 में, पूसा संस्थान करनाल के दौरे के दौरान कृषि वैज्ञानिक डॉ. वीरेन्द्र सिंह लाठर द्वारा संशोधित तर-वत्तर सीधी बुवाई तकनीक को देखा.
जिसमें धान की बुवाई 15 मई से 7 जून तक पहले पलेवा सिंचाई के बाद तैयार तर-वत्तर खेत में सीधी बुवाई के तुरंत बाद खरपतवारनाशी पेंडीमेथिलीन का छिड़काव करते हैं और पहली सिंचाई बुवाई के 15-20 दिन बाद करने से धान फसल लगभग खरपतवार मुक्त हो जाती है.
इस संशोधित तर-वत्तर सीधी बुवाई धान तकनीक से प्रेरित होकर सुनील ने गाँव अलखपुरा में वर्ष-2016 में 25 एकड़ भूमि पर धान की खेती की जो पूर्णता सफल भी रही.
उसके बाद से लगातार सुनील इस विधि से प्रति वर्ष 60-70 एकड़ भूमि पर खुद भी खेती करते आ रहे हैं और बाकि किसानों को भी प्रेरित करते रहे हैं. ज़िसमें रोपाई धान के मुकाबले लगभग एक तिहाही सिंचाई पानी और लागत की बचत होती है और झंडा रोग मुक्त पूरी पैदावार मिलती है.
सुनील का हरियाणा सरकार से अनुरोध है कि भूजल संरक्षण के लिए, जिस तरह पंजाब सरकार ने वर्ष 2020 और 2021 में 6 लाख हेक्टेयर से ज्यादा भूमि पर सीधी बुवाई धान को प्रोत्साहित किया है, उसी तर्ज व भावना से प्रदेश के सभी सीधी बुवाई धान अपनाने वाले किसानों को 7000 रूपये प्रति एकड़ प्रोत्साहन राशी बिना भेदभाव व अव्यावाहरिक शर्तो पर लागू की जाए
स्त्रोत- डॉ. वीरेन्द्र सिंह लाठर, कृषि वैज्ञानिक
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