राजस्थान के डूंगरपुर ज़िले के सोनाघाटी गांव की रहने वाली बालादेवी रौत लगभग 18 साल से दुग्ध व्यवसाय से जुड़ी हैं. उनके पास कुल 5 बीघा ज़मीन है, अपने विगत दिनों के बारे में बताते हुए वह कहती हैं कि मेरे पास पहले एक भैंस थी, पर उचित प्रबंधन और जानकारी का अभाव होने की वजह से प्रति माह मुझे केवल 1000 रूपये की आमदनी हो रही थी, पर वो मेरी परिवार की आजीविका चलाने में पर्याप्त नहीं थी और डेयरी व्यवसाय से अच्छी आमदनी नहीं हो रही थी, क्योंकि पूरे साल भैंस दूध नहीं देती थी. ऐसे में परिवार चलाने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता था, खर्च चलाने के लिए खेत में मजदूरी भी करती थीं.
मगर वर्ष 2021 में वागधारा संस्था द्वारा गठित सक्षम समूह में जुड़ने के बाद बाला देवी को सरकारी विभागों द्वारा चलाई जा रही विभिन्न सरकारी योजनाओं की जानकारी मिली. इसके अलावा, धीरे-धीरे बालादेवी कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिकों के संपर्क में आईं और आगे बढ़ने और अपनी कमाई बढ़ाने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम से जुड़ीं. सक्षम समूह की बैठकों में पशुधन स्वराज को लेकर काफी सारी तकनीकी जानकारियां प्राप्त कर उनको अपनाया जिसके कारण आज वह सफल डेयरी उद्यमी बन चुकी हैं.
बालादेवी सक्षम समूह में शामिल होने के बाद नियमित मासिक बैठक में उपस्थित रहने लगीं और वह आजीविका बढ़ाने के विभिन्न प्रकार के तरीके सिखती गईं. वाग्धारा संस्था के सच्ची खेती कार्यक्रम के तहत उन्नत तरह की सब्जी बीज प्रदान किये गये और संस्था के सहयोग एवं मार्गदर्शन से उनके खेत में जैविक पोषण वाटिका स्थापित की गई जहां पर बैंगन, टमाटर, लौकी, करेला, हरी मिर्च, गोबी इत्यादि का उत्पादन कर बाजार में बेचकर गत वर्ष 40000/- रूपये की आमदनी अर्जित की.
उनका सीखने का उत्साह देखकर वागधारा संस्था के सामुदायिक सहज कर्ता ने बालादेवी को कृषि विज्ञान केन्द्र द्वारा डेयरी फ़ार्मिंग और दूध के मूल्य संवर्धन पर आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रम में हिस्सा लेने का अनुरोध किया और बालादेवी ने प्रशिक्षण में भाग लिया, साथ ही वह पशुधन विभाग के साथ भी लगातार संपर्क में रहीं. वागधारा के सहजकर्ता साथी और पशुधन विभाग अधिकारी नियमित रूप से उन्हें ज़रूरी सलाह और जानकारी देतें रहे. उन्हें दूध उत्पादन बढ़ाने, दूध के मूल्य संवर्धन उत्पाद, डेयरी इकाई का प्रबंधन, चारे की खेती, पशुओं के कृत्रिम गर्भाधान तकनीक आदि के बारे में प्रशिक्षण दिया गया. इस प्रशिक्षण से बालादेवी का आत्मविश्वास बढ़ गया और अपने घर की अपनी जमापूंजी और परिवार के सहयोग से 4 भैंस और खरीदीं. फ़िलहाल, उनके पास अभी 15 भैंसें हैं. इसके अलावा, दो बीघा जमीन पर वो चारे की खेती भी करती हैं, ताकि भैंसों को पर्याप्त पोषण मिल सके.
बालादेवी पहले सिर्फ़ अपने गांव में दूध की बिक्री करती थीं, लेकिन अब वह बड़े पैमाने पर रोज़ाना 40 लीटर दूध साबला के लोगों को बेच रही हैं. जिससे उन्हें करीब 2000 रुपये प्रतिदिन की कमाई होती है.
इसके अलावा, हर महीने 10 किलो घी बेचकर 10000 रुपये की कमाई कर लेती हैं और लागत खर्चा निकाल देने पर उन्हें हर दिन 1200 रुपये का मुनाफ़ा होता है यानी महीने का करीब 35 से 40 हज़ार और सालाना लगभग 4.30 लाख रूपये का मुनाफ़ा वो कमा रही हैं.
आत्मनिर्भर बनाने के लिए सहारा बना परिवार
दूध उत्पादन से बालादेवी का परिवार आत्मनिर्भर बन गया है. बालादेवी ने बताया कि मेरे परिवार के सहयोग के बिना यह व्यवसाय खड़ा करना आसान नही था, परिवार के सहयोग से दूध व्यवसाय आगे बढ़ा रहा है. इस व्यवसाय में उनके सास-ससुर,पति, देवर और देवरानी साथ मिलकर सहयोग प्रदान कर रहे हैं.
चारा-पानी, साफ़-सफ़ाई का रखें ध्यान
बालादेवी बताती हैं कि भैंसों को अच्छा चारा-पानी देने के साथ ही साफ़-सफ़ाई का भी बड़ा महत्व है. भैंसों को दिन में दो बार नहलाना और उनके रहने की जगह को हमेशा साफ़ रखना ज़रूरी है. वो अपनी भैंसों को चारे में मक्का और बरसीम घास, चावल का सूखा चारा, देती हैं.
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परिवार के सदस्य की तरह भैंसों की देखभाल
बालादेवी के अनुसार भैंसों की देखभाल घर के बच्चों की ही तरह करनी होती है. तभी उनका मालिक के साथ गहरा संबंध बनता है. बीमार होने पर उन्हें समय पर दवाइयां खिलानी पड़ती हैं. अगर छोटे जख्म होते हैं तो इसका इलाज वह स्वयं कर लेती हैं, लेकिन ज़रुरत पड़ने पर बीमार भैंस को डॉक्टर के पास भी ले जाती हैं.
अन्य महिलाओं के लिए बनीं प्रेरणा
पहले जहां वह मुश्किल से अपना घर चला पाती थीं, आज सालाना लाखों रुपये का लाभ अर्जित करके इलाके की महिलाओं के लिए प्रेरणा स्रोत बन गई हैं और अन्य किसान उनकी पशुपालन प्रबंधन इकाई देखने आते हैं. अन्य दूध उत्पादक किसान अब उनके इस पशुधन स्वराज के सफल मॉडल को अपनाकर पशुपालन कर रहे हैं.
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