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मछली पालन के सहारे होगा भारी मुनाफा

उत्तर प्रदेश के मेरठ में खेती के अलावा मत्स्य पालन भी किसानों के लिए फायदे का सौदा बन रहा है। जिले के किसान ने यहां पर फ्लॉक विधि के सहारे मछली पालन का कार्य शुरू किया है। इसमें 150 स्कावायर फुट जमीन में बने हुए जार में एक हेक्टेयर तालाब से भी ज्यादा सवा गुनी मछली का उत्पादन होगा। यह मछली बैंक्टीरिया की मदद से पैदा हो रही है जिसमें मछलियों के मरने की संभावना न के बराबर होगी। इसका दूसरा फायदा इसमें पानी और बिजली का दोहन कम होगा और साथ ही जैविक विधि के द्वारा पैदा होने वाली

किशन

उत्तर प्रदेश के मेरठ में खेती के अलावा मत्स्य पालन भी किसानों के लिए फायदे का सौदा बन रहा है। जिले के किसान ने यहां पर फ्लॉक विधि के सहारे मछली पालन का कार्य शुरू किया है। इसमें 150 स्कावायर फुट जमीन में बने हुए जार में एक हेक्टेयर तालाब से भी ज्यादा सवा गुनी मछली का उत्पादन होगा। यह मछली बैंक्टीरिया की मदद से पैदा हो रही है जिसमें मछलियों के मरने की संभावना न के बराबर होगी। इसका दूसरा फायदा इसमें पानी और बिजली का दोहन कम होगा और साथ ही जैविक विधि के द्वारा  पैदा होने वाली मछलियों की कीमत भी ज्यादा मिलेगी। इसीलिए इसके सहारे खेती में किसानों की आय को दुगना करने के लिए तेजी से प्रयास किए जा रहे है। जैविक खेती के अलावा अन्य कार्य जैसे मधुमक्खी पालन, दुग्धपालन को तरजीह दी जा रही है। किसानों को  इसके लिए प्रेरित भी किया जा रहा है।

बायो फ्लॉक खेती है फायदेमंद

यहां के धानपुर के निवासी बिजेंद्र सिंह ने मत्स्य पालन का आधुनिक तरीका अपनाया है। इस विधि में तालाब के जार में प्लास्टिक के जरिए मत्स्यपालन  किया जाएगा । इससे किसान की लागत भी कम होगी।

ऐसे होगा पालन

सबसे पहले किसान मछली पालन के लिए खेतों की मिट्टी की खुदाई करवाकर गहरा करके तालाब बनाते है। बाद में उसमें मछली को पालने का कार्य किया जाता है। बायो फ्लॉक विधि में किसान 150 स्क्वायर फीट में चार मीटर परिधि और एक मीटर ऊंचे चार टैंक को बनाते है। इन सभी की दीवार प्लास्टिक की बनी होगी। इन सभी के ऊपर एक शेंड भी होगा। इन टैंकों में 12 हजार लीटर पानी भी आ सकता है। कंप्रेशर मशीन के सहारे सभी टैंकों में मछली के लिए ऑक्सीजन को घोला जाएगा। पानी को निकालने के लिए टैंक में टोंटी भी लगाई जाएगी।

इस तरह से होगा फायदा

एक हेक्टेयर के तालाब में एक बार में उंगली के आकार में करीब दस हजार मछली छोड़ी जाती है। इन बच्चों को कुल 600 ग्राम का होने में 11 महीने तक का समय लगता है जबकि एक ही टैंक में एक बार में मछली के 1200 बच्चे यानि कि 4800 बच्चे टैंक में छोड़ें जाते है।

ऐसे ज्यादा विकसित होती है मछली

बॉयो फ्लॉक विधि में जार के अंदर हर चीज इंसान के नियंत्रण में होती है। जैसे ही तालाब में मछली का दाना गिर जाता है और मल के गिरने से केमिकल बन जाते है। इन्हें निकालने का साधन नहीं होता है। पानी में पूरी तरह से ऑक्सीजन घुलना बंद होजाती है इसीलिए इसको घोलने के लिए पूरी तरह से केमिकल डाले जाते है। जबकि जार में हर तरह से वेस्टेज निकालने का पूरा साधन होता है। मछलियों को ज्यादा खुराक देने पर उनको कोई भी मछलियों को नुकसान नहीं होता है। बायो फल्क विधि एक सस्ता और अच्छा सरल माध्यम है जिसके जरिए किसान काफी बेहतर लाभ कमा सकते है।

English Summary: Fisheries will have huge profits Published on: 30 April 2019, 05:24 PM IST

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