मटर रबी मौसम की प्रमुख सब्जी है। इसकी खेती उत्तर भारत में पंजाब, हरियाण, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात और दक्षिण में कर्नाटक, कोडाइकनाल और अन्य हाइरेन्जों में की जाती है। मौसम में मटर काफी सस्ती मिलती है, जबकि कैरीकृत मटर काफी महंगी मिलती है अतः इसका कैनीकरण करके लाभ उठाया जा सकता है, जो उत्पादकों, व्यवसायिकों और उपभोक्ताओं को लाभप्रद हो सकता है।
अधिक प्रोटीनयुक्त सब्जियों में मटर का प्रमुख स्थान है। इसकी कुछ विशेष प्रमुख किस्में है जैसे थोमस, लक्सोटन, लिंकन इत्यादि, जो कैनीकरणोपयोगी मानी जाती है। भारत में पाई जाने वाली किस्में हैं-बोनविले, न्यूलाइन परफैक्शन, एन.पी-29, आर्केल, असौजी, अर्लीबेजर, मिटियोर, जवाहर मटर-1, जवाहर मटर-2, जवाहर मटर-3, जवाहर मटर-4, स्वर्ण रेखा, मिटियोर, जवाहर उपहार, आजाद मटर-1, डी.आर.पी. 3-4, नरेन्द्र सब्जी मटर 1 से 5 आदि।
मटर की फलियाँ गहरे हरे रंग से फीके हरे रंग की होते ही फूली हुई सी नजर आयेंगी। पूर्ण विकसित होते ही मटर में उपयुक्त गुण दिखाई देगे, इस समय इसमें शर्करा की सर्वाधिक मात्रा पाई जाती है, जिसके कारण उसमें अधिक मिठास होता है। इस अवस्था में यदि फलियों को न तोड़ा जाए तो दूसरे दिन उसमें बनी शर्करा मांड (स्टार्च) में परिवर्तित हो जाती है, जिसके कारण मटर फीकी हो जाएगी। इसलिए उचित समय पर फलियों को तोड़ना कैनीकरण के लिए अति आवश्यक है। फलों के दाने निकालकर उनका श्रेणीकरण किया जाता है, प्रत्येक मटर के दाने की मोटाई 5 से 9 मिलीमीटर होगी। इन्हें 1.040 से 1.070 आपेक्षिक गुरुत्व के लवण-घोल की सहायता से भारत में वर्गीकरण किया जा सकता है परन्तु विकसित देशों में और भारत के बड़े-बड़े कारखानों में श्रेणीकरण यंत्र की सहायता से किया जाता है।
विवर्णीकरण: मटर के दानों का उनके आकार व परिक्वता के आधार पर 3 से 5 मिनट तक उबलते पानी में विवर्णीकरण किया जाता है। नर्म होते ही इन्हें ठण्डे जल में डुबोकर मटर को पकने से रोका जाता है। इन्हें पानी से निकालकर गन्धक रोधक (सल्फर रसिस्टेण्ट) कैनों में भरकर मामूली चीनी मिले 2 प्रतिशत घोल में तैराया जाता है। यह केन्द्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी अनुसंधान केन्द्र द्वारा निर्देंशित है, जबकि गिरधारी लाल और साथियों को कथन है कि मटर को 2-1 प्रतिशत लवण और 2-5 प्रतिशत शर्करायुक्त मिश्रित घोल में तैराना चाहिए।
न. 2-5 कैनों में 540 से 570 ग्राम, बटर साइज कैनों में 340 से 400 ग्राम तक मटर भरा जा सकता है। वाहिकाओं में 6-10 मिलीमीटर तक शीर्ष-स्थान खाली रहना चाहिए। इन्हें निर्वातीकृत सीलबन्द आदि करके संसाधित किया जाता है।
कच्ची विधि: यह एक घरेलू स्तर पर की जाने वाली कैनीकरण विधि है। काँच की बरनी में विवर्णीकृत मटरों को भरकर उसमें आधा चम्मच नमक मिलाया जाता है और उसमें उबलता पानी मिलाया जाता है, किन्तु 25 मि.मी. शीर्ष स्थान खाली अवश्य रहे। इन्हें निर्वातीकरण कर ऐसे प्रेशर कुकर मे संसाधित किया जाता है, जिसमें प्रेशर गेज लगा हो। 568 और 11.7 ग्राम धारक शक्ति की काँच बरनियों को 40 मिनट तक संसाधित किया जाता है। प्रेशर कुकर में इसका दाब 0.7 किलो प्रति सेमी. होना चाहिए। इस प्रकार कैनों में भी भरकर संसाधित किया जा सकता है, जहां 6 मिलीमीटर शीर्ष स्थान छोड़ना चाहिए। नम्बर 2 कैनों में आधा चम्मच और न0 2.5 कैनों में एक चम्मच नमक मिलाना चाहिए, इन्हें 40 और 45 मिनट तक संसाधित करते हैं।
सूखे मटरों का कैनीकरण: पूर्ण रूप से विकसित होकर फली से स्वयं निकले मटर के सूखे दानों को 16 से 18 घण्टे पानी में भिगोते हैं। इसके उपरान्त उनसे कंकड़ों को अलग कर देते हैं। गर्म दानों को 5-7 मिनट तक उबालते हैं। जब वे नर्म हो जाए, तो उपर्युक्त विधि से कैनीकृत किया जाता है। इसमें शर्करा की मात्रा ही नहीं बल्कि हरा रंग भी मिलाकर संसाधित करना चाहिए।
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