कोलकाता से 110 किलो मीटर दूर सुंदरवन अपने प्राकृतिक सौंदर्य, प्रचुर वन संपदा और असंख्य प्रजातियों के जीव जंतुओं के समेटे संसार के सावतें आश्चर्य की श्रेणी मे आता है. इसे युनेस्को हेरिटेज साइट व चौतरफा जलाशयों के घीरे होने के कारण रामसार साइट का भी दर्जा प्राप्त है. मैंग्रोव जंगल यानी सुंदरी वृक्ष से घिरे 4264 वर्ग किलो मीटर के विस्तृत क्षेत्र में फैले सघन जंगल में रायल बंगाल टाइगर का बसेरा भी है. नदी-नालों और छोटे-बड़े द्वीपों से घीरे तथा असंख्य जीव जंतुओं को समेटे सुंदरवन अपने प्रचुर प्राकृतिक संपदा के कारण पर्यावरण संतुलन बनाए रखने में विशेष रूप से सहायक है. लेकिन बार-बार प्राकृतिक आपदा और चक्रवाती तूफान की चपेट में आने के कारण सुंदरवन बदरंग होते जा रहा है. अब तो स्थिति यह है कि सुंदरवन के अस्तित्व पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं और इस कारण पर्यावरण संतुलन बिगड़ने की आशंका भी बढ़ गई है. सुंदरवन वन में पर्यावरण का खतरा बढ़ता है तो इसका असर कोलकाता महाननगर जैसी घनी आबादी वाले शहरी जीवन पर भी पड़ेगा.
पिछले माह की 20 तारीख को आए चक्रवाती तूफान ‘अंफान’ ने सुंदरवन की रौनक ही छीन ली. करीब 90 किलो मीटर के दायरे में नदियों के बांध टूट गए. समुद्र का खारा पानी जंगलों में घुस गया. सुंदरवन के नदी-नाला और तालाबों में समुद्र का खारा पानी घुसने से मीठे पानी में रहने वाली असंख्य मछलियां नष्ट हो गई. सुंदरवन क्षेत्र के नम मिट्टी में लहलहाती अधिकांश फसलें भी खारे पानी की भेंट चढ़ गई. समुद्र तट के करीब होने के कारण सुंदरवन ‘अंफान’ की 190 किलो मीटर प्रति घंटा की रफ्तार को झेल नहीं पाया. प्राकृतिक संपदा छिन-भिन्न हो गया. असंख्य पेड़-पौधे जड़ से उखड़ गए. खारा पानी के जंगल में घुसने से किस हद तक परिस्थितिकी तंत्र ( Echo System) का नुकसान पहुंचा होगा इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है. अंफान की जो तीव्र रफ्तार थी उसमें तो सुंदरवन का राजा रायल बंगाल टाइगर भी सहम गया. अन्य छोटे जीव-जंतुओं की दयनीय स्थिति तो आसानी से समझी जा सकती है.
चोर शिकारियों और अवैध रूप से जंगल से लकड़ी काटने पर रोक लगाने के लिए वन विभाग सुंदरवन के एक बड़े हिस्से को नॉयलन के जाल से घेरकर रखता है. वन्य जीव-जंतु (Wildlife) वाले सुंदरवन क्षेत्र के 132 किलों मीटर में नायल के फेंसिंग तूफान में छिन्न-भिन्न हो गई. वन विभाग ने सुंदरवन क्षेत्र में पुनर्गठन काम शुरू किया है. नॉयलन के घेरे वाले क्षतिग्रस्त क्षेत्रों में फिर से फेनसिंग का काम शुरू किया गया है. राज्य के प्रधान वन अधिकारी रविकांत सिंह के मुताबिक ‘अंफान’ के कारण सुंदरवन क्षेत्र में स्थित वन विभाग के अधिकांश दफ्तर व कैंप क्षतिग्रस्त हुए है. क्षतिग्रस्त क्षेत्रों में फेंसिंग के साथ वन विभाग के टूटे-फुटे कैंप व अन्य दफ्तरों की मरम्मत का काम शुरू किया गया है.
दूसरी ओर सुंदरवन के आस-पास रिहायशी वाले क्षेत्रों में तो पुनर्गठन के काम काम में सेना की मदद लेनी पड़ रही है. अधिकांश पेड़-पौधे टूट कर गिरने और बिजली के खंभे उखड़ जाने के कारण रास्ता-घाट भी बंद हो गया है. सेना की मदद से जिला प्रशासन भी जन जीवन सामान्य कऱने के लिए तत्परता के साथ काम कर रहा है. जाहिर है सड़कों पर गिरे पेड़- पौधों को हटा देने और बिजली के खंभे को फिर खड़ा कर देने से सुंदरवन के रिहायशी इलाकों में जन जीवन समान्य हो जाएगा. लेकिन यह समस्या का कोई स्थाई समाधान नहीं है. सुंदरवन जब बार-बार तूफान से क्षतिग्रस्त हो रहा है और पर्यावरण के लिए खतरा बढ़ते जा रहा है तो सरकार को स्थाई समाधान खोजने की दिशा में काम करना होगा. सुंदरवन क्षेत्र के लोगों में भी पर्यावरण की रक्षा के लिए उनके अंदर सामाजिक जिम्मेदारी की भावना जगानी होगी.
सुंदरवन क्षेत्र की जो भौगोलिक स्थिति है उसमें आम लोगों की भी पर्वारण के प्रति उदासीनता कम नहीं है. लेकिन उनके अंदर जागरुकता पैदा करने के लिए सरकार और स्थानीय प्रशासन को ही आगे आना होगा. प्राप्त रिपोर्ट के मुताबिक बार-बार तूफान के कारण समुद्र का खारा पानी खेतों में घुसने से जब फसल नष्ट होती है तो किसान बिचलित हो जाते हैं. अब तो लोग अपनी खेती की जमीन को बिक्री भी करने लगे हैं. खेती की जमीन पर मत्स्य पालन केंद्र और कहीं-कहीं ईट भट्टा तक खोले जा रहे हैं. मत्स्य पालन और और ईंट भट्टा का व्यवसाय बढ़ने के कारण भी नदियों के बांध क्षतिग्रस्त और कमजोर होते जा रहे हैं. सरकार नदियों के बांध की तो मरम्मत कर सकती है लेकिन मत्स्य पाल केंद्र और ईंट भट्टा के व्यवसाय के लिए जो छोटे-छोटे निजी तौर पर बांध बनाए गए हैं उसकी मरम्मत करने की जिम्मेदारी तो संबंधित मत्स्य पालन केंद्र के मालिक और ईंट भट्टा के व्यवसायियों का ही है. लेकिन वे अपने निजी बांधों की मरम्मत करने की सामाजिक जिम्मेदारी निभाने की जरूरत नहीं समझते हैं. नतीजा यह होता है तो तूफान के समय उनके बांध भी धराशायी होते हैं और समुद्र का खारा पानी सुंदरवन समेत आस-पास के खेतों में घुस जाता है. अगर यह स्थिति रही तो सुंदरवन का क्षेत्र समुद्र के खारा पानी से क्षतिग्रस्त होते-होते एक दिन समुद्र में ही समाने के कगार पर आ जाएगा.
2009 में भी चक्रवाती तूफान ‘आयला’ से सुंदरवन के नदी नालों के अधिकांश बांध क्षतिग्रस्त हुए थे. उस समय तत्कालीन वाममोर्चा की सरकार ने बांधों की मरम्मत के लिए 500 करोड़ रुपए आवंटित किए थे. बांधों की मरम्मत का कार्य पूरा भी नहीं हुआ था कि 2019 में चक्रवाती तूफान ‘बुलबुल’ ने भी क्षति पहुंचा दी. उसके छह माहके अंदर ही ‘अंफान’ ने जिस तरह तबाही मचाई उससे सुंदरनवन की सुंदरता ही छीन गई. सुंदरवन के जीव-जंतु से लेकर मैंग्रोव के जंगल पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं. पर्यावरणविदों के मुताबिक एक तिहाई जंगल क्षतिग्रस्त होने से प्राकृतिक आपदा का संकट हमेशा बना रहेगा और पर्यावरण को भी भारी नुकसान होगा. बार-बार तूफान की चपेट में आकर सुंदरवन में जंगल का एक तिहाई हिस्सा क्षतिग्रस्त हो चुका है और यह एक चिंता का विषय है.
यहां एक बात का उल्लेख करना भी अप्रासंगिक नहीं होगा कि सुंदरवन का आधा हिस्सा बांग्लादेश में भी पड़ता है. दोनों देशों में मछुआरों के अक्सर मछली पकड़ने के दौरान नौका चलाते वक्त अपने देश की सीमा का अतिक्रमण करने की घटनाएं प्रकाश में आती रहती है. गंगा, ब्रह्मपुत्र और बांग्लादेश की मेघना नदी की डेल्टाई भाग में स्थित सुंदरवन को बचाने की जिम्मेदारी बांग्लादेश सरकार की भी है. देश-विदेश के पर्यटकों और पर्यावरणविदों के लिए आकर्षण का केंद्र सुंदरवन के समक्ष जो संकट है उसे पश्चिम बंगाल की सरकार अकेले दूर नहीं कर सकती है. इसमें केंद्र सरकार की भरपूर मदद की जरूरत है.
बांग्लादेश भी सुंदरवन के वर्तन संकट से वाकिफ है. बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने एक साल पहले अपने एक बयान में कहा था कि सुंदरवन की रक्षा के लिए दोनों देशों को मिलकर काम करना होगा. चूंकि सुंदरवन पश्चिम बंगाल में स्थित है तो राज्य सरकार को ही पहल करनी होगी. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को सुंदरवन के संकट की ओर केंद्र सरकार का ध्यान आकृष्ट करना होगा. मौसम विभाग से ‘अंफान’ की सूचना मिलते ही मुख्यमंत्री के निर्देश पर सुंदरवन के क्षेत्र के लाखों लोगों को हटाकर सुरक्षित स्थानों पर कर दिया गया. कुछ लोगों को कैंप में तो कुछ लोगों को राहत शिविरों में शरण लेनी पड़ी. लेकिन यह समस्या का स्थाई समाधान नहीं है. इस बारे में ओड़िशा से सीख लेनी चाहिए.
दशकों पहले चक्रवाती तूफान से भारी तबाही होने के बाद ओड़िशा सरकार ने समुद्र तट से 500 मीटर के क्षेत्र को ऊंचा किया और वहां स्थानीय निवासियों के लिए पक्का मकान बनाने की ढांचागत सुविधाओं की व्यवस्था कर दी. उसी तरह सुंदरवन के 3500 किलो मीटर के क्षेत्र में फैले बांधों को ऊंचा करना होगा और उसकी मुकम्मल मरम्मत करनी होगी. मत्स्य पालन केंद्र और ईंट भट्टा के मालिकों को भी अपने-अपने बांधों को निजी तौर पर मरम्मत करने पर ध्यान देना होगा. बांधों को मजबूत करने और तूफान के समय सुंदरवन और रिहायइशी इलाकों में पानी घुसने का खतरा नहीं होने पर ही लोग सुरक्षित महसूस करेंगे और उनके लिए स्थाई पक्का मकान बनाना भी संभव होगा.
सुंदरवन के पशु-पक्षी और जीव-जंतु भी जंगल के वर्तमान संकट से सहमे हुए हैं. लेकिन उनकी कोई भाषा नहीं हैं. इसलिए वह अपनी पीड़ा बयान नहीं कर सकते. सुंदरवन बचेगा तो सुंदरी वृक्ष भी बचेंगे और तभी जाकर वहां के जीव-जंतु सुरक्षित रहेंगे. जंगलों में जीव-जंतु बचे रहेंगे तो पर्यावरण भी सुरक्षित रहेगा. आज विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर सुंदरवन को बचाने के लिए मानव को ही पहल करनी होगी तथा राज्य सरकार, केंद्र सरकार और बांग्लादेश सरकार को भी आगे होना होगा.
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