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हम चाहे कितने भी मोर्डन या आधुनिक क्यों न हो जाएं, परंतु अपनी जड़ों से जुड़े बिना हम अकेले और खोखला ही हैं और हमारी जड़ें हमारे खेत-खलिहान और हमारे गांवों में बसती हैं। जीवन का चाहे कोई भी पहलू हो कृषि ने उसे छुआ अवश्य है। ऐसा ही एक महत्वपूर्ण और मनोरंजक पहलू है - सिनेमा।
सिनेमा भारतीय हो या फिर अंतरराष्ट्रीय खेत- खलिहान, किसान और कृषि के बिना अधूरा है। कहीं न कहीं कृषि कि झलक दिख ही जाती है।
जबसे सिनेमा आरंभ हुआ है तब से लेकर अब तक सिनेमा और कृषि का सफर बहुत सफल और प्रशंसनीय रहा है।
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पहले बात अगर भारतीय सिनेमा की करें तो हम देखेंगें कि मूक और ब्लैक एंड वाइट सिनेमा से लेकर रंगीन सिनेमा तक कृषि ही एक ऐसा क्षेत्र है जिसका प्रयोग सबसे अधिक और विस्तारपूर्वक हुआ है। भारतीय सिनेमा में खेतों और गांव के जीवन को जब-जब दिखाया गया है दर्शकों ने उसे पसंद किया है।
कुछ भारतीय फिल्में जो मुख्यत: कृषि जगत को आधारित करके बनाई गईं उन्हें न सिर्फ सफलता मिली अपितु वह कईं राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार जीतकर सिनेमा के इतिहास में हमेशा के लिए अमर हो गई जैसे - दो बीघा ज़मीन, मदर इंडिया, उपकार, लगान आदि। उपकार फिल्म का गीत - "मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती" तो इस प्रसिद्धि पर है कि सिर्फ भारत ही नहीं अपितु विश्वभर में जहां कहीं भी भारतीय कृषि की बात होती है या कोई महोत्सव होता है तो यह गीत बनाया जाता है। इस गीत को स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस और दूसरे त्योहारों पर अवश्य गाया और याद किया जाता है।
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समय बदलने के साथ-साथ भारतीय सिनेमा बदला परंतु गांव, मिट्टी और कृषि के प्रति उसने कभी समझौता नहीं किया, जब भी कृषि जीवन को दर्शाया पूर्ण सत्य के साथ दर्शाया।
आज का भारतीय सिनेमा काफी हद तक विदेशी सिनेमा की कॉपी कर उसी तर्ज पर चल रहा है परंतु साल भर के भीतर 2 या 3 फिल्में ऐसी होती ही हैं जिनमें कृषि जगत की झलक मिल जाती है, उसका कारण यह है कि खुद अंतरराष्ट्रीय सिनेमा भी इससे अछूता नहीं है और वहां तो कृषि जीवन की छाप बहुत गहरी है।
गिरीश पांडेय, कृषि जागरण
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